Sunday 3 January 2016

सहनशीलता की हद - Sahanshilta ki hadd





भरत एक सीधा साधा लड़का था । भरा पूरा परिवार था । उसके पिता, दादा और भाई ऐसे तो तगड़े, हट्टे कट्टे थे मगर थे काफी शांत स्वभाव के । कुछ भी हो जाता मगर भरत का परिवार काफी संस्कारी था, इसलिए सब कुछ चुपचाप सह लिया करते थे ।

उनके पास एक लंबी चौड़ी हवेली थी, इतनी बड़ी की जिसको पूरी देखने के लिए हफ़्तों लग जाए । जगह जगह चौकीदार भी बिठा रखे थे जिनके पास इतने ताकतवर हथियार थे नाम सुनके ही रूह कांप जाए । हवेली में अक्सर कुछ गीत गूंजते रहते थे जिनमें प्रमुख था "होठों पे सच्चाई रहती है, जहां दिल में सफाई रहती है।"

इसके बिलकुल विपरीत भरत के पड़ोसी पोकर जी थे । उनके घर में दिन भर कुछ न कुछ उल्टा सीधा होता रहता था । रहस्यमयी उस घर का मुखिया कौन था, कौन उनके खर्चे पानी की व्यवस्था करता था, ये कभी किसी को समझ में नहीं आ पाया । सुनने में जरूर आता था की पड़ोसी मोहल्ले से उनको आर्थिक मदद मिलती रहती थी । जिस में से आधी से ज्यादा तो सिर्फ भरत और उसके परिवार को परेशान करने के जुगाड़ में खर्च हुआ करती थी ।

कुछ साल पहले पड़ोसी हवेली वालों ने कुछ आदमी भरत की हवेली में घुसा दिए थे, जिन्होंने हवेली के एक हिस्से पर हथियारों के जोर पर कब्ज़ा जमा लिया और चार पांच दिन तक पूरी हवेली के वासियों को दहशत के साये में जीने को मजबूर कर दिया था ।

अंतपंत भरत के हवेली के जांबाज चौकीदारों ने उन घुसपैठियों को मार गिराया था, और पहचान भी करली थी की वे पड़ोस की हवेली से आये हैं लेकिन पड़ोसी साफ़ मुकर गया था की वे उसके आदमी थे । भरत के परिवार ने उस वक्त भी वर्षों से चली आ रही परिवार की परम्परा को कायम रखा और अन्य मुहल्लों वालों को अपना गुस्सा दर्ज करवा दिया ।

कमाल की एक बात और थी, भरत के परिवार के मुखियाओं को ये भी पता था कि उनकी हवेली में अक्सर घटने वाली घटनाओं में पोकर जी का हाथ है, और बार बार उनकी हवेली में घुसकर मारकाट करने वाले बदमाश पोकर जी की हवेली से ही आ रहे हैं, फिर भी उनके संस्कार इतने लाजवाब थे कि वे पोकर साब को कुछ नहीं कहते थे, बस फ़क्त एक आध चेतावनियां दे दिया करते थे ।

समय बीतता गया, पीढियां बदल गयी मगर पोकर जी की हवेली से होने वाली गतिविधियों में कोई परिवर्तन नहीं आया । उस छोटी सी हवेली के बाशिंदे बड़ी हवेली वालों को हमेशा सताते रहे ।

अगर भरत के परिवार वाले चाहते तो उस पोकर जी और छोटी सी हवेली वालों को अच्छा भला सबक सिखा सकते थे परंतु भरत के दादा, पिता और भाई हमेशा शांति वार्ता के पक्षधर थे । वे अक्सर शांतिवार्ता के लिए पोकर जी की हवेली जाते रहते थे । लेकिन हर बार पोकर जी के पैंतरे अलग ही रहते थे ।

दरअसल पोकर जी के क्षेत्र में बहुत सारे लोग अपने आप को उस हवेली का मालिक समझते थे और उनका मकसद एक ही था, भरत की हवेली और उसमें रहने वालों को नुकसान पहुंचाना ।

कुछ वर्षों पहले पोकर जी वाली हवेली भरत की हवेली का ही हिस्सा थी, जिस पर किसी अन्यत्र मोहल्ले से आये लोगों ने 200 वर्षों से कब्ज़ा जमा रखा था ।



भरत की हवेली से उठती क्रांति की वजह से उन लोगों को वो हवेली छोड़नी पड़ी थी, पर जाते जाते वे पोकर जी के आदमियों को भड़का गए और भरत की हवेली में से उसे थोड़ा हिस्सा अलग कर के पोकर हवेली बनवानी पड़ी ।

बाद में पोकर जी ने भरत की हवेली की जमीन से भी थोड़ी जमीन और दबा ली, जहां सब जानते है की गुंडों की पैदावार की जाती है, जिनसे वे भरत के घर में घुसपैठ करवाके, हवेली के अलग अलग हिस्सों में बम धमाके, गोलीबारी करवाते रहते हैं । लेकिन हर बार भरत की हवेली के रक्षक शांतिवार्ता के बारे में ही पहल करते रहते हैं । जबकि चाहे तो भरत की हवेली वाले इतने ताकतवर है की पोकर जी की हवेली को कुछ ही पलों में जमीन पर ला सकते हैं ।

पता नहीं क्या मज़बूरी है भरत के दादा, पिता की । पोकर जी के आदमी आते है, भरत के मुंह पर थप्पड़ मार जाते है । हवेली के आदमियों को, रक्षकों को मार जाते हैं । लेकिन भरत के रिश्तेदार शांत रहते हैं, और दूसरे मोहल्ले वालों से बीच बचाव की गुहार लगते रहते हैं ।

गुस्सा भी दिखाते हैं, मगर सिर्फ बच्चों वाला गुस्सा । जिसमें किसी एक बच्चे को दूसरा जब थप्पड़ मारता है तो पहले वाला कहता है, "अबकी बार मार फिर बताता हुं", और वो दूसरा बच्चा फिर एक थप्पड़ चिपका देता है । पहला वाला फिर कहता है "अबकी मार फिर बताता हुं" । ये चलता रहता है और अभी भी चल ही रहा है । शायद आगे भी चलता रहे ।

दो दिन पहले भी दूसरे वाले बच्चे ने (जो पोकर जी की हवेली से ही आया था ) एक और थप्पड़ भरत को लगाई है, लेकिन भरत के शुभचिंतक हमेशा की तरह शांत है । एक और थप्पड़ खाने को तैयार ।

कहते है जुल्म करने वाले से जुल्म सहने वाला ज्यादा बड़ा गुनहगार होता है, ये जानते हुए भी भरत वर्षो से जुल्म सह रहा है, और पोकर जी की हवेली वालों से रिश्ते सुधारने की जद्दोजहद में लगा हुआ है । हवेली में गीत गूंज रहा है, "हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन"

...शिव शर्मा की कलम से....

7 comments:

  1. Wow... अब तक की आपकी सबसे उत्कृष्ट रचना है। सांप भी मार दिया और लाठी भी बचा ली। salute आपको।

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    1. धन्यवाद विशाल । इतना अच्छा उदहारण देने के लिए ह्रदय से आभार ।

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  2. Wah Sharmaji,

    बहुत खूब लिखा

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  3. कास ये मुखिया हमारी बेदना को समझते तो हमारे जवान तो रहते जो आज तिरंगे में लिपटे मिले!?????

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