Monday 21 November 2016

रिस्की है भाई

रिस्की है भाई नमस्कार मित्रों । रिस्क या जोखिम, एक ऐसी चीज है जिस से हर कोई बचना चाहता है, लेकिन ये किसी न किसी रूप में बीच में आ ही जाती है । वैसे आप भी जानते ही हैं कि रिस्क तो पग पग पर है । पल पल रिस्की है । और देखा जाए तो ये बात भी सही है कि रिस्क नहीं लेना ही सबसे बड़ी रिस्क होती है । मैंने भी सोचा कि चलो इसी शब्द पर कुछ लिखने की रिस्क ले लेता हुं, इसी आशा के साथ कि इस रचना को भी आप उतना ही पसंद करेंगे जितना मेरी पूर्व की रचनाओं को किया । अपने विचार जरूर बताएं । * * * * * रिस्की है भाई इस युग का हर ताना बाना रिस्की है, संभल के रहना यार ज़माना रिस्की है, सबसे बड़ी है रिस्क एक ही जीवन में, रिस्क उठाने से घबराना रिस्की है, कभी भरोसा आँख मूंद कर मत करना, सब को दिल का हाल बताना रिस्की है, मौका पाकर लोग घोम्प देते हैं खंजर हर एक को यूं गले लगाना रिस्की है, रहे पांव अपने चादर के अंदर ही, क्योंकि झूठी शान दिखाना रिस्की है, कुछ न मिलेगा भैया देखा देखी में हद से ज्यादा पंख फैलाना रिस्की है, गम ओ ख़ुशी में बहते है बह जाने दो, नयन-झील में आंसू दबाना रिस्की है, खुशियां जितनी बांटें बढ़ती जाती है दर्द मगर अपनों से छुपाना रिस्की है, ताकत पा कर जो आँखें दिखलाते हैं, ऐसे नेता चुन कर लाना रिस्की है, सनद रहे कि आस्तीन के सांपों को, भर भर प्याले दूध पिलाना रिस्की है, हस्ताक्षर करने की भी जो मांगे टॉफ़ी उस घूसखोर को बाबू बनाना रिस्की है, ना जाने कब वक्त की लाठी पड़ जाए दो नंबर का माल दबाना रिस्की है, महज खबर में आने को, किसी पर भी बिन सोचे इल्जाम लगाना रिस्की है, गर मौसम हो बिगड़ा और निरंकुश सा तब लहरों पर नाव चलाना रिस्की है, माना न्योता अरसे बाद मिला लेकिन ठूंस ठूंस रसगुल्ले खाना रिस्की है, वजन बढ़ गया लगी सेहत की चिंता पर, इस चिंता में रोटी ना खाना रिस्की है, घर पर रहना रिस्की है कहीं आना जाना रिस्की है, नहीं बोलना रिस्की है ज्यादा बतियाना रिस्की है कोई थोड़ी मदद करो अब आम आदमी करे तो क्या हवा भी रिस्की दवा भी रिस्की पानी ओ खाना रिस्की है, इस युग का हर ताना बाना रिस्की है, संभल के रहना यार ज़माना रिस्की है।। * * * * मैंने कहीं पढ़ा था कि यदि आप अपने हर कार्य में ईमानदार हैं तो आप को कभी भी भय का अनुभव नहीं होगा । अभी उन लोगों की नींदें उड़ गयी है जिन्होंने बेईमानी का अनगिनत खजाना देश और सरकार से छुपा के रखा था, वो पड़ा पड़ा ही मात्र एक साधारण कागज़ बन कर रह गया । दोस्तों, देश की सेवा में हमेशा अपना योगदान देते रहें, यकीन मानिए भारत निश्चित ही एक बार फिर सोने की चिड़िया बन उठेगा । जय हिंद *शिव शर्मा की कलम से***










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