Wednesday 4 November 2015

मेरी पहली कर्मभूमि - My First Working Place, Guwahati


मेरी पहली कर्मभूमि


My First trip out of Rajasthan to Guwahati via Delhi, Mughalsarai, Patna

यात्रीगण कृपया ध्यान दें । दिल्ली से गुवाहाटी जाने वाली तिनसुकिया मेल प्लेटफार्म नंबर चार पर आ रही है । दिल्ली के प्लेटफार्म पर खड़े मेरे कानों में जब ये सुचना पड़ी तो मेरे दिल की धड़कनें बढ़ने लगी । मस्तिष्क में हरे भरे आसाम प्रदेश की तस्वीरें बनने लगी।

पता नहीं कैसी होगी गुवाहाटी नगरी, कैसे होंगे वहां के लोग, रहने को कैसा घर मिलेगा? आदि अनुत्तरित सवाल दिमाग में उथल पुथल मचाने लगे ।

मेरी पहली कर्मभूमि


मैं पहली बार घर से दूर जा रहा था । आज तक मैं कभी राजस्थान से बाहर नहीं गया था और अब देश की राजधानी समेत कई राज्यों से होते हुए भारत के पूर्वांचल में बसे खूबसूरत राज्य आसाम जा रहा था । मन में अपने घर परिवार से दूर जाने की टीस रह रह के उठ रही थी परंतु साथ ही नई जगहें, नए लोगों से मिलने का उत्साह भी था ।



मैं अपने मौसेरे भाई के साथ जा रहा था, वे पिछले 5-6 वर्षों से आसाम में थे। कल रात की गाड़ी से हम दिल्ली के लिए रवाना हुए थे और आज सुबह दिल्ली पहुंचे थे । आज दिल्ली की कई गलियां मैंने देखी । चांदनी चौक में छोले भठूरे खा के तो आनंद ही आ गया था ।

गाड़ी प्लेटफार्म पर आ चुकी थी, मैं अपनी अटैची और छोटी बैग लिए भाईसाहब के साथ पहले से आरक्षित अपनी सीट पर आके बैठ चूका था । इस गाड़ी का डिब्बा कल वाली गाड़ी से बड़ा था । भैया से मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि ये ब्रॉड गेज की गाड़ी के डिब्बे हैं कल हम जिस गाड़ी में आये थे वो मीटर गेज के थे इसलिए चौड़ाई में छोटे थे ।

निश्चित समय पर गाड़ी रवाना हुयी इस बीच डिब्बे में सभी सीट पर यात्री आ चुके थे और साथ ही चाय बोलिये, नाश्ता नाश्ता, खाना बोलिये की आवाजें लगाते "चलते फिरते व्यापारी" भी ।

मेरा इन सबमें ध्यान नहीं था, संयोग से हमारी सीट खिड़की के पास वाली थी, भैया ने खिड़की से हाथ बाहर न निकालने की शर्त पर मुझे खिड़की के पास बैठने की मंजूरी दे दी थी । भैया तो कुछ देर बाद अन्य सहयात्रियों के साथ परिचय का आदान प्रदान करके बातों में व्यस्त हो गए थे और मैं चलती ट्रेन से बाहर के दृश्यों का आनंद ले रहा था । गर्मियों का मौसम था और शाम का समय, सो खिड़की से आने वाली हवायें भी सुहा रही थी ।

मेरी पहली कर्मभूमि



कितनी बड़ी थी दिल्ली! गाडी को चलते चलते लगभग पच्चीस मिनट हो चुके थे मगर अभी तक दिल्ली के उपनगरों में ही थी । कितनी भीड़ भी थी इस शहर में । दिन में जब हम बाहर निकले तो देखा, दुनिया भर की मोटर गाड़ियां, साइकिल रिक्शे और असंख्य लोग सड़कों पर इधर से उधर । हर तरफ भीड़ ही भीड़ ।

गाड़ी पूर्ण रफ़्तार से दौड़ रही थी । बाहर अँधेरा हो चूका था । चलते फिरते व्यापारी आ जा रहे थे । चना मसाला, ककड़ी टमाटर, इडली, भेल, अदरक इलायची वाली चाय इत्यादि स्वर रह रह के गूंज रहे थे ।

खाने का समय भी हो चला था । भैया ने मुझसे पूछा, भूख लगी क्या? खाना खायें? भूख तो लगी ही थी तो हमने कागज़ की तस्तरी में घर से लाया हुआ खाना खाया । सहयात्रियों से भी खाने की वस्तुओं का आदान प्रदान हुआ । फिर थोड़ी देर बातचीत का, हंसी मजाक का दौर चला । उसके पश्चात् सब अपनी अपनी शायिका पर सो गए ।

सुबह जब आँख खुली तो हम उत्तर प्रदेश से निकल कर बिहार में प्रवेश कर चुके थे । मुग़लसराय जंक्शन जा चूका था और कुछ समय बाद ऐतिहासिक शहर पटना आने वाला था । यात्री आपस में बातें कर रहे थे तो मुझे भी थोडा बहुत भूगोल का ज्ञान मिल रहा था ।

डिब्बे में माहौल लगभग कल जैसा ही था । चाय नाश्ते वाले "चलते फिरते व्यापारी" बदल चुके थे । नारियल पानी वाला एक और उस संख्या में जुड़ चूका था । भाषा में भी बदलाव था । बोल हिंदी रहे थे लेकिन हिंदी का उच्चारण बदल चूका था ।

