Tuesday 29 March 2016

Ishq Da Rog - इश्क दा रोग

इश्क दा रोग

पहली नजर के इश्क में डूबे, बाहर आना भूल गए
दिल की धड़कन तेज हुई, पलकें झपकाना भूल गए

कल उनको देखा था हमने, अपने घर की खिड़की से
उनके हुश्न में खोए ऐसे, पीना खाना भूल गए

खोये खोये गुमसुम से हम, रहने लगे अकेले में
जाने कैसा रोग लगा, कहीं आना जाना भूल गए

माँ ने कहा था आज शाम को, आटा चावल ले आना
उनके खयालो में गुम थे, हम राशन लाना भूल गए

साईकिल से टक्कर दे बैठे, नुक्कड़ वाले चाचा को
घंटी तो मारी थी लेकिन, ब्रेक लगाना भूल गए

सोते खाते उठते बैठते, सूरत वही नजर आये
बैठे तकते रहते चिलमन, कॉलेज जाना भूल गए

उनको लेकर इन आँखों ने, ख्वाब हजारों देख लिए
नई शेरवानी सिलवाली, कोट पुराना भूल गए

एक दिन हिम्मत कर के हमने, कह दिया मम्मी पापा से
ना जाने क्यूं आप हमारी, शादी कराना भूल गए



चश्मा ऊपर कर पापा ने, घूरा ऐसी नजरों से
रूह हमारी कांपी, मन की बात बताना भूल गए

धेला एक कमाता नहीं, और बात करे तू शादी की
फटकारों की आंधी चली, तो हम इतराना भूल गए

माँ ने फिर जासूसी कर, सारे हालात पता करके
ऐसी करी खिंचाई फिर हम इश्क लड़ाना भूल गए ।।


Click here to read ईमानदारी का इनाम writen by Sri Shiv Sharma

***शिव शर्मा की कलम से**









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