Saturday 31 October 2015

आशीर्वाद - Blessings


BLESSINGS (ASHIRWAD)


  • ये बात उस समय की है जब मैं दसवीं कक्षा में पढ़ा करता था । हमारे गाँव के रघु भैया हम बच्चों को बहुत प्रिय थे, उनका मुम्बई में दवाओँ का कारोबार था और हर 6-8 महीने में जब भी गाँव आते हमारे लिए चॉकलेट लाते थे और शाम को हमें किस्से सुनाते थे ।
  • आज सुबह ही रघु भैया मुम्बई से आये थे और शाम को गाँव के चौक में हमें मिलने वाले थे । ये गाँव की रोज की दिनचर्या थी । फुरसत के क्षणों में सब गाँव के चौक में ठंडी शाम का आनंद उठाते थे।
  • हम सब भी बहुत उत्सुक थे उनसे मिलने और उनकी बाते सुनने को ।
  • शाम को करीब 5 बजे रघु भैया आये, हम सबको हमारा हालचाल पूछा और चॉकलेट दी । फिर चौक में बैठे बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया और उनसे बातें करने लगे ।
  • उत्सुकतावश पिंटू उठकर गया और रघु भैया को हाथ पकड़ कर खींचता हुआ सा हमारी मण्डली की और ले आया ।
  • "क्या रघु भैया, हम 7 महीने से तरस रहे है और आप वहां दादाजी के पास जा के बैठ गए। हमें अपनी कहानी सुनाओ ना, आप इतने बड़े आदमी कैसे बने" दीपू ने अति उत्साह दिखाया ।
  • "अच्छा सुनो, आज मैं आपको अपनी ही कहानी सुनाता हूं" रघु भैया ने एक लंबी सांस भरी और बोले, "बच्चों, ये सब बड़ों का ही आशीर्वाद है, तुम भी हमेशा उनके कहे अनुसार चलना, देखना तुम कहीं भी नहीं अटकोगे। कोई भी समस्या हो या कुछ नया करना चाहो तो उनसे राय जरूर लेना । वो तुम्हे सही राह दिखाएंगे ।" बोलते बोलते रघु भैया सांस लेने के लिए रुके ।
  • "मैंने ये सब नहीं समझा था, पिताजी की बातें मुझे पुराने ख़यालात की लगती थी । वे मुझे गांव के पास वाले शहर में कोई व्यापार शुरू करने के लिए बोल रहे थे लेकिन मेरे दिलो दिमाग में मुम्बई नगरी बसी हुई थी ।
  • वे मुझे अपने से दूर नहीं भेजना चाहते थे, उनका स्नेह मुझे उस वक्त स्वार्थ जैसा दिखाई देता था । एक रोज इन्ही बातों के चलते मेरे उनके बीच काफी कहा सुनी हो गई और माँ के लाख समझाने पर भी मैं नहीं माना और अगले दिन मुम्बई की ट्रेन पकड़ ली ।
  • वहां अपने आसपास के गाँवों के काफी लोग है तो मेरे रहने खाने की व्यवस्था हो गयी और अपने पास वाले गांव के लालू चाचा ने मुझे काम भी दिलवा दिया ।
  • लेकिन वो काम मुझे रास नहीं आया, मुझे बहुत जल्दी बहुत सारे पैसे कमाने थे इस चक्कर में मैं एक चिटफण्ड वाली कंपनी के बहकावे में आ गया जिनका दावा था की वो एक महीने में पैसा डेढ़ गुना कर देते हैं। मैंने इधर उधर से कर्जा लेकर दो लाख रुपये उसमे लगा दिए। और 15 दिन बाद वो कंपनी कहां गयी किसी को पता नहीं चला।" कहते कहते रघु भैया के चेहरे पर अफ़सोस के भाव नजर आये ।
  • "मैं टूट गया, 8-10 दिनों मैं मुझे लगने लगा जैसे अब मेरा भविष्य पूर्णतः अँधेरे में डूब चूका है । पिताजी से कह नहीं सकता था क्योंकि उनसे तो मैं झगड़ा कर के गया था और कई महीनों तक बात भी नहीं की थी ।
  • इसी उलझनों में घिरा एक दिन जब शाम को घर आया तो देखा लालू चाचा के साथ पिताजी बैठे थे । मैं हक्काबक्का हो गया ।
  • पिताजी उठकर आये और मुझे गले से लगाकर बोले, रघु, इतनी तकलीफ में है और बताया भी नहीं । इतना भी क्या गुस्सा बेटा ।
  • पिताजी के उस स्पर्श ने मेरे अंदर की घुटन को आजाद कर दिया था और मैं उस दिन पिताजी के कंधे पर सर रख कर जी भर कर रोया।" बोलते बोलते रघु भैया की आँखे सचमुच भर आई ।
  • "पिताजी ने कहा रो मत बेटा, मैं हुं ना, सब ठीक हो जायेगा, कल तेरे जितने भी कर्ज लिए हुए है वो हम चूका देंगे, तेरे लालू चाचा ने बताया की यहां दवाओँ की दूकान अच्छी चल सकती है अतः अगर तुम मेरा कहा मानो तो हम यहां एक दवा की दूकान शुरू कर देंगे । थोड़े दिनों में ईश्वर की कृपा रही तो सब फिर से व्यवस्थित हो जाएगा । तेरी माँ और मेरा आशीर्वाद भी तेरे साथ है।
  • मैं उस वक्त एकदम चेतनाशून्य हो चूका था बच्चों, पिताजी क्या बोल रहे थे कुछ पता नहीं था । अगले दिन उन्होंने सच में मेरे सारे कर्ज चुकवा दिए, फिर अगले कुछ दिनों में किराये की एक दूकान भी ले कर उसमे माल भरवा दिया ।
  • कुछ दिन रुक कर पिताजी वापस गाँव आ गए थे । जाते जाते उन्होंने कहा था रघु बेटा, कोई भी चीज की और जरुरत हो तो बता देना, और मन लगाकर काम करना, मेरा आशीर्वाद हमेशा तेरे साथ रहेगा ।
  • पिताजी जितने दिन रहे थे उतने दिनों में मेरी हिम्मत नहीं हुयी उनसे पूछने की कि उनके पास इतने पैसे कहाँ से आये ।
  • ये बात जोर देकर जब मैंने लालू चाचा से पूछी तो उन्होंने बताया था कि पास वाले शहर में पिताजी ने मेरे लिए एक दूकान ले रखी थी वही बेचकर उन्होंने मुझे यहाँ पर काम करवा के दिया था ।
  • और तो और जब मैं घर छोड़कर चला गया था तब पिताजी ने पहले ही फ़ोन करके लालू चाचा से कह दिया था कि मेरे रहने खाने और काम की कोई व्यवस्था करवा देवे । जबकि मुझे लगता था की ये सब मेरी काबिलियत थी ।
  • तब मैंने प्रण कर लिया था कि पिताजी के सपने को साकार करुंगा, और आज देखलो, उनके आशीर्वाद से सब अच्छा ही अच्छा है।
  • इसलिए बच्चों हमेशा बड़ो का आदर करना, उनका कहना मानना, और आशीर्वाद हमेशा लेते रहना।"
  • हम सब सांस रोके रघु भैया की बातें सुन रहे थे और मन ही मन सोच रहे थे कि बड़ो के आशीर्वाद में बड़ी शक्ति है ।
  • ....शिव शर्मा की कलम से....


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