Saturday 16 April 2016

Sanyog - II - संयोग (भाग-2)

संयोग (भाग-2)

....अब तक आपने पढ़ा की सर्वगुण संपन्न होने के बावजूद अजय की सगाई का कोई संयोग नहीं बन पा रहा था । कई अवांछित अड़चनें बीच में आ रही थी । फिर एक दिन अजय की बहन ने पुराने अखबार में एक विज्ञापन देखा और....

.. अब आगे......


लेकिन ये तो पांच महीने पुराना विज्ञापन है । भाभी ने कहा ।

"तो क्या हुआ, फोन करने में क्या हर्जा है भाभी, ज्यादा से ज्यादा ये ही तो हो सकता है कि वो लोग कहेंगे कि इसका रिश्ता या शादी हो चुकी है ।" अनु ने सुझाव दिया । "अगर ये जवाब मिला तो बात वहीँ ख़त्म, नहीं तो अजय भैया के लिए ये लड़की सही हो सकती है अख़बार में दिए गए विवरण के आधार से देखें तो"।

बात सही थी । लड़की पढ़ी लिखी, सूंदर और पच्चीस वर्ष की थी । भाभी को भी बात जंच गयी और मन में विश्वास लिए उसने भैया से अख़बार में दिए गए फ़ोन नंबर पर फ़ोन बात करने को कहा जो अखबारानुसार उस लड़की के बड़े भाई का था ।

"हेल्लो" सामने से आवाज आई तो भैया ने उत्सुकतावश सीधे ही पूछ लिया ।

"हेल्लो, हां जी नमस्ते, संयोग से आज एक पुराना अख़बार हाथ में आ गया, उसमें वर वधु चाहिए वाले कॉलम में आपकी बहन दिव्या के विवरण पर नजर पड़ी तो आपको फ़ोन किया ।

वैसे ये विज्ञापन पांच महीने पुराना है, क्या मैं जान सकता हूँ की दिव्या का कहीं रिश्ता पक्का हो गया या आप अभी लड़का ढूंढ रहे हैं । दरअसल मेरे छोटे भाई के रिश्ते के लिए हम भी एक लड़की की खोज में है ।"

"जी नमस्ते," लड़की के भाई ने शालीनता से जवाब दिया, "जी हां, अभी कहीं रिश्ता हुआ नहीं है, कुछ रिश्ते आये थे लेकिन किन्ही कारणों से कहीं रिश्ता हो नहीं पाया । वैसे आप बोल कहां से रहे हैं, और आपके छोटे भाई क्या करते हैं ?"

"दिल्ली से बोल रहा हुं जी, आपके शहर के पास से ही । भाई दुबई की एक कंपनी में इंजीनियर के पद पर कार्यरत है ।"

"ये तो अच्छी बात है, फिर आप अगर उचित समझें तो आ जाइये, मम्मी पापा से मिल लीजिये और लड़की देख लीजिये । बाकि बातें साथ बैठकर कर लेंगे । क्या पता कोई संयोग बन जाये ।"

"ठीक है जी, हम इस रविवार को आ रहे हैं ।" अनु ने देखा कि फ़ोन रखते वक्त भैया और भाभी के चेहरे पर सुकून के भाव थे । अनु भी मुस्कुरा दी ।

फ़ोन रखकर भैया हम से मुखातिब हुए और बोले, "यदि इस विज्ञापन में जो लड़की का विवरण दिया है, वो सही है तो ये लड़की अपने अजय के लिए सही हो सकती है । मैं माँ, पिताजी और अजय से बात करता हुं ।"

माँ से विचार विमर्श करने पर माँ ने भैया से कहा कि तुम, बहु और अनु जा के लड़की और उसका घर परिवार देख आओ । अजय ने भी तो कहा है की वो एक सप्ताह की छुट्टी ले कर आ सकता है, तो अगर बात बनती लगे तो अजय को बुला लेंगे और सगाई की रस्में कर लेंगे । पिताजी ने भी सहमति में सर हिलाया । अब बस इंतजार था रविवार का ।

अगले दो दिन में घर की साफ़ सफाई पूरी हो चुकी थी । आज शनिवार हो गया था । अजय की भाभी ने कल की तैयारियां शुरू कर दी थी ।

"कल सुबह हम 9 बजे यहाँ से निकलेंगे ।" भैया ने बताया । "उस वक्त यातायात भी थोड़ा कम रहेगा और मैंने उन लोगों को दस बजे का समय दिया है । हमें कम से कम एक घंटा तो लग ही जाएगा वहां पहुँचते पहुँचते । सो तैयार रहना ।"

