Monday 22 August 2016

दूसरा मौका (भाग २) - Doosara Mauka (Part - 2)

दूसरा मौका (भाग २) - Doosara Mauka (Part - 2)


.....अब तक आपने पढ़ा कि मलिक साहब पारीक जी को अच्छी तनख्वाह बढ़ोतरी का सपना दिखाते हैं, और ये जानते हुए भी कि पिछले कई वर्षों से मलिक साहब इसी तरह के सपने दिखा दिखा कर वक्त पर उन्हें टरका देते है, पारीक जी खयालों में डूबे आने वाले भविष्य के ख्वाब देखने लग जाते हैं, लेकिन हकीकतन क्या होता है....

प्रस्तुत है कहानी का दूसरा और अंतिम भाग.......


दूसरा मौका (भाग २)


.......वे जानते है कि यदि सफल होना है तो सबसे पहले खुद पर भरोसा करना जरुरी है । क्योंकि ये कहावत भी एक कटु सत्य है कि दुनिया को जब तक तुमसे काम है तब तक तेरा नाम है, वर्ना दूर से सलाम है ।

लेकिन अधिकतर लोग पारीक जी की श्रेणी वाले ही होते हैं, शायद कुछ जिम्मेदारियां भी उन्हें मजबूर कर देती है कोई जोखिम ना उठाने के लिए, इसलिए वे भी पारीक जी की तरह डरते हैं कि ये नोकरी छोड़ी तो पता नहीं दूसरी वाली नोकरी कैसी होगी । पता नहीं वहां क्या, कैसा और कितना काम होगा । इतनी तनख्वाह मिलेगी भी या नहीं ।

पारीक जी के भी ऐसे ही खयालात थे । वे तो ये भी सोचा करते थे की अगर नई कंपनी वालों को मेरा काम पसंद नहीं आया तो ? उन्होंने दो तीन महीने में मुझे छोड़ दिया तो?

फिर ये खयाल भी आता कि जितना काम मैं करता हुं और अनुभव भी काफी है उसे देखते हुए ये तनख्वाह कम है, शायद इतनी तनख्वाह तो कहीं भी मिल जायेगी, पर...... क्यूं रिस्क लें, पता नहीं...... अंत में फिर वही अनजाना ख़ौफ़ मस्तिष्क पर छा जाता और वो सिर झुकाकर वापिस अपने काम में लग जाते ।


दूसरा मौका


इसी डर का फायदा मलिक साहब जैसे बॉस उठाते रहते हैं, पता नहीं मलिक साहब की तरह के बॉस के पास ऐसी कौनसी छठी इंद्रिय होती है, जो उन्हें सुचना देती रहती है कि ये आदमी डरपोक है, वे उस आदमी का भरपूर इस्तेमाल करते हैं, और पता नहीं कितने पारीक जी इस अनजाने डर के चलते लायक होते हुए भी वो नहीं पा पाते जिनके काबिल वे होते हैं ।

जैसे अभी तेजी का दौर था और मलिक साहब को पारीक जी से काफी काम लेना था, इसलिए उन्होंने पारीक जी को "शानदार इंक्रीमेंट" का लॉलीपॉप थमा दिया था ।  पारीक जी भी तन मन से जुट गए थे कुछ धन प्राप्ति की आस में ।

वो महीना वाकई बड़ा व्यस्तता भरा निकला। शाम को देर तक बिक्री चालू रहती थी । बिल बनवाना, व्यापारियों से तकादा करना, सबका हिसाब रखना इत्यादि पारीक जी ने बखूबी संभाल रखा था ।

इस बीच एक दिन जब मित्रों के साथ बैठे थे तो बात चल पड़ी काम और तनख्वाह की । पारीक जी ने थोड़े दुखी मन से कहा "यार काम तो दिल लगाकर करता हुं, बॉस सराहना भी करते हैं, मगर तनख्वाह और बढ़ोतरी काफी कम है ।"


दूसरा मौका


तब उनके एक मित्र विजय ने उनको कहा, "पारीक जी मेरी कंपनी में आपके लायक एक पद रिक्त है, अगर आप कहें तो आपके लिए बात चलाऊं ? तनख्वाह भी अच्छी खासी मिलेगी, आखिर आप इतने अनुभवी, मेहनती और पढ़े लिखे हैं ।"

