Thursday 3 December 2020

पता ही ना चला

 पता ही ना चला


नमस्कार मित्रों । आपके लिए फिर एक बार एक छोटी सी ग़ज़ल ले कर आया हुं "पता ही ना चला" ।
आशा है हर बार की तरह इस बार भी आप मेरी इस नई रचना को अपना भरपूर स्नेह देंगे ।




पता ही ना चला


आसमान पे बादल छा गए, पता ही ना चला,

सितारे जमीं जगमगा गए, पता ही ना चला,


ना धूप देखी, ना कभी चांदनी में नहाए,

सब मौके गंवा गए, पता ही ना चला,


हकीमों ने सलाह दी, खुराक कम करो,

हजारों गम खा गए, पता ही ना चला,


यूं तो पीते थे हम, महज शौक की खातिर

जाम से बोतल पे आ गए, पता ही ना चला,


नजर मिली, तो दबा के दांतों में पल्लू,

वो क्यों शरमा गए, पता ही ना चला,


अब ना बहाएंगे आंख से आंसू, सोचा था,

गुजरे पल रुला गए, पता ही ना चला,


भरोसा था जिन पर, खुद से भी ज्यादा,

खेत ही बाड़ खा गए, पता ही ना चला,


मिले थे "शिव", जो कभी ना बिछड़ने को,

कब हाथ छुड़ा गए, पता ही ना चला ।।


* * * * * * * *


जल्दी ही फिर मिलते है एक नई रचना के साथ । आप सब अपना और अपनों का खयाल रखें । सतर्क रहें, सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें ।


 सिंहनी


जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से*


आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।.  Email : onlineprds@gmail.com

धन्यवाद




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