अपने
रघु उदास सा स्टेशन की और जा रहा था । आज फिर वो अपने मालिक से अग्रिम तनख्वाह के लिए बात नहीं कर पाया था ।
हालांकि पत्नी को सुबह ये कह कर निकला था कि आज वो पैसों के लिए कार्यालय में बात कर लेगा, और कुछ ना कुछ बंदोबस्त हो जाएगा । लेकिन मालिक से बात करने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई । कैसे करता, पहले से उसके नाम हजारों रुपये बाकी जो पड़े थे ।
तनख्वाह इतनी सी मिलती थी जिससे बस गुजारा भर हो पाता था, बच्चों की पढ़ाई के खर्चे बढ़ गए थे इस वजह से बचत का तो कोई सवाल ही नहीं था । उल्टा बीच बीच में वो कम्पनी से एडवांस लेता रहता था । जिस वजह से कम्पनी का कर्ज उस पर चढ़ा ही रहता था ।
पिछले लगभग दो सालों से यही होता आ रहा था, कभी भी वो अपनी पूरी तनख्वाह नहीं ले पाया था । हमेशा चार पांच हजार रुपये कट कर ही मिलते थे ।
मगर अभी तो उसे कुछ रुपयों की बहुत ही सख्त जरूरत थी । बड़े बेटे कृष्णा की कॉलेज की फीस जो भरनी थी ।
दोस्तों रिश्तेदारों की तरफ से उसे कोई खास उम्मीद भी नहीं थी और बहुत पहले ही कुछेक से उसे मीठा सा जवाब मिल चुका था ।
देखा जाए तो सबकी अपनी अपनी जरूरतें होती है, और वास्तव में तो सच्चाई ये है कि लोग अक्सर उन्ही की मदद करते हैं जिनसे भविष्य में उन्हें किसी मदद की उम्मीद हो । मरियल घोड़ों पर कोई दांव नहीं लगाता ।
बड़े भैया से बात करने में उसे संकोच हो रहा था । अभी पांच महीने ही तो हुए थे भतीजी सुमन की शादी को । भैया तो शायद अभी शादी में हुए खर्चों का कर्ज चुकाने में लगे होंगे ।
ये सब बातें रघु के मस्तिष्क में उथल पुथल मचा रही थी । लेकिन सबसे ज्यादा फिक्र उसे इस बात की हो रही थी कि पत्नी को क्या जवाब देगा । वो तो जाते ही पूछेगी की पैसे लाये क्या ? पिछले एक हफ्ते से वो बहाने ही बना रहा था । पत्नी भी उसकी स्तिथि से अवगत थी इसलिए ज्यादा कुछ नहीं कहती थी ।
काश.... कोई चमत्कार हो जाये । अलादीन का चिराग मिल जाये । या फलां दोस्त या रिश्तेदार जिन की आर्थिक स्तिथि काफी अच्छी है, वे मदद करदे, उन लोगों के लिए तो पंद्रह हजार मामूली सी बात है । वे चाहे तो मिनटों में मेरी इस समस्या का समाधान कर सकते है । जैसे विचार उसके दिमाग में आ जा रहे थे ।
लेकिन उससे तो मैं बात कर चुका हूं । इसने ये बोला था.... उसने ये कहा था...... कुछ ही पलों में वो बहुत सारी बातें सोच गया, परंतु नतीजा ये ही निकला कि किसी से भी मदद मांगने वाली स्तिथि में वो नहीं है, सबको उसकी वर्तमान परिस्तिथि के बारे में पता है । अतः जो कुछ करना है खुद ही करना है । लेकिन क्या..... कोई रास्ता भी तो नहीं है ऑफिस से एडवांस मांगने के अलावा ।
पों पों..... पीछे से एक गाड़ी ने हॉर्न बजाया तो उसकी तन्द्रा टूटी । गुम खयाली में वो सड़क के बीच में आ गया था ।
अबे मरणा है तो लोकल ट्रैन के आगे मर ना, मेरी गाड़ी के आगे क्यूं मरता है.... वो गाड़ी वाला भी उस पर चिल्ला कर ही वहां से गया ।
मेरी तो तकदीर ही खराब है, रघु फिर सोचने लग गया, ऑफिस में किस मुंह से पैसे मांगूं । कोई दोस्त रिश्तेदार मुझे देगा नहीं, भैया को बोल नहीं सकता.... फीस के लिए पंद्रह हजार चाहिए....... क्या करूं..... कहाँ जाऊं..... किससे कहुं...... हे भगवान कोई रास्ता दिखाओ । कोई चमत्कार दिखाओ ।
किसी भी इंसान को तकलीफ में अंततः भगवान ही याद आते है । कबीर जी ने तो बहुत पहले ही कह दिया था..
