Thursday 20 July 2017

Ek Woh Bhi Tha Zamana - एक वो भी था जमाना

एक वो भी था जमाना


एक वक्त था बिस्तर से हम भोर भए उठ जाते थे,
जितना बन पड़ता था काम में माँ का हाथ बंटाते थे,

लेकर डोर बाल्टी कुएं से पानी भर लाते थे,
पापा के जूते भी अक्सर पॉलिश से चमकाते थे,

दादाजी की छड़ी ढूंढ शाबाशी पाया करते थे,
दादी संग रामायण की चौपाई गाया करते थे,

खुद पढ़ते तो साथ बहन भाई को पढ़ाया करते थे,
सहपाठी मित्रों के संग कितना बतियाया करते थे,

हंसी ठिठोली मस्ती घर में हरदम छाई रहती थी,
शाम ढले नानी दादी परियों की कहानी कहती थी,



बंटी चिंटू कालू बबलू शाम ढले आ जाते थे,
खेल कबड्डी खो-खो सारे के सारे थक जाते थे,

पिंकू के घर पानी और मक्खन घर छाछ उड़ाते थे,
घर आकर फिर बड़े चाव से दाल रोटी खाते थे,

खेल थे सारे सेहत वाले, घर के बने पकवान थे,
सीमित कमाई थी लेकिन दिल से सारे धनवान थे,

दूध दही का खानपान था स्वस्थ निरोगी रहते थे,
प्रेम की सरिता मोह के सागर तब घर घर मे बहते थे,

गांव गली में कहीं भी कोई घटना गर हो जाती थी,
पलक झपकते बिना फोन ही सबको खबर हो जाती थी,

एक दूजे से वाकिफ थे और मन में आदर भाव था,
छोटे बड़ों की कद्र थी सबको कितना प्यारा गांव था,




समय जो बदला साथ साथ परिवेश भी सारा बदल गया,
गांव बन गए शहर साथ ही भेष भी सारा बदल गया,

आधुनिकता की आंधी में मौसम भी तो बदल गए,
रंग बदल गए ढंग बदल गए और हम थोड़े बदल गए,

अब ना है वो वाला बचपन है ना ही वो शैतानी है,
किस्से हो गए लुप्त परी के कहां वो दादी नानी है,

बचपन डूब रहा है भैया प्रतिशत के चक्कर में,
स्कूल से घर घर से क्लास और मोबाइल कंप्यूटर में,

पापा हो गए व्यस्त बसाने, सुख साधन खुशियां घर में,
ओवर टाइम करना जरूरी कुछ पैसों के चक्कर में,

मम्मी भी तो चली कमाने आखिर इतने खर्चे हैं,
होम लोन फर्नीचर टीवी इतने सारे कर्जे हैं,

हर महीने तौबा कितनी किश्तें बैंकों की भरनी है,
इसीलिए तो भैया को भी नौकरी कोई करनी है,


सुख की खोज में सुख को खोकर व्यर्थ ही सब मजबूर हुए,
पास होकर भी पास नहीं हम घर परिवार से दूर हुए,

लोक दिखावे की खातिर कितने दुख हमने पाल लिए,
खामोशी से चिंताओं ने घर में डेरे डाल दिए,

जब तक समझ में आया तब तक वक्त हाथ से फिसल गया,
खाली धनुष हाथ मे रह गया तीर कमान से निकल गया,

दौड़ भाग में जीवन बीता देख बुढापा रो दिए,
हाथ के मैल को पाने खातिर स्वर्णिम लम्हे खो दिए ।।

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शीघ्र ही फिर मुलाकात होगी मित्रों, किसी नई रचना के साथ । तब तक के लिए विदा दोस्तों ।

जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से*



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