Thursday 21 November 2019

शब्द - भाग २



शब्द भाग २


नमस्कार मित्रों, शब्द का पहला भाग आपने इतना पसंद किया उसके लिए आप सभी का आभार ।

आपकी आतुरता को आदर देते हुए आज ले आया हुँ शब्द का दूसरा भाग । आशा है इसे भी आप भाग १ की तरह ही अपना स्नेहाशीष देंगे, और अपने अन्य मित्रों को भी इसका लिंक, पहले की तरह, अग्रसर (फॉरवर्ड) करेंगे ।

आज के भाग में रानी द्रोपदी द्वारा दुर्योधन को कहे गए शब्दों के कारण हुए महाभारत युद्ध के कुछ दृश्य दिखाने का प्रयास है, अब मैं कहां तक इस प्रयास में सफल हुआ हूं ये तो आपके कमेंट्स द्वारा ही पता चलेगा। तो लीजिये, शब्द भाग २ आपके लिए ।

शब्द भाग २


अर्जुन कर्ण का वध क्यों करता
भीम प्रतिज्ञा किसलिए करता
झूठ युधिष्ठिर भी ना बोलता
भीष्म पितामह कभी ना मरता ।।८।।

अगर जरूरी नहीं बोलना
व्यर्थ क्यों मुख फिर अपना खोलना
चुप से मगर कोई बात जो बिगड़े
घोर पाप तब नहीं बोलना ।।९।।

अगर भीष्म तब चुप ना रहते
गुरु द्रोण कुछ शब्द जो कहते
महाभारत की कथा ना होती जो
द्युत क्रीड़ा चुपचाप ना सहते ।।१०।।

वहां जरूरी था कुछ कहना
बहुत गलत था तब चुप रहना
शब्द अगर उपयोग में लाते
कष्ट का पल ना पड़ता सहना ।।११।।

शकुनि के पांसे थे भारी
धर्मराज ने बाजी हारी
दुर्योधन ने जीत लिए थे
पांचाली संग भाई चारी ।।१२।।

दुर्योधन ने शब्द सुनाए
पांचाली को पकड़ ले आये
दुःशासन ने वस्त्र जो खिंचे
द्रोपदी को अब कौन बचाये ।।१३।।

पांचाली ने मन ही मन में
शब्द मदद को कुछ दोहराये
व्याकुल शब्द सुने गिरधर ने
लाज बचाने दौड़े आये ।।१४।।

परिस्थिति थी चुप रहने की
भीम में शक्ति कब सहने की
कड़ी प्रतिज्ञा कर डाली थी
दुशाशन का लहू पीने की ।।१५।।

कुछ शब्दों ने कर क्या डाला
भ्राताओं को लड़वा डाला
चाचाओं के हाथों एक
भतीजे को भी मरवा डाला ।।१६।।

विध्वंसक एक युद्ध हो गया
शरशय्या पर भीष्म सो गया
अभिमन्यु, गुरु द्रोण, दुशाशन
कर्ण ना जाने कहाँ खो गया ।।१७।।

अगर द्रोपदी चुप रह जाती
शब्दों को बाहर ना लाती
दुर्योधन की ईर्ष्या शायद
युद्ध का रूप नहीं ले पाती ।।१८।।

कुछ शब्दों ने और कुछ चुप ने
काम बिगाड़ा था तब सारा
गुरु शिष्य बन गए थे दुश्मन
भाई ने भाई को मारा ।।१९।।

माना था दुर्योधन दम्भी
कारण नहीं था युद्ध का फिर भी
पांचाली के उन शब्दों ने
आग में डाल दिया थोड़ा घी ।।२०।।

उन लपटों में हस्तिनापुर
जल उठा था फिर धु धु कर
रोज जली थी कई चिताएं
था दृश्य वो बड़ा भयंकर ।।२१।।

इसीलिए जब भी कुछ बोलो
सोचो समझो शब्दों को तोलो
पहले सोचो अर्थ अनर्थ की
पीछे फिर अपना मुंह खोलो ।।२२।।

शब्द भाग 1



** क्रमशः ***

अगले भाग में जल्दी ही आपके लिए ले के आऊंगा की ये छोटा सा शब्द "शब्द" और क्या क्या कर सकता है, क्या क्या अर्थ अनर्थ कर सकता है । तब तक के लिए विदा मित्रों ।

जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से*










आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।.  Email : onlineprds@gmail.com

धन्यवाद


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Wednesday 13 November 2019

शब्द


शब्द


नमस्कार मित्रों । आशा है आप सब सकुशल और प्रसन्नचित्त होंगे ।

इस बार थोड़ा हटकर एक कविता लिखने का प्रयास कर रहा हुं, इस आशा के साथ कि ये अवश्य ही आपको पसंद आएगी और आप भी उसे आगे से आगे बढ़ाते (फॉरवर्ड करते) जाएंगे ताकि आपके अन्य मित्र भी इसे पढ़ सकें ।