मेरी पहली कर्मभूमि



यात्रियों के चेहरे पर थोड़ी सी थकन नजर आ रही थी । शायद 14-15 घंटे से लगातार यात्रा इसका कारण थी । अभी तो और एक रात इसी डिब्बे में अपना बसेरा है भाईजी, मेरे सामने वाली सीट पर बैठे यात्री ने भैया से मुखातिब होकर कहा । "हां भाईसाब, दूरी भी तो अढ़ाई हजार किलोमीटर की है दिल्ली से, समय तो लगेगा ही।"

तभी चाय चाय पुकारता चाय वाला आया तो हम सबने चाय पी । मैंने चाय पीते पीते बाहर झाँका, बाहर खेतों में लगे पेड़ गाडी के साथ साथ भागते नजर आ रहे थे । गर्मी बहुत थी ।

शाम होते होते गाड़ी पटना साहिब, सुल्तानगंज, भागलपुर, साहिबगंज होते हुए बंगाल राज्य में प्रवेश कर चुकी थी । सब लोग थक कर चूर हो चुके थे सो शाम को जल्दी ही खाना खा के सोने की तैयारी में लग गए ।

"अभी तो कोकराझार स्टेशन आया है ।" किसी यात्री की आवाज सुनाई दी ।

मध्यरात्रि में जब गाड़ी रुकी तो मेरी भी नींद टूट गयी थी ।

"कम से कम 5 घंटे लगेंगे गुवाहाटी आने में, अभी बंगाईगाँव, नलबाड़ी, रंगिया जंक्शन आएंगे, आप सो जाओ आराम से।" वे शायद अपने किसी भाई बंधू से कह रहे थे ।

मेरी पहली कर्मभूमि

मुझे भी थोड़ी देर बाद वापस नींद आ गई थी । सुबह 6 बजे भैया ने मुझे जगा दिया । बोले, थोड़ी देर में गुवाहाटी आने वाली है सो जल्दी से नित्यकर्म से निवृत हो के तरोताजा हो जाओ ।

बीस मिनट बाद मैं फ़ारिग होकर आया तो देखा भैया सारा सामान व्यवस्थित कर चुके थे । फिर हमने नाश्ता किया । साथ में लाया हुआ खाने का सामान लगभग समाप्त हो चूका था । आजीविका के लिए बाहर रहने वाले लोगों को खाने के सामान का भी कितना सही अंदाजा होता है, सोचकर मैं हैरान हो रहा था ।

कुछ देर बाद गाड़ी की रफ़्तार धीमी पड़ने लगी । भैया सीट से उठ गए और मुझे भी अपनी अटैची और बैग थाम कर दरवाजे की और चलने को कहा । प्लेटफार्म आ चूका था । थोड़ी देर धीरे धीरे रेंगने के बाद गाड़ी रुकी । गुवाहाटी आ चुकी थी । मैंने मन ही मन अपनी पहली कर्मभूमि को प्रणाम किया और भैया के साथ गाड़ी से उतरा।

माँ कामाख्या के सानिध्य में फलती फूलती गुवाहाटी नगरी पहली नजर में ही मनभावन लगी थी । आज अपनी जन्मभूमि छोड़ कर मैं एक नए जीवन की शुरुआत करने नए प्रदेश में नए नए लोगों के बीच आ गया था । एक अनजाना सा भय भी था मन में, साथ ही जीवन की चुनौतियों से लड़ना सिखने का रोमांच भी ।

आज भी गुवाहाटी की याद आती है तो याद आ जाते है वो पुराने दोस्त, जो उन पांच वर्षों के गुवाहाटी प्रवास के दौरान मिले थे । वो ब्रहमपुत्र नदी, जिसके किनारे बने बगीचे में कभी कभी टहलने जाया करता था । पहाड़ों की गोद में बसा कामाख्या देवी का मंदिर । और याद आता है क्रिकेट का वो हरा भरा मैदान, फैंसी बाजार की रौनक । और भी बहुत कुछ ।

मेरी पहली कर्मभूमि



गुवाहाटी की उस भूमी पर मैंने अपने जीवन की पढाई की प्राथमिक शिक्षा ली थी । बहुत से लोगों से बहुत कुछ सीखा था । नए नए मित्र मिले थे ।

तुमने मुझे बहुत कुछ दिया था गुवाहाटी, तुम्हे ह्रदय से प्रणाम । तुम सदैव याद रहोगी ।।

विदा लेने का मन तो नहीं है दोस्तों, गुवाहाटी की अनगिनत खट्टी मीठी यादें है जो मैं आपके साथ बाँट के ताज़ा करना चाहता हूँ, और आगे कभी करूँगा भी। मगर आज बस इतना ही । कल फिर मिलते हैं ।

मेरी पहली कर्मभूमि

Read गाँव और शहर का जीवन - Life of Villege and City


जय हिन्द

...शिव शर्मा की कलम से...








आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।.  Email : onlineprds@gmail.com

धन्यवाद

Note : Images and videos published in this Blog is not owned by us.  We do not hold the copyright.

3 comments:

  1. Sharmaji, Well written, My memories gone back to 28 years, my first journey to Mumbai from my native place. I appreciate your effort to write such detailed and beautiful blogs. Please keep it up.

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete