Saturday 28 November 2015

खूबसूरत बंटवारा - Khoobsurat batwara, Property partition Between two brothers



खूबसूरत बंटवारा - Khoobsurat batwara

Property partition Between two brothers

"मोती जरा पांच किलो देसी घी देना" बाहर से पंडितजी की आवाज आई तो मोतीलाल की आँख खुल गयी । गर्मियों की तपती हुयी दुपहरी थी । इस वक्त ग्राहक यदा कदा ही आते थे इसलिए मोती एक आध झपकी ले लेता था । पंडित जी को इस आग बरसती धुप में अपनी दुकान पर देख मोती भी आश्चर्यचकित था ।

"प्रणाम पंडितजी, इतनी गर्मी में आने की क्या जरुरत आन पड़ी गुरुदेव ।" मोती ने आदर के साथ पंडितजी से पूछा ।


खूबसूरत बंटवारा


"तुम्हे नहीं पता क्या? तुम्हारे छोटे भाई छगन ने आज शाम को हवन रखा है ना मंदिर में ग्रह शांति का ।"

" नहीं, शायद भाई बताना भूल गया होगा, अभी परसों ही तो आसाम से आया हैं, अचानक हवन का विचार बना लिया होगा ।" मोती ने पंडितजी को घी का डब्बा देते हुए एक संतोषजनक जवाब भी दे दिया ।

छोटे से गांव में एक छोटी सी दुकान कर रखी थी मोती ने । आमदनी कुछ ज्यादा तो नहीं थी पर घर की जरूरतें पूरी करने के लिए काफी थी । छगन आसाम रहता था, और कमाई भी अच्छी थी । भाई की अनुपस्तिथि में मोती अपने परिवार के साथ साथ अपने भाई के परिवार का भी ध्यान रखा करता था । दो साल पहले तक तो वे सब साथ ही रहते थे ।

भाई साल डेढ़ साल में गांव आता तो मोती से हिसाब बताने को कहता था । मोती हंसकर टाल देता था कि मुन्ना हिसाब किस चीज का । अपनी ही दुकान तो है । अब इस दुकान से सामान मेरे घर गया या तुम्हारे घर, क्या फर्क पड़ता है ।



छोटे भाई ने दो साल पहले ही अपना मकान बनवाया था,  जो मोती की ही देखरेख में बना था । भाई तो आसाम रहता था । गांव में वो ही तो था, भाई का मकान बनवाने हेतु । वो पैसे लेकर जाता था और कारीगरों द्वारा लिखाया सामान शहर से ला देता था । बचे हुए पैसे वापस हिसाब के साथ अपनी पत्नी के द्वारा भाई की पत्नी को दे दिया करता था ।

खुद पैतृक मकान में रहता था । ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था इसलिए पिताजी ने बाहर वाले कमरे से गली की तरफ एक दरवाजा खुलवाकर उसे दूकान का रूप दे दिया था, और कई वर्षों से मोती उस दुकान से अपनी रोजी रोटी चला रहा था । पिताजी के असमय चले जाने के बाद भाई को भी इसी दुकान की बदौलत पढ़ा लिखा कर आसाम भिजवाया था ।


खूबसूरत बंटवारा


पंडितजी के जाने के बाद वो थोडा चिंतित सा हो गया । भाई हवन करवा रहा है और मुझे बताया तक नहीं, क्या बात हो सकती है । आज सुबह उसका व्यवहार भी कुछ अटपटा सा था । कह रहा था भाईजी आपसे कुछ बात करनी है ।

क्या बात है छगन, मोती के पूछने पर उसने इतना ही कहा था "शाम को आता हुं ।"

मोती ने सर को झटका दिया और ख्यालों के समंदर से बाहर निकला । दुकान के बाहर खड़ा एक बच्चा चॉकलेट मांग रहा था ।

शाम को करीब पांच बजे छगन आया । हाथ में कुछ कागजात थे और साथ में पटवारी और वकील साब भी थे। छगन ने जो कहा उसे सुनके तो मोती के पैरों तले जमीन ही खिसक गयी ।

