Sunday 8 November 2015

परदेश की दीवाली - Pardesh Ki Diwali



परदेश की दीवाली - Diwali Celebrations in foreign countries by Indians.



धूम धड़ाका, रौशनी और उमंग का त्योंहार दीवाली । खुशियों का त्योंहार दीवाली । बस कुछ ही दिन बाकि है । समझो आ ही गया । पूरे एक साल प्रतीक्षा करवाता है ये । पर ये भी सच है कि एक साल बाद आता है इसीलिए इतना अच्छा लगता है ।

ये पांचवीं दीवाली होगी जो मेरे यहाँ परदेश में रहते आ रही है । घर परिवार, अपने लोग और अपने देश से दूर । भला परदेश की दीवाली भी कोई दिवाली है । ना दीपों की जगमग ना कोई धूम धड़ाका । वो मिठाइयां भी कहां है जो हिन्दुस्थान में घर घर में बनती है ।

परदेश की दीवाली - Pardesh Ki Diwali

दिवाली हो या होली, या फिर कोई और त्योंहार, एक अलग संस्कृति, अलग विचारों वाले देश में  लगता ही नहीं है दीवाली है । हाँ कोशिश जरूर ये रहती है की अपने त्योंहार को कुछ महसूस करें, ऑफिस में सभी भारतीय मिलकर पूजा करते है । मिठाई भी बांटी जाती है । इस बीच स्थानीय ग्राहक भी आते रहते हैं । यहाँ के स्थानीय कामगारों को थोड़े चावल ब्रेड और शीतल पेय की एक एक बोतल दी जाती है । फिर सब अपने काम पर लग जाते हैं । रोज की तरह ही दिवाली के दिन भी काम होता है ।

शाम को रोजमर्रा की तरह जब घर आते हैं तो वो लोग, जो सपरिवार यहाँ रहते हैं, वे लक्ष्मी पूजन जरूर करते है लेकिन जो लोग अकेले रहते हैं वो हमारी तरह ही घर के दरवाजों पर कुछ मोमबत्तियां जला कर, कुछ फुलझड़ियाँ जलाकर दीवाली का आनंद लेते हैं । फिर रोज की तरह टेलीविजन में कोई धारावाहिक या सिनेमा देखने बैठ जाते हैं ।


यही दीवाली भारत में कितनी शानदार हुआ करती थी । हफ़्तों पहले घरों की साफ़ सफाई में लग जाते थे । गृहमंत्री जी यानि पत्नी जी का आदेश होता था "इस रविवार रसोई की साफ़ सफाई करनी है, आप कोई और झमेला मोल मत ले लेना, मुझे पुरे दिन आप घर में ही चाहिए, हां ।"

फिर तो उस दिन हम हाथ में कभी झाड़ू तो कभी पोंछा लेकर हर वो कोना, जहाँ श्रीमतीजी का हाथ नहीं पहुँच पाता, साफ़ करते नजर आते थे । रसोई का हर एक डिब्बा, हर एक बर्तन चमकाया जाता था । मसलेदानी से लेकर रसोई में लगे पंखे तक को धोया जाता था । कितनी तेजी से श्रीमतीजी के हाथ उन पर चलते थे । और हम पंखे की एक ब्लेड साफ़ करने में पसीने पसीने हो जाते थे।


परदेश की दीवाली - Pardesh Ki Diwali

शाम को जब लगता कि अब सब पूर्ववत हो गया है, तब गृहलक्ष्मी रसोई की सफाई में बची सैंकड़ो कमियां हमें दिखाया करती थी । फ्रिज के पीछे की धुल साफ़ नहीं हुयी, पंखे की रोड पर चिकनाई नजर आ रही है । दरवाजे के हत्थे पर तो अभी भी कालिख सी दिख रही है । वगैरह वगैरह ।

शायद इसीलिए उनको गृहलक्ष्मी का नाम दिया गया है । हम थक जाते हैं परंतु वे हमारे बराबर या हमसे ज्यादा काम करके भी नहीं थकती । संसार की सभी गृहणियों को नमन । आप सच में घर की लक्ष्मी होती हैं, आप से ही घर, घर लगता है । पता नहीं ईश्वर ने इतनी ऊर्जा आप में कैसे भर दी ।

बचपन की दीवाली तो और भी जानदार शानदार हुआ करती थी । कुएं से पानी निकाल निकालकर बाल्टियां भर के घर की सफाई करती माँ और भाभी की सहायता करना अच्छा लगता था । सभी भाई बहनों को एक ही थान में से काटे हुए कपड़े से सिले वस्त्र मिलते थे ।

पिताजी तो दिवाली पर कम ही हमारे साथ होते थे, जीविकोपार्जन और घर की जरूरतों को पूरा करने हेतु वे राजस्थान से बहुत दूर पूर्वोत्तर भारत के प्रदेश में थे ।

परदेश की दीवाली - Pardesh Ki Diwali

दीवाली के रोज बड़े भैया बाजार से लाये हुए पटाखे फुलझड़ियाँ हम सब भाई बहनों में बांटा करते थे । घर में माँ, दीदी और भाभी मिलकर तरह तरह के पकवान बनाती थी जो पूजा के पश्चात घर के सभी सदस्य साथ बैठ कर चटखारे ले ले कर खाते थे । देशी घी युक्त, ढेर सारा मावा डाल के मूंग दाल का हलवा तो शायद हर घर में बनाया जाता था ।

बचपन ही शायद ऐसा वक्त होता है जो बहुत तेजी से गुजर जाता है । समयोपरांत हमें लगता है की जीवन का असली रंग या सही माने में जीवन तो वही था । बचपन वाला ।

हम भी बाद में जीवन की चुनौतियों का सामना करने, उनसे निपटने के लिए गाँव छोड़कर मुम्बई आ गए थे । दीवाली मुम्बई में भी जोर शोर से मनाते थे मगर मन गाँव की दीवाली में ही अटका होता था ।

अपने अपने कार्यस्थलों में दिन में दीवाली पूजन करते थे । साथ में काम करने वाले सभी कर्मचारी और बॉस सभी पूजा के बाद साथ में भोजन करते थे । दीवाली का बोनस भी मिलता था ।

रात्री में घर पर मुहूर्तनुसार लक्ष्मी पूजन करते थे । फिर गांव से फ़ोन आ जाया करता था या हम कर लेते थे । शुभकामनाओं, प्रणाम और आशीर्वादों का आदान प्रदान होता था ।

परदेश की दीवाली - Pardesh Ki Diwali

 Nigeria Diwali Celebrations

दीपावली के अगले दिन भी कार्यालय से छुट्टी हुआ करती थी । हम सबके घरों में जाके बड़ो के चरण छु के आशीर्वाद लेते थे । अच्छा लगता था । और पाचन शक्ति का तो क्या कहना, बीसियों घरों में दिवाली का नाश्ता हो जाया करता था मगर मजाल है जो बदहजमी हो जाए ।

अब अपने देश, अपने परिवार, अपने दोस्तों से हजारों मील दूर दीवाली आती है, होली आती है और चुपके चुपके चली भी जाती है । मगर इन मौकों पर जब वो भूली बिसरी मीठी मीठी यादें ताजा होती है तो लगता है जैसे मुंह रसमलाई से भर गया है ।

जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए हम अपनी मिट्टी, अपने वतन से दूर तो आ गए लेकिन हर मौके पर उसकी कमी जरूर खलती रहती है ।

आप सभी को दीपों के त्योंहार दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें । सुरक्षित और खुशहाल दिवाली मनायें ।

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जय हिन्द

...शिव शर्मा की कलम से...












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