पता ही ना चला
आशा है हर बार की तरह इस बार भी आप मेरी इस नई रचना को अपना भरपूर स्नेह देंगे ।
पता ही ना चला
आसमान पे बादल छा गए, पता ही ना चला,
सितारे जमीं जगमगा गए, पता ही ना चला,
ना धूप देखी, ना कभी चांदनी में नहाए,
सब मौके गंवा गए, पता ही ना चला,
हकीमों ने सलाह दी, खुराक कम करो,
हजारों गम खा गए, पता ही ना चला,
यूं तो पीते थे हम, महज शौक की खातिर
जाम से बोतल पे आ गए, पता ही ना चला,
नजर मिली, तो दबा के दांतों में पल्लू,
वो क्यों शरमा गए, पता ही ना चला,
अब ना बहाएंगे आंख से आंसू, सोचा था,
गुजरे पल रुला गए, पता ही ना चला,
भरोसा था जिन पर, खुद से भी ज्यादा,
खेत ही बाड़ खा गए, पता ही ना चला,
मिले थे "शिव", जो कभी ना बिछड़ने को,
कब हाथ छुड़ा गए, पता ही ना चला ।।
* * * * * * * *
जल्दी ही फिर मिलते है एक नई रचना के साथ । आप सब अपना और अपनों का खयाल रखें । सतर्क रहें, सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें ।
जय हिंद
*शिव शर्मा की कलम से*
धन्यवाद
Bhaut khoob sir
ReplyDeleteAwsm
ReplyDeleteWah
ReplyDeleteSahi hai sir 🙏🙏🙏
ReplyDeleteAwsm
ReplyDeleteAwsm
ReplyDeleteAwsm
ReplyDeleteआप लिखते रहे, हम पढते चले,
ReplyDeleteकारवां बनता गया, पता ही न चला
Very nice 👌👌👌👌
ReplyDeleteअदभुत , बहुत सुंदर
ReplyDelete