"दुख में सुमिरन सब करे सुख में करे ना कोय,
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय"
अचानक उसके मोबाइल की घंटी बजी, शायद किसी का फ़ोन आ रहा था । लेकिन उसे आश्चर्य हुआ कि आज रिंगटोन किसी डोर बेल की तरह क्यों बज रही है । उसने तो दूसरी ही कॉलर टोन लगा रखी थी ।
लगता है मोबाईल में कोई खराबी आ गई है । अब इसका खर्चा और करना पड़ेगा । "गरीबी में आटा गिला" रघु को एक और चिंता सताने लगी ।
खैर..... ये बाद में देखेंगे, अभी तो देखता हूं किसका फ़ोन है, सोचकर उसने फोन अपनी जेब से निकाला । स्क्रीन पर उसके मालिक का नाम आ रहा था ।
सेठजी इस वक्त क्यों फोन कर रहे हैं, मन ही मन सोचते हुए उसने हरा बटन दबाया.... लेकिन ये क्या.... हरा बटन दबाने पर भी फोन अभी तक बज रहा था । उसने फिर बटन दबाया लेकिन घंटी थी कि बजते ही जा रही थी ।
उसने बार बार बटन दबाया लेकिन पता नहीं क्यों फोन काम ही नहीं कर रहा था । उसने फिर एक बार कोशिश की लेकिन तब तक फ़ोन कट गया । वो दोबारा फ़ोन आने की प्रतीक्षा करने लगा लेकिन तभी..... उसके कानों में पत्नी की आवाज आई....।
"सुनो जी, उठो.... बड़े भैया और भाभी आये हैं गांव से । वे पता नहीं कब से दरवाजे की घंटी बजा रहे थे । मेरी आँख खुली और दरवाजा खोला तो देखा भैया भाभी है ।"
तब उसको समझ मे आया कि वो सपना देख रहा था और सपने में उसके फ़ोन की घंटी जो डोर बेल की तरह सुनाई दे रही थी वो वाकई में डोर बेल ही बज रही थी । शुक्र है कि फोन ठीक है ।
वो बिस्तर से उठ के आया और बड़े भैया एवं भाभी के पांव छू के पहले कुशलक्षेम पूछी और फिर अचानक आने का कारण । तब तक चाय बनके आ गई । चाय की चुस्कियां लेते लेते बड़े भैया ने कहा ।
"लगता है तुम भूल गए हो रघु, मैनें तुम्हे बताया था ना कि कार्यालय के काम से इस सप्ताह मुम्बई आ रहा हुं, इस उमर में ही क्या हो गया तुम्हारी याददास्त को ।" भैया हंसते हुए बोले ।
अब रघु उन्हें क्या बताता कि दूसरी चिंताओं ने जो उसे इस तरह घेरा है उनके चलते वो अपने आप को भी भूल गया है ।
लेकिन भैया को उसने हंस कर इतना ही कहा "नहीं भैया, हफ्ता याद था, बस तारीख भूल गया था ।"
"कोई बात नहीं, मैं तो मजाक कर रहा हुं ।" भैया हंसते हुए बोले, तभी बड़ा लड़का भी उठकर आ गया । उसे अपने पास बैठा कर भैया बोले......