माँ के कहने पर वे लोग सवा नो बजे घर से निकले लेकिन रास्ते में ज्यादा ट्रैफिक नहीं था अतः ठीक दस बजे वे अपने गंतव्य तक पहुँच गए थे ।

प्रथम दृष्टया उन्हें दिव्या का परिवार बहुत ही भद्र और व्यवहार कुशल लगा । उसका बड़ा भाई कॉलेज में प्रोफेसर था । पिताजी बैंक की नोकरी में थे । दो वर्ष पूर्व ही रिटायर हुए थे और अभी सामाजिक कार्यो में अपना वक्त देते थे ।



कुछ देर बाद वो वक्त आया जिसके लिए खासतौर पर भाभी कुछ ज्यादा ही उतावली थी । सूंदर सी पोशाक पहने हाथ में चाय की ट्रे लिए दिव्या आई । भाभी और अनु तो उसे देखते ही पसंद कर बैठे । रही सही कमी उसकी शालीनता और समझ भरी बातों ने पूरी कर दी । लगता था जैसे ये ही लड़की थी जिसे वे अब तक ढूंढ नहीं पाये थे ।

गृहकार्यों में निपुण दिव्या काफी पढ़ी लिखी भी थी । लम्बाई भी अजय से अमूमन 2 या 3 इंच कम होगी । कुल मिलाकर भाभी को तो वो इस हद तक भा गयी की उन्होंने दिव्या की माँ से कह दिया की हमें तो लड़की पसंद है । अगले हफ्ते तक अजय आ जायेगा तब आप हमारे यहाँ आ जाना । जिस घर में लड़की ब्याहने की बात चल रही है वो घर और हमारे देवर को भी देख लेना ।

दिव्या की माँ के चेहरे पर भी प्रसन्नता की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थी । उन्होंने अगले हफ्ते आने के लिए हां करदी ।

घर आकर अजय की माँ को जब ये सारी जानकारियां दी गयी तो उनकी ख़ुशी का कोई पारावार ना था ।

शुक्रवार को अजय आ गया था । आज रविवार को दिव्या के परिवार वाले आने वाले थे और वे अब किसी भी क्षण पहुँच सकते थे । सब परिवार वाले व्यस्त नजर आ रहे थे । आखिर अजय की सगाई का सवाल था ।

पंद्रह मिनट बाद वे लोग आ गए । दिव्या भी साथ थी । जब उन्होंने अजय को देखा तो उन्हें भी वो देखते ही पसंद आ गया । वैसे उन्होंने पिछले रविवार को फ़ोटो जरूर देखी थी परंतु फ़ोटो और वास्तविकता में बहुत अन्तर था ।

अजय और दिव्या भी एक दूसरे को पहली नजर में ही पसंद कर चुके थे । दिव्या थोड़ी लजा रही थी । तभी भाभी ने कहा कि हम दोनों परिवारों को तो लड़की लड़का पसंद है । क्यों ना कुछ देर के लिए इन दोनों को अकेले में कुछ बातें करने दें ।

अकेले में अजय ने दिव्या से सिर्फ इतना ही पूछा "क्या आप मेरी जीवन संगिनी बनेगी"

जवाब में दिव्या ने भी सवाल ही कर दिया "क्या आप मुझे अपना हमसफ़र बनाएंगे"। फिर दोनों मुस्कुरा उठे और अपने परिवारों को अपना फैसला सुना दिया ।

कुछ समय बाद निश्चित मुहूर्त में अजय और दिव्या की शादी हो गयी । आज उनकी शादी को दो साल हो गए हैं और अभी छः महीने पहले वे दोनों माता पिता भी बन गए ।

सच है, जोड़ियां ऊपर से ही बन कर आती है । इन दोनों की जोड़ी भी ईश्वर ने पहले से ही तय कर रखी थी, तभी तो एक "पुराने अखबार का हाथ में आना", अख़बार में "उसी विज्ञापन पर अनु की नजर पड़ना" और तब तक "दिव्या की सगाई का भी ना होना", इतने संयोग एक साथ तो तभी मिल सकते हैं जब इसमें उसकी इच्छा शामिल होती है, इसीलिए शायद कहा जाता है कि जोड़ियां ऊपर से ही बन कर आती है ।


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जय हिन्द


***शिव शर्मा की कलम से***










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