लेकिन पारीक जी ने हाथ हिलाकर कहा "नहीं यार विजय, मैं यहीं ठीक हुं ।"

विजय ये नहीं देख पाया था कि पारीक जी के चेहरे पर एक डर सा था । उसने बस इतना ही कहा "देख लीजियेगा, अगर मन बन जाए तो बताना । अच्छी कंपनी है हमारी। और हमारे बड़े साहब काम की क़द्र करने वालों में से है ।" उस वक्त बात आई गई हो गई थी ।

दिन गुजरते गए । इंक्रीमेंट का समय आ गया था । आज पारीक जी का चेहरा खिला हुआ था । सुबह मलिक साहब ने आते ही उनसे स्टाफ की वर्तमान तनख्वाह का विवरण मांगा था, सबका इंक्रीमेंट करने के लिए । पारीक जी सपने देखते हुए और भी तल्लीनता से काम में लग गए ।

शाम को वो वक्त भी आ गया जिसका सबको और खास तौर पर पारीक जी को बेसब्री से इंतजार था, मलिक साहब ने सबको अपने केबिन में बुलाया और बताया,

"मैंने बढ़ती महंगाई और सबके काम के मद्देनजर सभी का वेतन बढ़ाया है । जैसा कि आपको पता ही है कि अगले महीने हमारी कुछ और मशीनें भी आने वाली है । काफी खर्चा होगा । वो भी "हमें" ही देखना है ।" मलिक साहब ने सबकी तरफ चेहरा घुमाकर आगे कहा, " तो मैं उम्मीद करूंगा कि आप सब इस बात को समझते हुए इस इंक्रीमेंट से संतुष्ट होंगे ।" पानी का एक घूंट भर कर मलिक साहब ने कहा "अब आप सब जाइये, कल पारीक जी आपको सबका इंक्रीमेंट बता देंगे ।" सब के जाने के बाद उन्होंने लिस्ट पारीक जी को थमा दी ।


दूसरा मौका


पारीक जी ने बाहर आकर जिज्ञासावश अपने नाम के आगे की रकम देखी, उनके सारे सपने चकनाचूर हो गए, उनकी तो उम्मीदों पर घड़ों पानी गिर गया ।

सिर्फ तीन हजार पांच सौ । उन्होंने आँखे साफ़ करके देखा कि कहीं 8500 तो नहीं है जो उन्हें 3500 दिखाई दे रहे हैं, लेकिन वो तीन हजार पांच सौ ही थे, तो क्या ये पांच सौ ही वो रकम थी जिनके बारे में मलिक साहब उन्हें अकाल्पनिक बता रहे थे । उन्होंने लिस्ट अपनी टेबल की दराज में रखी और आँखें बंद करके कुछ सोचने लगे ।

पिछले वर्ष जब उन्होंने काम बढ़ोतरी के लिए मलिक साहब से बात की थी तो उन्होंने कहा था कि इस बार काफी मंदी थी, अगली बार देखेंगे । पारीक जी ने बॉस से कहा भी था कि सर खर्चे बढ़ते ही जा रहे हैं । मेरे काम से आप संतुष्ट भी है, फिर इतनी कम बढ़ोतरी क्यों ?




तब मालिक साहब ने ये ही बातें तो कही थी कि पारीक जी आप चिंता मत करो, वक्त आने पर मैं अपने आप आपकी तनख्वाह बढ़ा दूंगा । कब आएगा वो वक्त ? पारीक जी ने खुद से ही सवाल किया ।

फिर जैसे उन्होंने मन ही मन कुछ निर्णय लिया और फ़ोन उठा कर एक फोन लगाया, "हेल्लो विजय, पारीक बोल रहा हुं..........."

