बुढ़ापा - Budhapa
Old Age
बुढ़ापा एक ऐसी सच्चाई है जिससे हर व्यक्ति को सामना करना पड़ता है । इस कड़वी सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता की अंत पंत हर मनुष्य, नर हो या नारी, बूढ़ा होता है । जीवन रूपी यात्रा का आखरी स्टेशन है बुढ़ापा ।
एक किशोर की इच्छा होती है वो जल्दी से जवान हो जाए । और समय बीतने पर जब जवान हो जाता है तो जवानी के उस दौर में फिर कभी उसके दिलोदिमाग में ये बात आती ही नहीं है की एक दिन ये जवानी भी नमस्ते कर जायेगी ।
फिर जब जवानी के दरवाजे पर बुढ़ापे की दस्तक पड़ती है, तो कोई भी उसे सहज रूप से स्वीकार ना करके उल्टे कोशिश करने लगता है उसे छुपाने की ।
शुरुआत सर पर सफ़ेद होते बालों से होती है । सफ़ेद बालों को ढूंढ ढूंढ कर उखाड़ा जाता है । आधे से ज्यादा बाल जब शहीद हो जाते हैं तो फिर सहारा होता है मेहंदी या बाजार में मिलने वाली हेयर डाई का । लेकिन बुढ़ापा फिर भी नहीं रुकता ।
"कोढ़ में खाज" का काम करती है जवानी के दिनों में की गयी लापरवाहियां । अनियमित खानपान, तरह तरह के व्यसन, मस्तिष्क में दुनिया भर के तनाव । जिनके परिणाम स्वरुप शरीर कई प्रकार की गंभीर बीमारियों का घर भी बन जाता है ।
अक्सर कई लोगों को आपने भी देखा ही होगा जो दावतों में भी दाल रोटी ही खाते नजर आते हैं । पीने को गुनगुना गर्म पानी मांगते हैं । वजह, शुगर की बीमारी, कमजोर दिल, उच्च या निम्न रक्तचाप आदि आदि ।
हालांकि बुढ़ापा आने से कोई नहीं रोक सकता फिर भी अगर हम अपनी किशोरावस्था और यौवनावस्था से ही अपना ध्यान रखें तो इसे एक लंबे समय तक रोका जा सकता है । और भविष्य में इसके दुष्परिणामों से बचा जा सकता है ।
मजे की बात तो ये है कि इसमें आपको दमड़ी भी खर्च करने की जरुरत नहीं है, उल्टा अगर हम शुरू से ही थोड़ा ध्यान रखें तो भविष्य में होने वाले मेहनत की कमाई को खर्च होने से बचा सकते हैं ।
रोज सुबह जल्दी उठ कर सैर करने की आदत डालें । जितना संभव हो व्यायाम करें । "योग भगाए रोग" सो योग को अपने जीवन का हिस्सा बनायें । शुद्ध और पौष्टिक खाना खाएं और उतना ही खाएं जितने की इस काया को जरुरत हो । चबा चबा कर खाएं, दबा दबा कर नहीं ।
प्रकृति ने भी हमें कितनी तरह की स्वास्थ्य वर्धक वस्तुएं उपहार स्वरुप दे रखी है । उनके गुणों को पहचाने और उन्हें अपने खानपान में शामिल करें ।
सब जानते हैं आजकल "फ़ास्ट फ़ूड" का चलन ज्यादा हो गया है, आसानी से हर जगह उपलब्ध भी तो है । स्वाद के लिए कभी कभार यदि खा लिया तो खा लिया मगर इसे आदत ना बनने दें ।
अक्सर घर में भी बच्चों को कह दिया जाता है । "भूख लगी है ? जा रेस्टॉरेन्ट से समोसे ले आ ।" यहां बताने की जरुरत नहीं होनी चाहिए कि रेस्टॉरेन्ट वाले समोसे या कचौरियां स्वादिष्ट होते हैं, क्योंकि उन्हें अपना कारोबार चलाना होता है । तो नतीजा ये होगा कि बाद में भी बच्चे माँ के बनाये खाने की बजाय भूख लगने पर वही समोसे कचोरी खाना ज्यादा पसंद करेंगे ।
बाहर के खाने से तो अपने आप को जहां तक हो सके बचाना ही है, इसके अलावा किसी भी तरह के तनाव या चिंताओं से भी दूर रहने का प्रयास करें । याद रखें की चिंता एक ऐसी चीज है जो अक्सर करने से ही होती है । चिंता किसी भी समस्या का समाधान नहीं है बल्कि ये तो अपने साथ दूसरी तरह की और कई समस्याएं ले आती है । इस से बचने के लिए मनोबल बढ़ाने वाली पुस्तकें पढ़ें । प्रार्थना में अपना ध्यान लगाएं ।
संसार और जीवन की सच्चाई है, और जीवन चक्र का रूप है कि एक शिशु जन्म लेता है । बालपन से किशोर और किशोरावस्था से यौवन में कदम रखता है । यौवन ढलने के बाद जो अवस्था आती है वो है बुढ़ापा । और अफ़सोस...... बुढ़ापे के बाद मानव जीवन में और कोई अवस्था नहीं आती । इस अवस्था के बाद तो आत्मा भी इस जर्जर शरीर को जल्द से जल्द छोड़ कर नए चोले की तलाश शुरू कर देती है ।
सो आज से ही बल्कि अभी से ही बढ़ती उम्र के होने वाले प्रभावों को नियंत्रित करने का प्रयास शुरू कर दीजिये और कुछ ऐसा कीजिये कि बुढ़ापा भी एक स्वस्थ एवं मजबूत बुढ़ापा बन जाए । एक न एक दिन इसे आना तो है ही । परंतु जब तक ना आये, कहते रहें, "अभी तो मैं जवान हुं ।"
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जय हिन्द
...शिव शर्मा की कलम से...
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धन्यवाद
धन्यवाद
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अजी बात तो आपकी सही ही शत प्रतिशत, परन्तु आजकल इंस्टेंट का जमाना है। समय होते हुए भी किसी क पास समय नही है।सब भाग खुद के लिए परन्तु खुद की ही सुद्ध किसी को नहीं है। बुढापा तो सबका आमन्त्रित मेहमान है, बस आमन्त्रण कब दे जाते है, ये स्वयं को भी पता नहीं चलता।
ReplyDeleteEkdam sahi kaha yadav ji
ReplyDeletebudhape ko to rok nahin sakte par budhape ko ane me hum kuch sal rok sakte hen . anek upay se, alag alag exercise se, aur bahut asre Health Tips se hum jawani ko jyada din tak badha skate hen.
ReplyDeleteescorts in bangalore
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