एक छोटा सा शब्द है "शब्द", लेकिन हम कब, कहां और कैसे इन शब्दों का उपयोग करते है, वही शब्द हमारे व्यक्तित्व की परछाई बन जाते हैं ।

प्रेमवश जहां हम अच्छे और सुंदर शब्दों का प्रयोग करते हैं वहीं विपरीत परिस्थितियों में, क्रोधावेश में, हम ऐसे शब्दों का चयन कर बैठते हैं जो अर्थ का अनर्थ कर के जीवन में जहर घोल देते है ।

उदाहरणार्थ जैसे महाभारत काल में द्रोपदी इंद्रप्रस्थ में अगर दुर्योधन को वे "अंधे का पुत्र अंधा" जैसे व्यंग्यात्मक शब्द ना बोलती तो शायद महाभारत ना हुई होती । बहुत से हजारों वीर योद्धा असमय काल के गाल में ना समाते ।

ऐसे ही त्रेता युग में (भगवान राम के समय) रावण यदि अपने भाई विभीषण को कटु शब्द ना बोलता तथा विभीषण के शब्दों पर गौर करके माता सीता को ससम्मान श्री राम को सौंप देता तो आज शायद हर वर्ष रावण के पुतले ना जलते ।

मेरे कहने का अर्थ इतना सा है कि ये "शब्द" भले ही एक छोटा सा शब्द हो मगर ये अपने अंदर बहुत कुछ छुपाये हुए है । किस समय हम किन शब्दों का उपयोग करें ये हमारी सोच और बुद्धि पर निर्भर करता है । ये शब्द ही है जो लोगों के दिलों में आदर भी पैदा कर सकते हैं और दूरियां भी ।

अतः आप जब भी कुछ बोलें, सदैव सोच समझकर और तोल मोल कर बोलें, ताकि आप लोगों के दिलों में जगह बना सकें और उन के हृदय में आपके लिए सदैव सम्मान और आदर बना रहे ।

इस बार मैनें इसी "शब्द" को अपनी कविता का शीर्षक चुना है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप इस कविता को भरपूर आशीर्वाद देंगे ।

तो लीजिये, अब ये कविता "शब्द" आपकी अदालत में पेश कर रहा हूँ । अपने विचारों से अवगत जरूर कराएं । अग्रिम धन्यवाद के साथ पेश है "शब्द" ।

शब्द  भाग १

शब्द बोलते, शब्द तोलते
शब्द दिलों का राज खोलते
शब्द ही परिभाषा बन जाते
शब्द कभी आशा बन जाते ।।१।।

शब्द नरम है शब्द गरम है
शब्द भी रखते लाज शर्म है
सोच समझ कर शब्द बोलना
शब्द है पूजा शब्द धर्म है ।।२।।

शब्द वही जो मन को भाये
मधुर शब्द सबको हर्षाये
कड़वा शब्द जहर है ऐसा
असर करे, रिश्ते मर जाये ।।३।।

शब्द ही मन का मैल मिटाते
शब्दों से चेहरे खिल जाते
शब्द बने कटु शब्द अगर तो
घर घर में झगड़े करवाते ।।४।।

शब्द कई घायल कर देते
शब्द हमें पागल कर देते
शब्द अगर हो अमृत जैसे
दुनिया को अपना कर लेते ।।५।।

हस्तिनापुर था शक्तिशाली
अभिमन्यु बालक बलशाली
युद्ध महाभारत ने कर डाली
वीरों से धरती ये खाली ।।६।।

पांचाली कुछ शब्द ना कहती
महाभारत की बात ना चलती
शकुनि के पांसे ना होते
लाक्षागृह की घटना ना घटती ।।७।।

अर्जुन कर्ण का वध क्यों करता
भीम प्रतिज्ञा किसलिए करता
झूठ युधिष्ठिर भी ना बोलता
भीष्म पितामह कभी ना मरता ।।८।।


खजाना



** क्रमशः ***

मित्रों क्षमा चाहूंगा, ये कविता जरा लम्बी होगी अतः इसे हम कुछ पार्ट में आपके सम्मुख पेश करेंगे । आपसे वादा है कि "शब्द भाग 2" बहुत शीघ्र ही आपके सामने होगा । मुझे पूरा विश्वास है कि थोड़ा सा वक्त तो आप देंगे ही ।

कुछ समय बाद फिर मिलते हैं, तब तक के लिए विदा दोस्तों ।

जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से*










आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।.  Email : onlineprds@gmail.com

धन्यवाद

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