Thursday 14 July 2016

Parivar - परिवार

परिवार - Parivar

आप सभी का हृदय से आभार मित्रों जो आपने "पहले तो तुम ऐसे ना थे" को इतना सराहा । इसी तरह अपना स्नेह देते रहें, मैं कोशिश करता रहुंगा और अच्छा लिखने की ।


आज आपकी अदालत में एक और कविता ले कर आया हुं, परिवार ।

आप सभी जानते हैं की बहुत पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे । समय के साथ परिवार बिखरते चले गए । इसी पुराने और आज के समय की बदली हुई पारिवारिक स्तिथियों को एक कविता के रूप में आपके सामने लाया हूँ ।

आशा है इसे भी आप "पहले तो तुम ऐसे ना थे" की तरह ही पसंद करेंगे और अपना भरपूर स्नेह लुटाएंगे ।

परिवार

दादा परदादा के वक्त में घर, घर जैसा होता था,
सब हिलमिल कर रहते थे, हर कोई चैन से सोता था,

रूखी सुखी जो मिलती, सब साथ बैठ कर खाते थे,
हर उत्सव त्योंहार साथ में, मिलजुल सभी मनाते थे,

खेत में जो कुछ हो जाता सब, उसमें ही खुश रहते थे,
सर्दी गर्मी हो तूफां हो, साथ साथ सब सहते थे,

एक दूजे के लिए समर्पण, श्रद्धा दिल में रहती थी,
सेवा आदर भरा पूरा था, प्रेम की गंगा बहती थी,



परिवार


वक्त ने ऐसी करवट बदली, उलट पलट सब कर डाला,
सब अपने तक सिमित हो गए, स्वार्थ मनों में भर डाला,

भाई भाई के मसले अब, अदालतों में जाते हैं,
पिता पुत्र भी एक दूजे से, कितने राज छुपाते हैं,

रिश्तों के परकोटे बने, कच्ची माटी से लगते हैं,
भाईदूज रक्षा बंधन, बस परिपाटी से लगते हैं,

कई कई वर्षों तक हम, आपस में मिल ना पाते हैं,
पत्ते जाते सूख प्रेम के, उपवन खिल ना पाते हैं,

भाग रहे सब दौड़ रहे, अपने ही सपनों के पीछे,
हौड़ में भैया लगे हुए, अपने ही अपनों के पीछे,






परिवार


माया की माया अलबेली, सारे इसमें झूल गए,
मैं मेरा के चक्कर में, सब रिश्ते नाते भूल गए,

संस्कारों की बातें सारी, सोच पुरानी लगती है,
श्रवण कुमार की कावड़ गाथा, महज कहानी लगती है,

प्रतिस्पर्धा की दौड़ में सूखी, कितनी दिवाली जाएगी,
पूरा परिवार मनाएं संग में, वो होली कब आएगी,

प्रेम पुराना फिर लौट आये, क्या ऐसा हो सकता है,
सारे मिल प्रयास करें तो, हां ऐसा हो सकता है,

एक दूजे में अटकी हरदम, एक दूजे की जान रहे,
एक दूजे की फिक्र रहे, मन में आदर सम्मान रहे,

मतभेद अगर हो कोई भी, सब साथ बैठकर सुलझाएं,
अपने घर की बातें, घर के बाहर जाने ना पाये,

मांग समय की है, घर से बाहर भी जाना पड़ता है,
जिम्मेदारियां बहुत बढ़ गई, धन भी कमाना पड़ता है,



परिवार


घर से दूर भी जाओ तो, संस्कार साथ में ले जाना,
दिल में बसाकर अपना तुम, परिवार साथ में ले जाना,

ईर्ष्या वाले बादल, मन के आसमान पर ना छाये,
अपने कारण आँख में आंसू, किसी के आने ना पाये,

बहु सास का अपनी माता, जैसा ही सम्मान रखे,
सास बहू को बेटी समझे और बेटी सा ध्यान रखे,

ननद भौजाई घुल जाए ऐसे, जैसे सखी पुरानी हो,
ससुर पिता जैसा हो, बहनों सी देवरानी जेठानी हो,

तकलीफों के पर्वत को, कोई एक अकेला ना ढोये,
चोट अगर जो लगे एक को, पीर दूसरे को होये,

राम लखन से भाई हो, बहनें स्नेह की मूरत हो,
बस ऐसा हो एक दूजे को, एक दूजे की जरूरत हो,

सच कहता हुं "शिव" जिस दिन, सच ये सपना हो जाएगा,
स्वर्ग से सुन्दर सपनों से प्यारा, घर अपना हो जाएगा ।।

        *    *    **

अपने विचारों से अवगत जरूर कराएं ।


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जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से***










आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।.  Email : onlineprds@gmail.com

धन्यवाद

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11 comments:

  1. वाह वाह, अति सुन्दर, भगवान करें आपका सपना जल्दी सही हो
    मनोज माटोलिया

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  2. अति उत्तम,

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  3. अतिउत्तम

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  4. अति उत्तम (पवन मटोलिय)

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