Thursday 21 April 2016

Adhura Prem - अधूरा प्रेम


अधूरा प्रेम
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नमस्कार दोस्तों । आपकी महफ़िल में एक छोटी सी ग़ज़ल ले के आया हूँ, उम्मीद है "संयोग" की तरह इसे भी आप खूब पसंद करेंगे ।

ये ग़ज़ल एक ऐसे प्रेमी को मद्देनजर रख के लिखने की चेष्टा की है जो अपनी प्रेमिका से लगभग एकतरफा प्रेम करता है और उसका साथ पाने के लिए अंत तक उम्मीद का दीपक जला के रखता है ।

परंतु उसकी कथित प्रेमिका को या तो उसके प्रेम का पता ही नहीं होता है या वो अपने प्रेम का इजहार करने से डरती है ।

मेरा ये प्रयास कितना सफल रहा ये तो आप बताएँगे तभी जान पाऊंगा इसलिए बताना जरूर ।

अधूरा प्रेम
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हम थक से गए इजहार करते करते
मिलने भी गए थे कई बार डरते डरते

जमाने का डर था या कोई अनजाना ख़ौफ़
वो बाज ना आये इनकार करते करते

यकीं था कि कभी तो तरस खाएंगे
तनहाई डसती रही इंतजार करते करते

क्या पता कब नदी अपना रुख मोड़ ले
इस पार चली आये उस पार बहते बहते

जज्बा है जिगर में और मुहब्बत पे यकीन
जवां हो गया दिल में प्यार पलते पलते

कुछ तो उनके दिल में भी है शायद
पर चुप हो जाते हैं, कई बार कहते कहते


बन के दुल्हन एक दिन रुखसत हो गए
एतबार टूट गया एतबार करते करते

वक्त के साथ पानी बर्फ बन ही जाता है
आँखों में जम चुकी है इक धार बहते बहते

उम्मीद की शमा भी "शिव" कब तक जलती
पिघल के बह गई लगातार जलते जलते ।।


जय हिन्द मित्रों । फिर मिलेंगे ।

Click here to read जा की रही भावना जैसी Written by Sri Pradeep Mane


***शिव शर्मा की कलम से***









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3 comments:

  1. Bahut acha blog likhte hai aap sir. Lekin sir aap Apne Blog ki SEO nhi kar rahe Kuch cheezen Blog ke Liye Important Hoti hai. Blog ki SEO kare Hindisehelp.com ke Sath judkar.

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      आशा है कि आपके और सुझाव भी समय समय पर मिलते रहेंगे ।

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