Monday 2 November 2020

सिंहनी

 सिंहनी


नमस्कार मित्रों । इस बार एक ग़ज़ल ले के आया हुं, बिना किसी भूमिका के आपके सामने पेश कर रहा हुं । आपके कमेंट्स का इंतजार रहेगा ।


सिंहनी


अब तू डरना छोड़ दे बेटी

तूफां का रुख मोड़ दे बेटी,


धनुष उठा प्रत्यंचा चढ़ा और

बाण अग्नि का छोड़ दे बेटी,


चुन चुन बुरी नजर वालों का

मुगदर से मुंह तोड़ दे बेटी,


गिद्ध दृष्टि जो तुझ पर डाले

उन आंखों को फोड़ दे बेटी,


गाहे बगाहे हाथ लगाए

उंगलियां उसकी मोड़ दे बेटी,


बदनीयती से तुझको छुए

ऐसे हाथ मरोड़ दे बेटी,


पल्लू तेरा जो खींचना चाहे

सजा उसे उसी ठौड़ दे बेटी,


बन बैठे है दुःशासन जो

उनका लहू निचोड़ दे बेटी,


खुद तू ही बन जा केशव और

आँचल खुद ही जोड़ दे बेटी,


कृष्ण नहीं आ पाएंगे अब

तू ही सुदर्शन छोड़ दे बेटी,


लाज शर्म से खाली हो गए

सोए हृदय झंझोड़ दे बेटी,


मदद करे बेटी की जो "शिव"

उनको दुआ करोड़ दे बेटी ।।


*   *   *   *   *


जल्दी ही फिर मुलाकात होगी । इस ग़ज़ल के बारे में अपनी राय अवश्य बताएं ।


ख्वाब


जय हिंद


*शिव शर्मा की कलम से*


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