Friday 27 October 2017

वो चार मिनट


वो चार मिनट  

   (भाग एक)




अफ्रीका के देश नाइजीरिया में "सावधानी हटी, दुर्घटना घटी" की तर्ज पर अपहरण, डकैती, लूटपाट जैसी घटनाएं आम होती रहती है । बावजूद इसके वहां पर काफी संख्या में भारतीय रोजगार के लिए जाते हैं ।

आज मैं आपको मेरे एक मित्र संतोष (बदला हुआ नाम) के साथ घटी एक घटना बता रहा हुं जो एक बड़ी कंपनी में अकाउंटेंट के पद पर करीब 10-12 वर्षों से नोकरी कर रहा था । घटना महज चार मिनट की थी परंतु वे चार मिनट उस दिन संतोष के लिए चार घंटे जैसे हो गए थे ।

संतोष की जुबानी हुआ यूं कि उस दिन शाम के करीब सवा सात बजे संतोष रोजमर्रा की तरह अपने दफ्तर से निकलने की तैयारी कर रहा था । वो नाइजीरिया में एक बड़ी कंपनी में अकाउंटेंट के पद पर कार्यरत था और ये उसका हमेशा का घर जाने का वक्त हुआ करता था ।

मुख्य मार्ग पर वाहनों की अत्याधिक आवाजाही होने के कारण अक्सर वो कारखाने के पिछले दरवाजे को अपने घर जाने को प्रमुखता देता था । वहां से उसका घर कार द्वारा महज चार से पांच मिनट की दूरी पर ही था । दो ही मोड़ मुड़ने होते थे, परंतु रास्ता उबड़ खाबड़ होने की वजह से घर तक पहुंचने में दस से बारह मिनट लग जाया करते थे ।

उस दिन भी रोजाना की तरह अपना काम समेटकर वो अपनी कार में आकर बैठा । मौसम सुहावना था और शाम भी रात से मिलन की और अग्रसर हो रही थी । थोड़ा थोड़ा अंधेरा भी छा चुका था जो मौसम की वजह से थोड़ा और गहराया हुआ लग रहा था ।

ये देखकर ना जाने क्यूं एकबारगी संतोष के मन में हुआ कि ड्राईवर से कहे कि आज मुख्य मार्ग से चलो, लेकिन फिर उसने अपना मन बदला और पिछले दरवाजे से ही जाने का निश्चय किया, तब तक चालक कार चालू कर चुका था । वो अपने सहकर्मियों से शुभ संध्या बोलकर वहां से रवाना हो गया ।

गाड़ी कारखाने के अंदर वाले रास्ते से घूमकर पिछले दरवाजे तक आई । रोज की तरह दरवाजे के सुरक्षा कर्मियों ने गाड़ी का निरीक्षण किया और फिर बाहर जाने के लिए दरवाजा खोल दिया ।

कार के बाहर निकलते ही दरवाजा वापस बंद करके अंदर से ताला लगा दिया गया । चालक धीरे धीरे अपने गंतव्य की और बढ़ने लगा कि तभी अचानक....

.... सामने से आती एक और कार ने हेड लाइट जला बुझाकर संतोष की कार को रुकने का इशारा किया । चालक को लगा कि वो भी इसी कंपनी की कोई अन्य कार होगी । इसलिए उसने भी अपनी कार थोड़ी और धीमी करदी । परंतु ये क्या !!

सामने से आने वाली गाड़ी ने अपनी गाड़ी को संतोष की गाड़ी के एकदम सामने इस तरह रोका की संतोष को लगा कि जैसे दोनों गाड़ियों की आमने सामने टक्कर ही हो जाएगी ।

संतोष को एक बार थोड़ा गुस्सा आया कि सामने वाला ड्राइवर अहमक ही है क्या ? उसने नजर उठाकर ये देखने की चेष्ठा की कि सामने वाली कार का ड्राइवर कौन है ।

वो ये समझ रहा था कि उसी की कंपनी की कोई दूसरी कार है जो रात्री शिफ्ट में काम करने वाले किसी इंजीनियर को लेकर आई होगी । लेकिन जब उसकी नजरें सामने वाली गाड़ी पर पड़ी तो अगले ही क्षण उसके होश फाख्ता हो गए जब उसे उस गाड़ी से उतरते तीन नकाबपोश दिखाई पड़े । उनमें से एक के हाथ में बंदूक थी और दो खाली हाथ ।



ये क्या..... अब क्या करें.... जैसे सवाल उसके दिमाग में बजने लगे । हालांकि इस देश के इन हालातों के बारे में वो पहले से वाकिफ था और मानसिक रूप से तैयार भी, कि अगर समय खराब हुआ तो ऐसा कभी कुछ हो सकता है, परंतु जब सच में ऐसा होता हुआ दिखा, तो उसका घबराना स्वाभाविक था ।

वो मस्तिष्क में उमड़ते सवालों का कुछ जवाब सोच पाता या कुछ समझ पाता इतने में उसके चालक ने "क्या करना है" का निर्णय ले लिया था । उसने गाड़ी को बैक गियर में डाला और गोली की रफ्तार से गाड़ी को पीछे दौड़ा दिया ।

वहां आसपास खड़े कुछ लोग भी इस तेजी से पीछे आती गाड़ी को देखकर चिल्लाए भी, क्योंकि उन्हें कारण जो नहीं पता था । ड्राइवर ने पूरी रफ्तार से पीछे दौड़ाते हुए, उसी तेजी से गाड़ी को सीधे फैक्टरी के दरवाजे से टकरा दिया ।

संतोष भी हकबकाया हुआ, घबराई हालत में पिछली सीट पर बैठा मन ही मन कोई चमत्कार होने की दुआ कर रहा था । इसके अलावा वो और कर भी क्या सकता था ।

उधर गाड़ी द्वारा दरवाजे पर तेज गति की टक्कर ने संयोग से दरवाजे के अंदर का ताला तोड़ दिया, दरवाजा भी पूरा तो नहीं खुला किंतु लगभग एक चौथाई खुल गया । गाड़ी उस टक्कर के झटके की वजह से बंद हो चुकी थी ।

शायद उस चालक और संतोष का वक्त और भाग्य उनका साथ दे रहा था, तभी तो दरवाजे पर लगा बड़ा वाला ताला भी टूट गया और दरवाजा भी थोड़ा खुल गया ।

.....शेष अगले भाग में....

**क्षमा चाहूंगा मित्रों । घटना वृतांत थोड़ा लंबा हो रहा है इसलिए इसे दो भाग में प्रस्तुत करेंगे । दूसरा भाग आपको दो दिन में उपलब्ध हो जाएगा ।

तो दो दिन बाद फिर मिलते हैं तब तक के लिए विदा चाहूंगा ।

जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से*










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