पांच सात मिनट बात करके फ़ोन रख कर वे मलिक साहब की केबिन में गए और मलिक साहब का जवाब सुनकर तो हक्के बक्के रह गए ।

उन्होंने जब कहा कि सर इंक्रीमेंट उम्मीद से बहुत कम है, तो मलिक साहब ने पहले तो उनकी दो चार कमियां गिनाई और फिर स्पष्ट कह दिया ।


दूसरा मौका


"इससे ज्यादा मैं और नहीं कर सकता, वैसे भी सबसे ज्यादा आपको ही इंक्रीमेंट दिया है । अब आपकी मर्जी है, आप जो निर्णय लें वो आप पर है परंतु इस बार इस से ज्यादा मैं और कुछ नहीं कर सकता ।" वे जानते थे की हर बार की तरह इस बार भी पारीक जी दो तीन दिन थोड़े से उखड़े से रहेंगे और फिर वापस उसी तरह अपने काम में लगे रहेंगे ।

लेकिन इस बार जो हुआ वो मलिक साहब के लिए भी अप्रत्याशित था । अगले दिन आते ही पारीक जी ने मलिक साहब को 15 दिन के अग्रिम समय के साथ अपना इस्तीफा सौंप दिया ।

मलिक साहब ने स्तिथि भांप कर उन्हें कुछ चिकनी चुपड़ी बातों से लुभाने का प्रयास किया, कुछ डर भी दिखाया कि आजकल जल्दी से दूसरी नोकरी मिलना काफी मुश्किल है, मगर पारीक जी ने सम्मान सहित उन्हें कहा कि नहीं सर, क्षमा कीजिये, पिछले छह वर्षों में मैंने आपकी कंपनी को अपनी पूर्ण सेवाएं दी, लेकिन मैं हर बार अपने आप को ठगा सा ही महसूस करता रहा । आपके साथ मै आगे भी रहना चाहता था परंतु अब शायद मैं यहां काम करूंगा तो भी पूर्ण निष्ठा से नहीं कर पाऊंगा । अतः आप मेरा इस्तीफा स्वीकार कीजिए और बताइये कि अपना काम किसे सौंपूं ।

मलिक साहब की नोकरी छोड़ने के बाद पारीक जी करीब एक महीने बेरोजगार रहे । इस बीच वे विजय की कंपनी में साक्षात्कार दे चुके थे परंतु लगभग 10 दिन बीत चुके थे और वहां से कोई जवाब नहीं मिला । विजय ने बताया था कि उसकी कंपनी के मुखिया कहीं विदेश यात्रा पर गए हुए थे । उनके आने के बाद ही निर्णय होगा ।

पारीक जी को अपनी योग्यता पर पूरा भरोसा था । मालिक साहब को छोड़ने और कुछ दिन घर पर शांति से बैठकर सोचने में उनमें एक जादुई आत्मविश्वास जाग चूका था ।

आज पारीक जी विजय की कंपनी में कार्यरत है । कंपनी के मुखिया ने तुरंत उनका चयन कर लिया था । जैसा विजय ने बताया था बिलकुल वैसा ही था, इस कंपनी में मेहनती और अनुभवी लोगों की काफी क़द्र थी ।


दूसरा मौका


महज तीन वर्षों में कंपनी ने उनकी कार्यक्षमता और कार्यकुशलता को देखते हुए अच्छी तनख्वाह के साथ साथ अच्छी पदोनत्ति भी दी है । उनका जीवन स्तर एकदम से बदल गया है । जीवन में किसी चीज की कमी नहीं है ।

आज रविवार था । पारीक जी आराम कुर्सी पर बैठे सोच रहे थे, विजय और उनके अन्य कई मित्रों ने उन्हें अनेकों नोकरियां सुझाई थी । काश ये हिम्मत पहले कर लेता तो इतने कष्टों वाला समय ना गुजारना पड़ता ।

फिर खुद को ही समझाया, देर आयद दुरुश्त आयद, अच्छा किया कि विजय की बात मान ली, वर्ना आज भी मलिक साहब के साथ ही होता, वर्तमान तनख्वाह से आधी भी वहां नहीं मिल रही होती और वैसे ही मुफलिसी में दिन काट रहा होता ।

आप सोच रहे होंगे कि मलिक साहब का काम किसने संभाला होगा, पारीक जी जैसा आदमी उन्हें मिला होगा या नहीं ।

जी हां, मलिक साहब को पारीक जी जैसे ही दूसरे पारीक जी मिल गए थे । आखिर दुनिया में बेरोजगारों की कमी थोड़े ही है ।

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Click here to read "दूसरा मौका (भाग-१)" Written by Sri Shiv Sharma


जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से***









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