Wednesday 11 November 2015

आखिर दीवाली जो है - Akhir Diwali jo hai


आखिर दीवाली जो है


लो जी आ गयी दीवाली । पुरे एक वर्ष की प्रतीक्षा के बाद । आइये मिलकर इसका आनंद उठायें । उल्लास और उमंग का पर्व दीवाली तो है ही  खुशियां मनाने का पर्व । पूरा देश अपने अपने तरीके से इस पावन पर्व का आनंद उठाता है । तरह तरह की रोशनियां, आतिशबाजी और धूम धड़ाका । चहुँ और ख़ुशी ही ख़ुशी नजर आ रही है ।

रौशनी से जगमगाते बाजार । दुल्हन की तरह सजी हुयी दुकानें । रंग बिरंगी पोशाकें पहने लोगों की भीड़ । हर एक दूकान पर ग्राहकों की लगी हुयी लंबी कतारेँ । विशेषतया मिठाइयों की दुकानों पर तो लोगों का हुजूम सा लगा है । ये दृश्य सिर्फ शहर के इसी भाग में नहीं बल्कि पुरे शहर का आज ये ही नजारा है । भाई दीवाली जो है ।

पिछले पांच सात दिन से ये दृश्य आम हो गया है । बच्चों के लिए कपड़ों की खरीद, दीवाली के बहाने अपने लिए नया मोबाइल, मेहमानों के लिए तरह तरह की मिठाइयां । थैले भर भर के घरों में जा रहे हैं । आखिर दीवाली जो है ।

कुछ पक्की और कुछ अस्थायी शमियानों में बनी दुकानों में करीने से सजे हुए आतिशबाजी के सामान बरबस ही अपनी तरफ सबका ध्यान खिंच रहे हैं । खरीददारों का मेला वहां भी लगा हुआ है । कोई मोल भाव नहीं बस एक कागज़ की पर्ची पर जो जो चीज पसंद है, जो पटाखे फुलझड़ियां चाहिए, लिख कर उसके मूल्य के साथ दुकानदार को थमा दो, थोड़ी देर बाद वो सामान एक थैले में खरीददार का नाम पुकार के दे दिया जाता है । हजारों रुपये मूल्य के पटाखे ख़रीदे जा रहे हैं ।

मेहता जी अपने बड़े बेटे के साथ कार बाजार आये हैं । कार बाजार भी जगमग कर रहा है । रंग बिरंगी रोशनियां कारों की चमक को और बढ़ा रही है । बेटा बसों में धक्के ना खाये इसलिए मेहताजी अपने बेटे के लिए कार लेने आये हैं ।

कल पाटिल जी भी एक बड़ा सा टी वी लेकर आये थे । कह रहे थे अब इस 20" वाले मोटे टी वी का जमाना नहीं रहा । अब तो बाजार में एक से बढ़कर एक सपाट स्क्रीन वाले टेलीविजन आ गए हैं, सोचा एक ले ही लेते हैं । आखिर दीवाली जो है ।

कुछ दुकानें सजावट के सामानों की भी सजी हुयी है । चीन में निर्मित बहुत से बिजली के उपकरण यहां उपलब्ध है । छत से लटकाने वाली छोटे छोटे रंग बिरंगे बल्बों वाली झालरें, रंग बिरंगी मोमबत्तियां, चमकीले दीपक और भी अनगिनत घर को रोशन करने वाली वस्तुएं । बहुत से ग्राहक अलग अलग दुकानों से तरह तरह का सामान खरीद रहे हैं । आखिर दीवाली जो है ।

उन्हीं सजी धजी दुकानों की गली के मुहाने पर मोती का भी एक ठेला लगा है । ठेले पर मिटटी के दिए, घर पर बनाई हुयी रंगीन चादर वाली झालरें भी है । पूजा के सामान की छोटी छोटी कागज़ की पोटलियां भी ठेले के एक कोने में सजाकर रख रखी है । कपूर, अगरबत्ती और रुई की बनी बातीयां भी है ।

अन्य दुकानों की अपेक्षा मोती के ठेले पर बिकने वाला सामान सस्ता भी है, फिर भी यहां कभी कभी इक्का दुक्का लोग आते हैं, कोई कुछ खरीदता है लेकिन ज्यादातर व्यक्ति भाव ताव पूछ कर बड़ी दूकान का रुख कर लेते हैं ।

मोती फिर भी निराश नहीं है, उसका कहना है की हर दीवाली पर उसकी कुल मिलाकर इतनी बिक्री हो जाती है, कि वो अपने बच्चों के लिए कुछ नए कपड़े, थोड़े बहुत पटाखे और घर के लिए थोड़ी सी मिठाई खरीद सकता है । "बच्चों की ख़ुशी ही तो अपनी ख़ुशी है साहब । उनको तो कैसे भी करके खुश करना ही चाहिए । आखिर दीवाली जो है ।"


ना जाने देश में ऐसे कितने मोती होंगे जो रोजी रोटी के लिए ऐसे छोटे छोटे ठेले लगाकर गाँव शहर की गलियों के नुक्कड़ों पर बैठते हैं, महीनों लगाकर मिटटी के दिए या कागज़ के फूल घरों में बैठ कर बनाते है, और हम इन्हें नजरअंदाज करके बढ़ जाते है बड़े बड़े मॉल और शो रूम की तरफ । उसी वस्तु के तीन चार गुणा दाम दे के खरीदने के लिए, जो मोती जैसा गरीब बहुत सस्ते में दे रहा था ।

क्योंकि हमारी मानसिकता इस तरह की हो गयी है की बड़ी दूकान का सामान ज्यादा अच्छा होगा । फिर पैसे भले ही दुगुने तिगुने खर्च हो जाए । परवाह नहीं।



दोस्तों इस बार, या हर बार, ऐसा करें की कुछ सामान इन गरीब ठेले वाले, जमीन पर चटाई बिछाकर सामान बेचने वालों से भी बिना मोल भाव किये खरीदें, ताकि ये लोग भी अपनी जरुरत की वस्तुएं खरीद सके, दीवाली मना सके, इनका परिवार, इनके बच्चे भी खुशियां मना सके । यकीन मानिए, आपकी दीवाली का आनंद दुगुना हो जाएगा । थोड़ी सी खुशियां इनको भी बांट दीजिये ।

"आखिर दीवाली जो है ।"

चलते चलते आप सभी को रौशनी के पावन पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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जय हिन्द

...शिव शर्मा की कलम से...









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धन्यवाद

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1 comment:

  1. Very good Sharmaji. Happy diwali to you and your family.

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