Thursday 28 January 2016

Badalta Samay - बदलता समय


बदलता सम



अपने सामने रखी छोटी सी टेबल पर बारीकी से नजरें जमाये पूरी तल्लीनता से विजय अपना काम करने में व्यस्त था । वो चांदी सोने के जेवर बनाने का काम करता था । इस वक्त भी शायद पायल में मीनाकारी कर रहा था । शाम हो चुकी थी ।

उसने एक छोटी सी दुकान कर रखी थी जहां बैठकर वो शहर के बड़े ज्वेलरी व्यापारियों के लिए जेवर बनाया करता, जिसकी एवज में उसे नग के हिसाब से पहले से तय रकम मिल जाती थी ।

दुकान का किराया और अन्य छोटे मोटे खर्चे चुकाने के बाद उसके पास इतनी रकम बच जाती थी जिस से घर खर्च तो आसानी से चल जाता था, परंतु कुछ बचत नहीं हो पाती थी । परिवार में उसकी पत्नी और एक बेटा था । उसके माता पिता का देहांत हो चूका था और कोई भाई बहन भी नहीं थे ।

उसका सपना था कि उसका एक खुद का शोरूम हो जहाँ वो अपने बनाये गहने रखे और बेचे ताकि जो मुनाफा उसके बनाये गहनों पर शहर के ज्वेलर कमाते है वो सीधा उसको मिले तो और भी कई तरह के सपने पुरे हो सके । लेकिन उसके लिए तो बहुत सारे पैसे चाहिए और पैसे उसके पास थे नहीं ।

विजय की बनाई पाजेब आसपास के कई गाँवों में प्रसिद्ध थी । लोग कहते थे उसके हाथ में कोई जादु है, इतनी बारीकी का काम हर किसी के वश की बात नहीं है ।

जितना बढ़िया कारीगर है उतना ही अच्छा इंसान भी । सबसे आदर के साथ बात करना, बड़े बुजुर्गों को सम्मान देना । विजय को आज तक कभी किसी ने गुस्से में नहीं देखा था । मुस्कराहट उसके चेहरे पर हमेशा खिली रहती थी ।

उसकी पत्नी भी संस्कारी थी । घर में कई तरह की जरूरतें थी जो अक्सर अधूरी ही रहती थी पर उसकी पत्नी ने कभी भी विजय को उनका आभास नहीं होने दिया । कभी कभी विजय सिमित कमाई को लेकर मायूस हो जाता तो वो उसका हौसला बढाती थी ।

कहते हैं ना वक्त कभी भी बदल सकता है । आज शहर में कोई मेला लगा था । गहनों की प्रदर्शनी का मेला, जिसमें तरह तरह की आकर्षक डिजाइन वाले सभी प्रकार के गहने प्रदर्शित किये जा रहे थे । अरब देश से कुछ भारतीय मूल के व्यापारी भी उस मेले में आये थे ।

उन व्यापारियों में चेन्नई के एक बहुत बड़े व्यापारी भी थे, जिनकी निकट भविष्य में इस शहर में भी अपना कारोबार शुरू करने की मंशा थी, उन्होंने उन गहनों में तरह तरह की खूबसूरत पाज़ेब शहर के लगभग हर व्यापारी के गहनों के साथ देखी तो आश्चर्य चकित हो उठे । नजर पारखी थी । वे पहचान गए की ये सारी पायजेबें किसी एक ही आदमी की देखरेख में बनी है । उन्होंने अपने तरीके से पता किया तो सब जगह से एक ही नाम मिला ।

"विजय" मीनाकारी करते विजय ने आवाज सुनी तो अपना सर उठाया । सामने खूबसूरत सूट पहने व्यक्ति को देखकर एक बार तो सकपकाया फिर अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराते हुए कहा,

"जी कहिये, लेकिन क्षमा कीजियेगा, मैंने आपको पहचाना नहीं ।"

"मेरा नाम विनोद जड़ाव है, चेन्नई में जड़ाव ज्वेलर्स नाम का शोरूम है मेरा ।"

"जी हां, मैंने नाम सुना है आपका" विजय ने कहा । "आइये बैठिये, मैं क्या सेवा कर सकता हुं आपकी ।"

"सेवा कुछ नहीं विजय, मैंने तुम्हारी बनाई हुयी ज्वेलरी देखी तो तुमसे मिलने चला आया ।" विनोद कहने लगे ।



" मैं शहर में एक शोरूम खोलना चाहता हुं, और चाहता हुं कि उसमें तुम्हारे बनाये हुए और तुम्हारी देखरेख में बने गहने रखें । मैं जानता हुं तुम नोकरी करने के पक्ष में नहीं हो इसलिए मैं तुम्हें साझेदारी का प्रस्ताव देता हुं । मेहनत तुम्हारी और पैसे मेरे । और हां शोरूम भी तुम्हें ही संभालना है ।"

विजय को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई थी । जड़ाव ज्वेलर्स बहुत बड़ी कंपनी थी और विनोद जी के बारे में उसने सुन रखा था कि वे इतने बड़े व्यापारी होकर भी जमीन से जुड़े हुए शख्स थे । आज उसने देख भी लिया था, खुद चलकर जो उसकी छोटी सी दूकान तक आये थे ।

विजय ने कुछ मुद्दों पर और बात करके प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था ।

आज दस वर्ष हो चुके हैं । शहर में विजय ज्वेलर्स अपनी एक अच्छी खासी पहचान बना चूका है । विजय का बेटा शहर के अच्छे कॉलेज में पढाई कर रहा है । विजय की जिंदगी बदल चुकी है, नहीं बदली तो उसकी चिरपरिचित मुस्कराहट और गहनों की बनावट की सुंदरता, उनमें तो समय के साथ और भी निखार आया है ।

दोस्तों, उपरोक्त कहानी महज एक कहानी नहीं है । अगर हम अपने काम के प्रति पूर्णतया समर्पित रहें, अपने व्यवहार को सरल और अपने आप पर विश्वास रखें, जो है उसमें खुश रहें । समय की आदत है बदलने की, कभी भी बदल सकता है ।

Click here to read "लक्ष्य - - Lakshya, Aim" written by Sri Shiv Sharma



जय हिन्द

****शिव शर्मा की कलम से***

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