"भाईजी, अब समय आ गया है की हम अपने पिताजी की संपत्ति का बंटवारा कर लें ताकि बाद में बच्चे आपस में ना झगड़े । मैंने पटवारी जी से नक्शा बनवा लिया है । आप भी देख लें।"

मोती ने नक्शा देखा तो उसमें उसकी आधी दूकान भाई के हिस्से में जा रही थी, और जो बचती वो इतनी नहीं थी कि उसमें वो अपना छोटा सा कारोबार ठीक से कर पाता । घर भी छोटा सा हो जाता। बच्चे बड़े हो रहे थे । उनकी शादी के बाद तो समस्या हो जायेगी । मोती टूट सा गया ।


उसकी आँख से आंसू निकल पड़े । जिस भाई को अपने पुत्र की तरह पाला । पिताजी की कमी महसूस ना होने दी, वो ही भाई, जिसके पास किसी चीज की कमी नहीं है, बंटवारे की बात करने आया है ।

"क्या हुआ भाईजी, कागजात सही है ना?"

"तुमने बनवाये हैं तो सही ही होंगे" मोती ने थोड़ा अपने आप को संभाल कर कहा ।

"फिर इन कागजातों पर दस्तखत कर दीजिये, मैंने कर दिए हैं । गवाह के तौर पर वकील साहब और पटवारी जी के भी हस्ताक्षर हैं । आप भी एक बार पढ़कर हस्ताक्षर कर दीजिये ताकि भविष्य में चचेरे भाइयो में कोई अनबन ना हो।"

मोती ने कांपते हाथों से कागजात लिए और जैसे ही कुछ शब्द पढ़े, उसकी आंखों से आंसुओं की धार बह उठी, उसने कसकर अपने भाई को गले लगाया और फफक फफक कर रो पड़ा ।


खूबसूरत बंटवारा


उस करारनामे में लिखा था "मैं छगन लाल, अपने पूर्ण होशोहवाश में अपनी पैतृक संपत्ति का अपना पूरा हिस्सा, अपने पिता समान बड़े भाई श्री मोती लाल के नाम करता हुं । जिस पर भविष्य में मैं या मेरे बच्चे कोई भी दावा नहीं करेंगे । क्योंकि इसके एवज में मेरे भ्राता मुझे इसकी कीमत से कहीं ज्यादा दे चुके हैं ।"

निचे उसके, वकील और पटवारी के दस्तखत भी थे ।

"ये क्या है पगले, मुझे माफ़ करना छगन, मैं तो कुछ और ही सोच रहा था।" मोती ने रुंधे गले से कहा ।

"कुछ नहीं भाईसाहब, ये तो सिर्फ उस हिसाब का सूद है जो आपने मुझसे कभी नहीं लिया । आप यहां थे इसलिए मुझे यहां की कोई चिंता नहीं रहती थी और आसाम में मैं अपना काम मन से करता था, पैसे जमा करता था, आज मेरे पास आपके द्वारा ही बनवाया हुआ घर है," छगन ने बड़े भाई की आँख के आंसू पोंछे और फिर मुस्कुराते हुए बोला, " अब मकान भी दो और हम भाई भी दो, तो दोनों के हिस्से में एक एक मकान ही आएगा ना भाईजी।"

तभी रसोई में से खिलखिलाने की आवाज आई जहां देवरानी जेठानी चाय बना रही थी । कुछ देर बाद मोती की पत्नी चाय ले कर आई और मोती से कहा "आज छगन ने मंदिर में ग्रह शांति का हवन रखवाया है, बहु ने कल मुझे बताया था लेकिन पता नहीं क्यूं, छगन और इसने मुझे कहा कि आपको नहीं बताऊं।"

खूबसूरत बंटवारा


पत्नी बोले जा रही थी मगर मोती तो सोच रहा था कि आज के इस स्वार्थी समय में बंटवारे का ये रूप भी हो सकता है ।

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...शिव शर्मा की कलम से...








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