Saturday 6 February 2016

Meri Paheli Rail Yatra - My First Train Journey

मेरी पहली रेल यात्रा  - Meri Paheli Rail Yatra 


My First Train Journey - Meri Paheli Rail Yatra

वैसे तो आज के समय में यात्रा के कई साधन लोगो को उपलब्ध है । किन्तु आज भी रेल यात्रा का अपना अलग ही महत्व है । लम्बी दूरी की यात्राए रेल में ही आराम दायक होती है । रेल में हम बैठकर, लेटकर अथवा सोते हुए अपनी यात्रा का आनंद उठा सकते है ।

आज मैं आपसे अपनी प्रथम रेल यात्रा का अनुभव साझा करना चाहता हूँ । मेरी प्रथम रेल यात्रा आरामदायक तो नहीं थी परन्तु रोमांचक जरूर थी, जिसकी यादे आज तक मेरे जेहन में ताज़ा है ।


 मेरी पहली रेल यात्रा


उस वक्त मैं यही कोई ८-१० साल का रहा होऊँगा तब पिताजी हमारे एक परिचित के यह शादी में जाने की तैयारी कर रहे थे । तब अकेले पिताजी को सम्मिलित होने जाना था उस शादी में, अंतिम समय में मैने भी जाने की जिद पकड़ ली, परन्तु पिताजी ने मेरी एक नहीं सुनी । कारण कि टिकट आरक्षित नहीं थी ।

पिताजी ने कहा की जनरल डिब्बे में सफर करने में दिक्कत आएगी और वो मेरा ठीक से ख्याल भी नहीं रख पाएंगे । पिताजी के इस फैसले से मेरा मन उदास हो गया था । मुझे उदास देख माँ ने पिताजी से बात की और उन्हें मना लिया ।


My First Train Journey - Meri Paheli Rail Yatra





रेलवे स्टेशन पहुँच कर मैने देखा की टिकट खिड़की पर बहुत लम्बी लाइन लगी हुई है । पिताजी ने मुझे एक जगह पर सामान के साथ खड़ा किया और टिकट के लिए कतार में लग गये ।

मैं वहां खड़ा हक्का-बक्का होकर भीड़ को देखे जा रहा था और सोच रहा था की आज ही के दिन इतने लोग एक साथ कहा जा रहे है । शहर खाली हो रहा है क्या?


 मेरी पहली रेल यात्रा


पिताजी को टिकट लेकर आने में एक घंटा लग गया और इधर ट्रेन के आने का समय भी हो गया था, पिताजी ने मुझे जल्दी-जल्दी चलने का आदेश दिया और हम दोनो जल्दी-जल्दी ट्रेन की ओर चल पड़े ।

प्लेटफॉर्म पर जाकर देखा की एक बड़ी सी ट्रेन खड़ी थी और लोग उसमे चढ़ने के लिए धक्का-मुक्की कर रहे थे । यह सब देख कर मैं एक बार तो डर गया, पर पहली बार रेल में सफर करने का सोच कर मैने अपने आप को संभाल लिया ।

My First Train Journey - Meri Paheli Rail Yatra


लोगो की भीड़ के अलावा वहा लाल कपड़ो में कुछ लोग भी घूम रहे थे । जो लोगो का सामान लेकर इधर उधर भाग रहे थे । मैने पिताजी से पूछा की वो लोग कौन है तो पिताजी ने कहा वो कुली है जो लोगो का सामान उठाने का काम करते है ।

जैसे तैसे हम लोग जनरल डिब्बे तक पहुंचे, वहा पिताजी ने भीड़ को जैसे तैसे पार करते हुए मुझे और सामान को अंदर डिब्बे में पहुँचाया । परन्तु वहां भीड़ के बीच मेरी साँस घुटने लगी ।


 मेरी पहली रेल यात्रा


पिताजी मेरी ये दशा देख पहले तो मुझे डांटा और कहा कि मैं कह रहा था, दिक्कत होगी, पर तुम ही नहीं माने । फिर जल्दी से खींच कर मुझे एक सीट तक ले गये और एक महिला से निवेदन कर मुझे बैठने को थोड़ी सी जगह दिलवा दी ।

इतने में रेल की 'सीटी' बज गयी और रेल धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी । इसी बीच में अपनी रेल यात्रा का अनुभव करने लगा और मन ही मन सोचने लगा की वापस आकर अपने दोस्तों से इस अनुभव को बताऊँगा ।

इसी बीच एक आदमी भीड़ का फायदा उठाते हुए पिताजी के ज़ेब में हाथ डालकर उनका पर्स चुराने की कोशिश करने लगा पर भीड़ में धक्का लगने से उसके हाथ से पर्स निचे गिर गया ।

मैंने पर्स उठाकर पिताजी को दिया और उस जेबकतरे से अवगत करवाया । फिर तो अन्य यात्रियों ने मिलकर उसको जमकर सबक सिखाया, अगले स्टेशन पर उस जेबकतरे को पुलिस के हवाले कर दिया ।


मेरी पहली रेल यात्रा


सभी यात्री मेरी प्रसंशा करने लगे और इस बीच पिताजी भी मुस्कुराकर मुझे शाबाशी देने लगे और कहने लगे की आज मैं नहीं होता तो उनका पर्स चोरी हो चुका होता । उसके बाद क्या क्या हुआ उसका वर्णन अगली बार करूँगा लेकिन मेरी पहली रेल यात्रा मैं कभी नहीं भुला सकता ।

My First Train Journey - Meri Paheli Rail Yatra

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अनुभव अर्पित जैन










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धन्यवाद
शिव शर्मा



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