Saturday 26 December 2015

दर्द ए जुदाई । Dard-e-Judaai


 दर्द ए जुदाई । Dard-e-Judaai, The Pain of Separation


हम सब साथी बैठे गपशप, हंसी मजाक कर रहे थे । हमारा एक साथी अगले दिन भारत जाने वाला था, उसका कॉन्ट्रैक्ट पूरा हो चूका था तो 2 साल बाद 2 महीने की छुट्टियों पर जा रहा था । इसलिए उसके घर पर सबने मिलकर एक छोटी सी विदाई पार्टी का आयोजन भी किया था ।

पुरे दो वर्षों बाद अपने वतन की मिट्टी, अपने परिवार, शुभचिंतकों और अपने दोस्तों से मिलने का उत्साह उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था ।

हम सब भी उसकी ख़ुशी में खुश थे, क्योंकि जा भले ही वो रहा था, मगर कल्पना में उसके साथ साथ हम भी मुम्बई एअरपोर्ट देख रहे थे, वहां से ट्रेन और बस यात्रा कर रहे थे ।

किसी शायर ने भी क्या खूब कहा है कि :
" जरूरी तो नही है कि तुझे आँखों से ही देखूँ,
तेरी याद का आना भी तेरे दीदार से कम नही।"



ईश्वर की कितनी सूंदर देन है मनुष्य को ये कल्पनायें । कल्पनाओं की उड़ान हमें पल भर में कहां से कहां ले जाती है । सोच सोच में हम पल भर में मानसिक रूप से अपने गाँव अपने घर पहुँच जाते हैं और इन्ही कल्पनाओं के माध्यम से हम देखने लगते हैं वो दृश्य जो हमारे दिलोदिमाग में बसे हैं । देश में अभी भोर हो गई होगी, दादी भगवान की आरती कर रही होगी, माँ गायों को चारा खिला रही होगी । भैया दफ्तर और बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे होंगे, इत्यादि इत्यादि ।

"भैया पासपोर्ट और टिकट संभाल कर रख लिए हैं ना ।" तभी किसी ने उस से पूछा ।

"हां, उनके बगैर तो हमें एअरपोर्ट में ही नहीं घुसने देंगे ।" उसने हंस कर जवाब दिया तो हम भी हंस पड़े ।

"चलो अब सब लोग खाना खाते हैं । नहीं तो ये ठंडा हो जाएगा । सुबह इन लोगों को जल्दी भी निकलना है ।" हमारे एक मित्र ने सुझाव दिया ।

"कल तुम चले जाओगे तो दो महीने सब सूना सूना सा लगेगा । गुड़िया तो बहुत याद आएगी ।"

"हां यार, ऑफिस में भी एक अधूरापन सा लगेगा"

"ध्यान से जाना, दो महीने में ही गुजरे दो सालों को भी जी के आना वहां पर" इस तरह की बातों के बीच हमने खाना खाया ।

फिर जब अपने अपने घरों को जाने का समय हुआ तो उसको गले मिलकर शुभयात्रा की शुभकामनाएं देते वक्त आँखें नम हो गई थी ।

सच है, किसी से भी जुदा होना तकलीफदेह होता है । वो मित्र दो महीने के लिए हमसे बिछड़ कर जा रहा था और हम उदास थे । लेकिन वो जिनसे मिलने जा रहा है वे तो पिछले दो वर्षों से उस से दूर थे । फिर जब वापस वो दो महीने बाद उनको छोड़कर, उनसे जुदा होकर आएगा तो उनकी पीर की कल्पना ही की जा सकती है ।



दर्द तो होता ही है जब कोई अपना अपनों से जुदा होता है, फिर रिश्ता चाहे खून का हो या दिलों का । हम किसी कारणवश अपना मोहल्ला भी बदलते हैं तो पिछले मोहल्लेवासियों से बिछुड़ने का दर्द दिल को सताता है ।

जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने घर, अपने परिवार, अपने इष्ट मित्रों से जुदा हो कर, इन सबको छोड़कर कहीं अन्यत्र जाना सबको पीड़ादायक लगता है । इस दर्द से आप भी गुजरे ही होंगे । लेकिन जुदाई का ये दर्द "कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है" वाली कहावत याद करके सब कोई सह जाते हैं ।

इन सबके साथ किसी को अपने वतन से भी जुदा होना पड़े तो टीस और बढ़ जाती है । मुझे हमेशा की तरह इसी बात पर किसी अनजान शायर का एक शेर याद आ गया ।

"किस्मत पर एतबार किसको है
मिल जाये खुशी तो इंकार किसको है
जिंदगी की कुछ मजबूरियां है दोस्त
वरना जुदाई से प्यार किसको है ।"

सही भी है । जुदा कौन किससे होना चाहता है । ये तो वक्त और हालात मजबूर कर देते हैं एक दूजे से बिछुड़ने को । वर्ना तो इंसान हमेशा ये ही चाह रखता है कि वो सदैव अपने देश में अपने घर परिवार, अपने लोगों के साथ ही रहे ।

किसी से जुदाई है तो किसी से मिलन भी है । बेटा, पति या भाई परदेश जा रहा है, कुछ अच्छी कमाई होगी तो आने वाला समय अच्छा हो जायेगा । कुछ सपने पुरे हो जायेंगे । जैसी बातेँ दिलों को सूकून दे देती है तो जुदाई का दर्द कुछ कम हो जाता है ।

खुदा किसी को किसी से जुदा न करे, आपसे भी जुदा होने का मेरा मन तो नहीं
कर रहा है । लेकिन आज की जुदाई कल के मिलन का सबब भी तो है । इसलिए आज विदा मित्रों । कल फिर मिलेंगे ।

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जय हिन्द

....शिव शर्मा की कलम से....

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