गृह ऋण भाग 2
भाग 1 में आपने पढ़ा कि कैसे कुछ निजी संस्था और राष्ट्रीयकृत बैंक ने मेरा ऋण अस्वीकृत कर दिया था । वो तो भला हो उस महान आत्मा का जिसने मुझे कोऑपरेटिव बैंक का रास्ता सुझाया और मैंने उस और रुख कर लिया था ।
कोऑपरेटिव बैंक के मैनेजर ने जब मुझे आश्वस्त किया कि उनकी बैंक मुझे लोन दे देगी, तो मेरी आशाओं का सूरज एक बार फिर प्रकाशवान हो उठा । मैं जब वहां से निकला तो काफी खुश था कि चलो अब तो लोन वाला काम हो जाएगा ।
घर आकर जब पत्नी और बच्चों को मैंने सब बात बताई तो उनके चेहरों पर भी थोड़ी सी रौनक आ गई । क्योंकि पिछले बैंकों के जवाबों से हताशा तो उन्हें भी हो गई थी ।
मैनेजर ने मुझे आते वक्त नया खाता खोलने और लोन के लिए जरूरी फॉर्म भी भर के लाने के लिए दे दिए थे ।
फिर मैनें बैठकर दोनों फॉर्म ध्यान से देख पढ़कर भरे और साथ ही हम सबने विचार विमर्श किया कि फॉर्म में दी गई हिदायतों, जरुरतों को कैसे पूरा करना है, जैसे गारंटर से दस्तखत लेना, उनके रिटर्न्स की कॉपी, फोटो इत्यादि । अन्य जरूरी कागजातों का पुलंदा तो चौबीसों घंटे तैयार ही था ।
अगले दिन सबसे पहले बैंक में जाकर नए खाते खुलवाए । आधे से ज्यादा दिन इसी में लग गया था, जो गारंटर हमने निश्चित किये थे वे भी अपने अपने दफ्तर चले गए थे ।
आजकल मोबाइल का जमाना है सो उनसे फ़ोन पर बात करके अगले दिन सुबह का मिलने का समय ले लिया और अगले दिन सुबह सुबह ही दोनों के घर जा कर वो काम भी कर लिया ।
पत्नी और बच्चे भी अपना अपना सहयोग दे रहे थे । दस बजे तक हमने उन सभी कागजातों की एक फ़ाइल बनाकर तैयार कर ली और पुनः एक नजर उन कागजातों पर डालकर मैं बैंक पहुंचा, और फ़ाइल मैनेजर को सौंप दी ।
मैनेजर साहब ने अपना चश्मा दुरुस्त करते हुए पारखी नजरों से सभी कागजातों का निरीक्षण किया और एक कमी निकाल ही दी, कि गारंटर के जो फॉर्म हमने साइन करवाये हैं, वे फॉर्म नहीं चलेंगे, बल्कि उसके लिए अन्य दो फॉर्म है जो भर के देने होंगे । नए फॉर्म मैनेजर साहब ने अपनी दराज से निकाल कर मुझे थमा दिए और व्यवहारसुलभ मुस्कान के साथ कहा कि ये फॉर्म साइन करवा के ला देना ।
'मरता क्या नहीं करता'..... मैनें वे फॉर्म ले लिए और अगले दिन लाने को कहकर वहां से चलने को हुआ तो मैनेजर ने बताया कि कल तो चौथे शनिवार की छुट्टी है और परसों रविवार, सो आप सोमवार को आ जाना या फिर फ्लैट के रजिस्टर्ड कागज लाओ तब ले आना, फिर मैं जल्दी से जल्दी आपका लोन पास करवाता हुं ।
उनको अंग्रेजी में 'थैंक यू' कहकर मैं वहां से निकला और सीधा पहुंच गया एक फ्लैट देखने । एक एस्टेट एजेंट ने फोन करके वहां बुलाया था ।
घर भी शीघ्रतिशीघ्र पसंद करना था क्योंकि मैनेजर ने कहा था कि घर के कागज रजिस्ट्री करवा कर बैंक में देने हैं तभी लोन का काम होगा ।
इसीलिए मैनें घर पर फ़ोन करके बता दिया और बैंक से सीधे उस एस्टेट एजेंट के पास पहुंच गया जो मुझे एक घर दिखाने ले आया ।
युं तो अब तक हम छत्तीसों घर देख चुके थे, सब में कुछ ना कुछ उन्नीस बीस हो जाता था । कहीं मोहल्ला नहीं जमता था, तो कहीं रकम हमारे बजट से बाहर होती थी ।
परन्तु ये घर लगभग हमारी जरूरत के हिसाब का था । बजट में भी था और उस इमारत में रहने वाले अन्य रहिवासी भी हमारे अनुसार थे । पत्नी और बच्चों को भी वो घर दिखाया तो उन्हें भी पसंद आ गया ।
जब सबको जच गया तो फिर क्यों देर करें सो विचार विमर्श करके उस घर के वर्तमान मालिक, एस्टेट एजेंट और हमने बैठकर घर की कीमत और अन्य बातें तय कर ली ।
अगले एक सप्ताह में लिखापढ़ी करके, बैंक लोन के अलावा जो भुगतान बनता था वो मैनें उनको कर दिया और रजिस्ट्रार दफ्तर में जा कर फ्लैट का हमारे (मेरे और पत्नी के) नाम से रेजिस्ट्रेशन भी करवा लिया । इस बीच गारंटर के नए फॉर्म भी साइन करवा लिए थे ।
अगले दिन खुशी खुशी सारे कागजात ले कर बैंक जाकर बैंक मैनेजर को सभी डाक्यूमेंट्स दिए ।
