Sunday 17 June 2018

Chahat - चाहत

चाहत


नमस्कार मित्रों ।

इस बार एक छोटी सी, मगर थोड़े से शब्दों में पूरी जिंदगी का सार लिए एक कविता "चाहत" आपके लिए । जो लिखी है राजस्थान के नागौर जिले के एक छोटे से गांव धौलिया निवासी मेरे भांजे अनूप शर्मा ने ।

वर्तमान में अनूप अपने गांव के पास के ही एक शहर में बैंक में कार्यरत है । अगर आपको उनकी ये रचना पसंद आई, जो कि मैं जानता हूं कि आएगी, तो मैं आपसे वादा करता हुं कि आगे भी उनकी कविताएं आपको यहां hindegeneralblogs पर समय समय पर मिलती रहेगी । कृपया दिल से अनूप शर्मा का स्वागत करें और उनका हौसला बढ़ाएं ।

शिव शर्मा

लीजिये, अनूप शर्मा की कविता, अच्छी लगे तो लेखक का हौसला बढ़ाएं ।

चाहत


एक जवान काबिल शख्स
चाहता है
सब कुछ पा लेना
परिवार के लिए

लगा देता है दांव पर
सर्वस्व अपना

ताकि कर सके
बिटिया की शादी
एक बड़े घर मे

भेज सके
बेटे को विदेश
एक बड़ी नौकरी पर

बना सके
शहर के बीचों बीच
एक बड़ा सा मकान,

अपनी मेहनत से
एक दिन
जब पहुंचता है
ऐसे मुकाम पर
सोचता है, देखता है
और पाता है

कि कर लिया हासिल..
वो सब कुछ...
जो वह चाहता है...

वाकई....!!

वक्त चलता रहता है
बदलता रहता है
उम्र भी ढलती है

ढलती उम्र के साथ
हाथो का कंपन
बढ़ने लगता है

आंखे भी
कहाँ देख पाती है
अब ठीक से....

सुनना तो पहले ही
कम हो चुका है...

कोशिश करता है
चलने की
मगर पैर
साथ नही देते....

पर वो
तनिक भी
चिंतित नही होता

सोचता है
बड़े घर की बिटिया
दौड़ी चली आएगी

अरे नही.....

वो कैसे आएगी
वो अब
बिटिया नही
बहु बन चुकी है
एक बड़े घर की

तो क्या हुआ....
लड़का तो है

"मेरा विदेशी बाबू"

वो तो आएगा ही
उसी के लिए तो किया था
सब कुछ.....
बिना छुट्टी लिए काम से

पर वो भी नही आया

छुट्टी जो नही मिली

बूढ़े बाप की खातिर

फिर जब बड़े मकान का
छोटा सा कमरा
खाने को दौड़ता है

दीवारों पर
बेटे बेटी के अक्स उभरते हैं
तब शायद
यही सोचता है

कि

क्या कर लिया हासिल ?
वो सब कुछ ??
जो वह चाहता था ???


इश्क दा रोग



      ** ** **

अनूप शर्मा की रचना


आपको ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।.  Email : onlineprds@gmail.com

धन्यवाद
शिव शर्मा



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Saturday 9 June 2018

लोग - Log

लोग


नमस्कार मित्रों । इस बार एक छोटी सी ग़ज़ल ले के आया हुं । उम्मीद है आपको जरूर पसंद आएगी । अपने विचार मेरे साथ जरूर साझा करें ।







लोग


दुनिया में आते हैं, चले जाते हैं लोग,
फिर किस बात पर इतराते हैं लोग,

छोटी सी जिंदगी है खुशी से जी लें
ताउम्र समझ ना पाते हैं लोग,

होकर कामयाबी के नशे में धुत्त
अपनों को भूल जाते हैं लोग,

ख्वाहिशें है कि इनकी खत्म ही नहीं होती
क्यों नहीं दिल को समझाते हैं लोग,

कौन डाकू है और कौन लुटेरा
आपस मे ही बताते हैं लोग,

खुद का दामन भले ही मैला हो
औरों के दाग दिखाते हैं लोग,

मक्कारी, बेईमानी, झूठ, फरेब,
कितने पाप कमाते हैं लोग,

जान बूझकर करते हैं खतायें हजारों
फिर अपने गुनाह बख्शवाते हैं लोग,

बात अगर उनके मन की ना हो तो
बगावत पे उतर आते हैं लोग,

नाहक ही करते हैं लोगों से नफ़रतें
जब सियासत में फंस जाते हैं लोग,

अमीरों की चौखट पे करते हैं सजदे
गरीबों को अक्सर सताते हैं लोग,

सबकी नजरों से छुपाके रखना "शिव"
मजबूरियों का फायदा उठाते हैं लोग ।।

** ** ** **

जल्दी ही फिर मिलते हैं मित्रों एक नई रचना के साथ ।

 जनम जनम का साथ


जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से*








आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।.  Email : onlineprds@gmail.com

धन्यवाद

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