"बहुत खुशी है कि अपना कृष्णा अब कॉलेज में आ गया है, पर सुना है मुम्बई में पढ़ाई काफी खर्चीली होती है और मैं जानता हुं कि तुम्हारी तनख्वाह भी सीमित है ।" भैया ने कहा ।
"लेकिन तुम चिंता मत करना रघु, अब से कृष्णा की पढ़ाई का पूरा जिम्मा मेरा । शायद इसके भाग्य से पिछले महीने ही मेरी तनख्वाह में मालिक ने अच्छी खासी बढ़ोतरी की है ।"
भैया बोलते बोलते रुके और अटैची में से पैसे निकाल कर रघु को देते हुए बोले । "फिलहाल इसकी फीस और अन्य खर्चों के लिए ये बीस हजार रुपये रखो । इसको अच्छे से कॉलेज में दाखिला दिलवाना ।"
"परंतु भैया....." रघु कुछ कहता इससे पहले ही भैया ने उसको हाथ के इशारे से रोक दिया ।
फिर मुस्कुराकर बोले, "तुम्हारी भतीजी सुमन की शादी के बाद तो मैं अब बड़ी जिम्मेदारियों से लगभग मुक्त सा हो गया । उसके विवाह पर हुए सारे खर्चों का भुगतान भी हो चुका है ।"
"और फिर तुम्हारे और सुमन के अलावा मेरा और है ही कौन, छोटा भाई पुत्र समान होता है, सो जो मेरा है वो तुम्हारा ही तो है ।"
भैया बोलते जा रहे थे लेकिन रघु तो दूसरे ही खयालों में गुम था । उसकी सारी चिंताएं पल में दूर हो गई थी । हे भगवान, आपने इतनी जल्दी चमत्कार दिखा दिया । वो सोच रहा था कि शंका के मारे उसने भैया से पहले बात क्यों नहीं की ।
उधर उसकी पत्नी सोच रही थी कि अच्छा किया उसने कि फ़ोन करके बड़े भैया भाभी को सब हालातों से अवगत करवा दिया था, और भैया ने उसे आश्वस्त किया था कि चिंता मत करो । मैं रघु को पता भी नहीं चलने दूंगा और कृष्णा की पढ़ाई के खर्च की व्यवस्था भी कर दूंगा ।
उधर भैया कृष्णा और विक्की के साथ लूडो खेलने में मस्त थे । रसोई में भाभी और उसकी पत्नी किसी बात पर खिलखिला कर हंस रही थी । कुछ ही पलों में घर का पूरा वातावरण आनंदमय हो गया था ।
पास वाले घर से टेलीविजन पर बजते गाने के बोल सुनाई पड़ रहे थे । "अपने तो अपने होते हैं...।"
*शिव शर्मा की कलम से*
आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।. Email : onlineprds@gmail.com
धन्यवाद
रघु उदास सा स्टेशन की और जा रहा था । आज फिर वो अपने मालिक से अग्रिम तनख्वाह के लिए बात नहीं कर पाया था ।
हालांकि पत्नी को सुबह ये कह कर निकला था कि आज वो पैसों के लिए कार्यालय में बात कर लेगा, और कुछ ना कुछ बंदोबस्त हो जाएगा । लेकिन मालिक से बात करने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई । कैसे करता, पहले से उसके नाम हजारों रुपये बाकी जो पड़े थे ।
तनख्वाह इतनी सी मिलती थी जिससे बस गुजारा भर हो पाता था, बच्चों की पढ़ाई के खर्चे बढ़ गए थे इस वजह से बचत का तो कोई सवाल ही नहीं था । उल्टा बीच बीच में वो कम्पनी से एडवांस लेता रहता था । जिस वजह से कम्पनी का कर्ज उस पर चढ़ा ही रहता था ।
पिछले लगभग दो सालों से यही होता आ रहा था, कभी भी वो अपनी पूरी तनख्वाह नहीं ले पाया था । हमेशा चार पांच हजार रुपये कट कर ही मिलते थे ।
मगर अभी तो उसे कुछ रुपयों की बहुत ही सख्त जरूरत थी । बड़े बेटे कृष्णा की कॉलेज की फीस जो भरनी थी ।
दोस्तों रिश्तेदारों की तरफ से उसे कोई खास उम्मीद भी नहीं थी और बहुत पहले ही कुछेक से उसे मीठा सा जवाब मिल चुका था ।