उन्होंने उनका निरीक्षण करते हुए मुझसे पूछा कि आप नाइजीरिया वापस कब जा रहे हैं ।
मैनें कहा 'सर मैनें आपको बताया था न कि अगली 2 तारीख तक मैनें अपनी छुट्टी बढ़वाई है, अभी 17 दिन बचे हैं ।'
फिर विनय करने के अंदाज में मुस्कुराते हुए मैनें उनसे पूछा कि तब तक तो आप मेरा लोन स्वीकृत करवा ही देंगे ना, ताकि मैं निश्चिंत हो कर वापस जा सकूं ।
उन्होंने मुझे आश्वस्त किया मगर साथ ही एक और काम बोल दिया कि हां हो जाएगा, लेकिन आप एक पावर ऑफ अटॉर्नी बना लीजिए अपनी पत्नी के नाम से ताकि आपके विदेश चले जाने के बाद यदि कहीं किसी हस्ताक्षर की आवश्यकता हो तो वे कर सके ।
मैनें फिर वही सोचा कि चलो जहां इतने दिए वहां एक और पेपर सही । इस काम में और चार पांच दिन निकल गए थे । मेरी यात्रा की तिथि भी नजदीक आती जा रही थी ।
पावर ऑफ अटॉर्नी ले कर मैं बैंक पहुंचा और मैनेजर साब को उसकी एक प्रतिलिपि सौंप दी, और पूछा कि सर अभी तो मेरे खयाल से सभी कागजात आ गए हैं, जल्दी से मेरा काम करवाइए ना । सामने क्रिसमस की छुट्टियां भी आ रही है उस से पहले पहले स्वीकृति पत्र मिल जाये तो चैन आ जाये सर ।
हमेशा की तरह इस बार भी उन्होंने आश्वाशन देते हुए कहा कि चिंता मत कीजिये, आपका काम हो जाएगा । फिर उन्होंने बताया कि मेरी फ़ाइल उन्होंने अपने मातहत को सौंप दी है और अब मैं उस के ही संपर्क में रहूं ।
मैनें भी सोचा शुभ काम में देरी क्यों, इसलिए तुरंत जाकर उस अफसर से मिला जिसके पास मेरी फ़ाइल मैनेजर ने दी थी ।
औपचारिक दुआ सलाम के बाद मैनें जैसे ही उसे अपना नाम और काम बताया तो उसने ऐसे रियेक्ट किया जैसे वो ये ही कहने के लिए ही मेरा इंतजार कर रहा था ।
'अरे अच्छा हुआ आप आ गए, नहीं तो मैं आपको फोन करने वाला था । आपकी फ़ाइल मैनें देख ली है, आप एक काम कीजिये, एक तो हमारे वैल्यूअर से घर की वैल्यूएशन करवाइए और एक सर्वेयर की सर्वे रिपोर्ट, ये दो रिपोर्ट और दे दीजिए, फिर मैं आपकी फ़ाइल हमारे मुख्य कार्यालय में भेजता हुं ।'
फिर वही "मरता क्या न करता" वाली ही बात । ये दोनों काम भी मैनें करवाये ।
एक रिपोर्ट तो मेरी उपस्तिथि में ही आ गई, लेकिन दूसरी रिपोर्ट में और दो तीन दिन लगने थे । मेरी अगले दिन की टिकट थी सो उस दिन बैंक जा कर मैनेजर और उस अफसर से मिल कर आया । दोनों ने मुझे निश्चिंत हो कर जाने को कहा । परन्तु निश्चिंत तो काम होने पर ही हुआ जा सकता है, ये उन्हें कैसे समझाता ।
मैं निश्चित दिन की उड़ान से वापस नाइजीरिया आ गया । जैसे मुझे लगा था कि अब तो जल्दी ही चेक मिल जाएगा वैसे ही आपको भी लग रहा होगा कि 'इतने सारे' कागजात देने के बाद तो मेरा ऋण 10-12 दिन में हो ही गया होगा ।
जी नहीं..... इसके बाद भी कई दिन तक तो कभी ये पेपर कभी वो रिपोर्ट, कभी गारंटर के साईन, कभी बीच बीच में बैंक की छुट्टी इत्यादि चलते रहे । मैं खुद, पत्नी और बच्चे उम्मीद और मिन्नतें कर कर के थक से गए थे ।
पर कहते हैं ना कि 'अंत भला तो सब भला', बैंक के अनुसार आठ कार्य दिवस में होने वाला काम भले ही ढाई महीने में हुआ, लेकिन अंत में हुआ । ये अलग बात है कि बैंक ने उस फ्लैट का एक और जरूरी रजिस्ट्रेशन करवाया था ।
वैसे हम सब थक से गये थे, झुंझलाहट को अंदर ही अंदर दबा रहे थे, एक दो बार तो मन में हुआ कि ये घर खरीदने का विचार कुछ समय के लिए और टाल दें....।
परंतु अंत में जब चेक हाथ में आया, तो सारी थकान उतर गई, सारी झुंझलाहट छू मंतर हो गई । भले ही कर्ज मिला था, लेकिन ये कर्ज भला था । एक अपने घर का सपना जो पूरा हो गया था ।
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जल्दी ही फिर मिलते हैं दोस्तों एक नई रचना के साथ । तब तक के लिए विदा मित्रों ।
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जय हिंद
*शिव शर्मा की कलम से*