माँ ओ माँ
नमस्कार मित्रों । होम लोन के भाग 1 और भाग 2 दोनों को आपने भरपूर सराहा । आप सभी का आभार व्यक्त करता हुं ।
आज आपके लिए एक कविता लेकर आया हुं, कैसी है ये तो आप ही बताएंगे, लेकिन विषय वाकई बहुत सुंदर है "माँ" । इस विषय पर, जैसा कि मैंने पहले भी कहा था, कि जितना भी लिखो, कम है । इसकी सीमाएं अनंत है ।
मैनें कहीं ये खूबसूरत पंक्तियां पढ़ी थी कि "एक दिन सारी दुनिया तुम्हारी फ़िकर करना छोड़ देगी, लेकिन मां कभी नहीं ।" सच है कि बच्चे कितने भी बड़े क्यों ना हो जाये, माँ फ़िकर करना नहीं छोड़ती ।
माँ ओ माँ कविता आपको कैसी लगी जरूर बताएं ।
माँ ओ माँ
सबसे निश्छल सबसे पावन
इस संसार में मां
ईश्वर से भी लड़ जाती
संतान के प्यार में मां
बच्चों को आँचल ओढाती
उंगली पकड़ कर चलना सिखाती
पहली गुरु यही होती है
भले बुरे की सीख पढ़ाती
बहुत कीमती होती है
अपने परिवार में मां
नजर आ ही जाती है
बच्चों के संस्कार में मां
जल्दी जल्दी हाथ चलाती
सबको खिलाकर ही खुद खाती
बेटा बेटी फर्क ना करती
ममता सब पर खूब लुटाती
स्नेह बराबर मिलाके देती
अपने दुलार में मां
कमी नहीं आने देती है
अपने प्यार में मां
बेटे बेटी बड़े हो गए
अपने पैरों खड़े हो गए
सुबह को दोनों काम पे जाते
जब तक वापस घर नहीं आते
बार बार दरवाजा तकती
इंतजार में मां
मनभावन पकवान खिलाती
हर इतवार में मां
हर मैया की अलग कहानी
कोई नहीं है इसका सानी
कौशल्या हो या हो यशोदा
ममता इनको भी थी पानी
इसीलिए प्रभु ने भी ढूंढी
हर अवतार में मां
चांदनी जैसी शीतल निर्मल
है संसार में मां
सबसे निश्छल सबसे पावन
इस संसार में मां
ईश्वर से भी लड़ जाती
संतान के प्यार में मां ।।
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जल्दी ही फिर मिलते हैं दोस्तों एक नई रचना के साथ ।
जय हिंद
*शिव शर्मा की कलम से*