देखा जाए तो सबकी अपनी अपनी जरूरतें होती है, और वास्तव में तो सच्चाई ये है कि लोग अक्सर उन्ही की मदद करते हैं जिनसे भविष्य में उन्हें किसी मदद की उम्मीद हो । मरियल घोड़ों पर कोई दांव नहीं लगाता ।
बड़े भैया से बात करने में उसे संकोच हो रहा था । अभी पांच महीने ही तो हुए थे भतीजी सुमन की शादी को । भैया तो शायद अभी शादी में हुए खर्चों का कर्ज चुकाने में लगे होंगे ।
ये सब बातें रघु के मस्तिष्क में उथल पुथल मचा रही थी । लेकिन सबसे ज्यादा फिक्र उसे इस बात की हो रही थी कि पत्नी को क्या जवाब देगा । वो तो जाते ही पूछेगी की पैसे लाये क्या ? पिछले एक हफ्ते से वो बहाने ही बना रहा था । पत्नी भी उसकी स्तिथि से अवगत थी इसलिए ज्यादा कुछ नहीं कहती थी ।
काश.... कोई चमत्कार हो जाये । अलादीन का चिराग मिल जाये । या फलां दोस्त या रिश्तेदार जिन की आर्थिक स्तिथि काफी अच्छी है, वे मदद करदे, उन लोगों के लिए तो पंद्रह हजार मामूली सी बात है । वे चाहे तो मिनटों में मेरी इस समस्या का समाधान कर सकते है । जैसे विचार उसके दिमाग में आ जा रहे थे ।
लेकिन उससे तो मैं बात कर चुका हूं । इसने ये बोला था.... उसने ये कहा था...... कुछ ही पलों में वो बहुत सारी बातें सोच गया, परंतु नतीजा ये ही निकला कि किसी से भी मदद मांगने वाली स्तिथि में वो नहीं है, सबको उसकी वर्तमान परिस्तिथि के बारे में पता है । अतः जो कुछ करना है खुद ही करना है । लेकिन क्या..... कोई रास्ता भी तो नहीं है ऑफिस से एडवांस मांगने के अलावा ।
पों पों..... पीछे से एक गाड़ी ने हॉर्न बजाया तो उसकी तन्द्रा टूटी । गुम खयाली में वो सड़क के बीच में आ गया था ।
अबे मरणा है तो लोकल ट्रैन के आगे मर ना, मेरी गाड़ी के आगे क्यूं मरता है.... वो गाड़ी वाला भी उस पर चिल्ला कर ही वहां से गया ।
मेरी तो तकदीर ही खराब है, रघु फिर सोचने लग गया, ऑफिस में किस मुंह से पैसे मांगूं । कोई दोस्त रिश्तेदार मुझे देगा नहीं, भैया को बोल नहीं सकता.... फीस के लिए पंद्रह हजार चाहिए....... क्या करूं..... कहाँ जाऊं..... किससे कहुं...... हे भगवान कोई रास्ता दिखाओ । कोई चमत्कार दिखाओ ।
किसी भी इंसान को तकलीफ में अंततः भगवान ही याद आते है । कबीर जी ने तो बहुत पहले ही कह दिया था..
"दुख में सुमिरन सब करे सुख में करे ना कोय,
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय"
अचानक उसके मोबाइल की घंटी बजी, शायद किसी का फ़ोन आ रहा था । लेकिन उसे आश्चर्य हुआ कि आज रिंगटोन किसी डोर बेल की तरह क्यों बज रही है । उसने तो दूसरी ही कॉलर टोन लगा रखी थी ।
लगता है मोबाईल में कोई खराबी आ गई है । अब इसका खर्चा और करना पड़ेगा । "गरीबी में आटा गिला" रघु को एक और चिंता सताने लगी ।
खैर..... ये बाद में देखेंगे, अभी तो देखता हूं किसका फ़ोन है, सोचकर उसने फोन अपनी जेब से निकाला । स्क्रीन पर उसके मालिक का नाम आ रहा था ।
सेठजी इस वक्त क्यों फोन कर रहे हैं, मन ही मन सोचते हुए उसने हरा बटन दबाया.... लेकिन ये क्या.... हरा बटन दबाने पर भी फोन अभी तक बज रहा था । उसने फिर बटन दबाया लेकिन घंटी थी कि बजते ही जा रही थी ।
उसने बार बार बटन दबाया लेकिन पता नहीं क्यों फोन काम ही नहीं कर रहा था । उसने फिर एक बार कोशिश की लेकिन तब तक फ़ोन कट गया । वो दोबारा फ़ोन आने की प्रतीक्षा करने लगा लेकिन तभी..... उसके कानों में पत्नी की आवाज आई....।
