Sunday 5 June 2016

पंख (Pankh)

Image Source (http://www.gettyimages.in)

पंख  (Pankh)


नमस्कार दोस्तों । मुझसे आप परिचित तो हैं ही फिर भी एक बार और बतादूं । मैं प्रदीप माने, पेशे से इंजीनियर हूं और वर्तमान में नाइजीरिया की एक जानी मानी कंपनी में कार्यरत हूं ।

वैसे तो मैं मराठी में लिखता हूं, परंतु आप जैसे ही कुछ प्रिय मित्रों के सुझाव से हिंदी में लिखने का प्रयास भी कर रहा हुं । मेरी इसी मंच पर पूर्व प्रकाशित कुछ रचनाओं को आपका भरपूर स्नेह मिला जिस से उत्साहित हो कर मैंने ये ग़ज़ल "पंख" लिखने की कोशिश की है । यदि आपको ये रचना पसंद आये तो अपना स्नेहाशीष दें ।
(पंख)


ये एक कटु सत्य है कि बच्चे जब "बड़े" हो जाते है तो वो आजादी से उड़ने की सोचने लगते हैं, उनको अपने ही माता पिता और शुभचिंतक अपनी आजादी के दुश्मन दिखाई देने लगते हैं । इसी परिदृश्य को मद्देनजर रखकर कुछ शब्दों को जोड़कर एक माला बनाने का प्रयास किया है । आपके सुझावों और हौसला आफजाई की प्रतीक्षा करूँगा ।

पंख


पंख जो मिले तो वो उड़ने लगे घरौंदों से,
जहाँ ली थी छाँव भाग चले उन्ही पौधों से,

खता की थी जो सजाये महल मिट्टी के,
कब तक बचते सौदागरों के सौदों से,

देखे थे हजारों जो सोती जागती आँखों से,
सपने ही चुरा के ले गया कोई मेरी नींदों से,

(पंख)
Image Source (http://projectbeak.org/)

(पंख)

इस बार ना टपके छत मेरे आशियाने की,
मिन्नतें कर रहा है गरीब, बारिश की बूंदों से,

शायद अपनी ही गणित कुछ गलत थी,
हिसाब कैसे मिले बिगड़े हुए शहजादों से,

थोड़ी सी जो बची है जी लें किसी तरह,
कमजोरी झलक रही है टूटे हुए इरादों से,

क्यों तोहमत लगाऊं भला जमाने पर "आभास"
जब अपने ही मुकर जाते है किये हुए वादों से ।।
(पंख)

Click here to read "आ जाओ भैया" by Sri Pradeep Mane


पुनः आप सबको स्नेह भरा नमस्कार ।










--प्रदीप माने "आभास" की रचना

Click here to read Sri Pradeep Mane's Marathi Blog (आठवणीतल्या ओळी)


आपको ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।.  Email : onlineprds@gmail.com

धन्यवाद
शिव शर्मा



Note : Images and videos published in this Blog is not owned by us.  We do not hold the copyright.


2 comments: