Sunday 22 November 2015

कुछ तो लोग कहेंगे - Kuchh to log Kahenge

कुछ तो लोग कहेंगे - Kuchh to log Kahenge


"कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना । छोड़ो बेकार की बातों में, कहीं बीत न जाये रैना ।" अमरप्रेम फिल्म का ये गीत कितनी सच्चाई छुपाये हुए था अपने शब्दों में ।

कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना । लेखक ने कुछ ही पंक्तियों में जीवन की हकीकत बयां कर दी । लोग मौका ढूंढ ही लेते हैं कुछ कहने का । यही तो होता आया है सदियों से ।

किसी में कोई बुराई है तो लोग कुछ कहेंगे ही कहेंगे, लेकिन किसी में अच्छाइयां है तो भी कुछ खास किस्म के लोग उसमें कुछ ना कुछ ढूंढ निकालेंगे, कुछ कहने के लिए ।

परीक्षा परिणाम आता है । कुछ विद्यार्थी उत्तीर्ण तो कुछ अनुत्तीर्ण भी हो जाते हैं । अब जो अनुत्तीर्ण हो गए उनकी तो शामत आ जाती है कहने वाले लोगों की सुन सुन कर । परंतु जो उत्तीर्ण हुए हैं उनको भी "कुछ तो लोग कहेंगे"।

"क्या रे श्याम, पास हो गया, कितने अंक आये?"

"जी हां चाचाजी, 70 प्रतिशत अंक आये"।

"बस्स्सस्स, 70.... दीनू के तो 78 प्रतिशत आये"

"चाचाजी दीनू पांचवीं कक्षा में था और मैंने दसवीं की परीक्षा दी थी"

"तो क्या हुआ, प्रतिशत तो प्रतिशत ही होते हैं।"




श्याम बेचारा निरुत्तर होकर "अच्छा चाचाजी प्रणाम, चलता हुं," कहकर वहां से खिसक लिया ।

लगभग इसी तरह की मिलती जुलती बातें देख सुनकर हमारे अंदर भी ये डर गहरे तक बैठ जाता है "लोग क्या कहेंगे"। इसके चलते हम बहुत से कार्य शुरू करने से पहले ही रद्द भी कर देते हैं । और जीवन भर जूझते रहते हैं फिर एक समय ऐसा आता है जब हमें लगता है की, उस वक्त, अगर थोड़ा साहस कर लेता तो आज जीवन की तस्वीर शायद कुछ और होती । लेकिन इस डर की वजह से कदम पीछे खिंच लिए थे कि कहीं असफल हो गया तो लोग क्या कहेंगे ।

आप सफल लोगों के बारे में पढ़िए । उनमें प्रायः सभी या अधिकतर वो लोग है जिन्होंने इस बात पर तवज्जो ही नहीं दी कि लोग क्या कहेंगे । वे तो बस अपनी धुन में जो उनको सही लगा वो करते गए और उन्होंने वो पाया जो वो पाना चाहते थे ।

लोग क्या कहेंगे का भूत हम लोगों के सर पर ऐसा चढ़ जाता है कि हम कई जगह अपने मन की इच्छाओं को भी मार लेते हैं । कमाल है..... लोग क्या कहेंगे ये सोचकर क्या आप अपने दिल की भी नहीं सुनेंगे । आपका दिल अगर नाचने को कर रहा है तो नाचिये ना । लोगों का क्या है, लोगों का तो काम ही है कहना ।

जो व्यक्ति इस डर से ऊपर उठ जाता है, उसके पास अगर कुछ नहीं भी है तो भी बहुत कुछ है । क्या हुआ अगर उसके पास मोटर गाड़ी नहीं है । साईकिल तो है, पेट्रोल भी नहीं लगता और कसरत भी हो जाती है । घर में फ्रिज नहीं है तो क्या हुआ, मटके का पानी भी ठंडा और स्वादिष्ट होता है । अब लोग कहते हैं तो कहते रहे कि इसके घर में फ्रिज नहीं है । वो बंदा तो मटके का पानी पी के अपने आप में मस्त है ना ।

इसी के उल्टे अगर किसी के पास फ्रिज है, तो वो "कथित लोग" कहेंगे, "फ्रिज का पानी नहीं पीना चाहिए, स्वास्थ्य के लिए ख़राब होता है । आप मटका क्यूं नहीं रखते? उसमें भी पानी ठंडा रहता है और तबियत भी नहीं बिगाड़ता ।"

उसी कहानी की तरह जो मैंने वर्षों पहले पढ़ी थी कि एक गाँव में दूध की एक डेयरी थी । वो गाय का शुद्ध दूध बेचते थे । दुकान के बाहर एक पट्टिका लगी हुयी थी "यहां गाय का ताजा दूध मिलता है"।

एक दिन कोई "रायचंद" आया उसने कहा कि जब आप गाय का ही दूध बेचते है तो पट्टिका पर इतनी लंबी सुचना लिखने का क्या मतलब । इतना लिखना ही काफी होगा " ताजा दूध मिलता है"।

इसी तरह एक अन्य बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा ताजा दूध मिलता है लिखने की क्या जरुरत है, आप बासी दूध तो बेचते नहीं हो, इसलिए इतना लिखना ही बहुत होगा की दूध मिलता है ।

बाद में एक अन्य गुणी व्यक्ति ने कहा की दूध की दुकान पर तो दूध ही मिलेगा, लिखने की क्या जरुरत है? तो बेचारे डेयरी मालिक ने वो पट्टिका ही उतार दी ।

कुछ दिन पश्चात एक और विद्वान आये और उनसे कहा "भाई साहब, आप इतना अच्छी गुणवत्ता वाला दूध बेचते हो । आसपास के गाँवों में भी आपकी प्रशंशा होती है । तो दूकान के बाहर एक सुचना पट्टिका क्यों नहीं लगवा लेते की " "यहां गाय का ताजा दूध मिलता है"।"

ये ही हाल हर जगह है । कहने वाले लोगों की कमी नहीं है संसार में । इस लोग क्या कहेंगे के डर को दिल से निकाल फेंकिए दोस्तों और जो भी आपको उचित लगे एवं वो आपके, आपके परिवार और समाज के हित में हो तो आगे बढिए । आप अवश्य ही अपनी एक पहचान बना लेंगे । लोगों की परवाह मत कीजिये,

क्योंकि

"कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना"

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जय हिन्द

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...शिव शर्मा की कलम से...







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