"सुनो जी, उठो.... बड़े भैया और भाभी आये हैं गांव से । वे पता नहीं कब से दरवाजे की घंटी बजा रहे थे । मेरी आँख खुली और दरवाजा खोला तो देखा भैया भाभी है ।"
तब उसको समझ मे आया कि वो सपना देख रहा था और सपने में उसके फ़ोन की घंटी जो डोर बेल की तरह सुनाई दे रही थी वो वाकई में डोर बेल ही बज रही थी । शुक्र है कि फोन ठीक है ।
वो बिस्तर से उठ के आया और बड़े भैया एवं भाभी के पांव छू के पहले कुशलक्षेम पूछी और फिर अचानक आने का कारण । तब तक चाय बनके आ गई । चाय की चुस्कियां लेते लेते बड़े भैया ने कहा ।
"लगता है तुम भूल गए हो रघु, मैनें तुम्हे बताया था ना कि कार्यालय के काम से इस सप्ताह मुम्बई आ रहा हुं, इस उमर में ही क्या हो गया तुम्हारी याददास्त को ।" भैया हंसते हुए बोले ।
अब रघु उन्हें क्या बताता कि दूसरी चिंताओं ने जो उसे इस तरह घेरा है उनके चलते वो अपने आप को भी भूल गया है ।
लेकिन भैया को उसने हंस कर इतना ही कहा "नहीं भैया, हफ्ता याद था, बस तारीख भूल गया था ।"
"कोई बात नहीं, मैं तो मजाक कर रहा हुं ।" भैया हंसते हुए बोले, तभी बड़ा लड़का भी उठकर आ गया । उसे अपने पास बैठा कर भैया बोले......
"बहुत खुशी है कि अपना कृष्णा अब कॉलेज में आ गया है, पर सुना है मुम्बई में पढ़ाई काफी खर्चीली होती है और मैं जानता हुं कि तुम्हारी तनख्वाह भी सीमित है ।" भैया ने कहा ।
"लेकिन तुम चिंता मत करना रघु, अब से कृष्णा की पढ़ाई का पूरा जिम्मा मेरा । शायद इसके भाग्य से पिछले महीने ही मेरी तनख्वाह में मालिक ने अच्छी खासी बढ़ोतरी की है ।"
भैया बोलते बोलते रुके और अटैची में से पैसे निकाल कर रघु को देते हुए बोले । "फिलहाल इसकी फीस और अन्य खर्चों के लिए ये बीस हजार रुपये रखो । इसको अच्छे से कॉलेज में दाखिला दिलवाना ।"
"परंतु भैया....." रघु कुछ कहता इससे पहले ही भैया ने उसको हाथ के इशारे से रोक दिया ।
फिर मुस्कुराकर बोले, "तुम्हारी भतीजी सुमन की शादी के बाद तो मैं अब बड़ी जिम्मेदारियों से लगभग मुक्त सा हो गया । उसके विवाह पर हुए सारे खर्चों का भुगतान भी हो चुका है ।"
"और फिर तुम्हारे और सुमन के अलावा मेरा और है ही कौन, छोटा भाई पुत्र समान होता है, सो जो मेरा है वो तुम्हारा ही तो है ।"
भैया बोलते जा रहे थे लेकिन रघु तो दूसरे ही खयालों में गुम था । उसकी सारी चिंताएं पल में दूर हो गई थी । हे भगवान, आपने इतनी जल्दी चमत्कार दिखा दिया । वो सोच रहा था कि शंका के मारे उसने भैया से पहले बात क्यों नहीं की ।
उधर उसकी पत्नी सोच रही थी कि अच्छा किया उसने कि फ़ोन करके बड़े भैया भाभी को सब हालातों से अवगत करवा दिया था, और भैया ने उसे आश्वस्त किया था कि चिंता मत करो । मैं रघु को पता भी नहीं चलने दूंगा और कृष्णा की पढ़ाई के खर्च की व्यवस्था भी कर दूंगा ।
उधर भैया कृष्णा और विक्की के साथ लूडो खेलने में मस्त थे । रसोई में भाभी और उसकी पत्नी किसी बात पर खिलखिला कर हंस रही थी । कुछ ही पलों में घर का पूरा वातावरण आनंदमय हो गया था ।
पास वाले घर से टेलीविजन पर बजते गाने के बोल सुनाई पड़ रहे थे । "अपने तो अपने होते हैं...।"
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*शिव शर्मा की कलम से*