Thursday 27 December 2018

नन्ही कोंपल

नन्ही कोंपल



नमस्कार दोस्तों । आज एक कविता लेकर आया हुं जिसकी भूमिका मैं नहीं बताऊंगा । आप ही बताएं कि जब मैं ये कविता लिख रहा था तो नन्हीं कोंपल की आड़ में मेरे मस्तिष्क में क्या दृश्य रहा होगा । मैं आपके जवाब का इंतजार करूंगा ।


नन्ही कोंपल


समय ना रुका है ना रुकता है
ना थकता है, ना झुकता है

पीढियां आती है
चली जाती है
समय के साथ
कुछ नन्ही कोंपल
पौधा बन जाती है,

अपनी नई काया पर
इठलाती, इतराती, बलखाती
हवाओं से अटखेलियां करती
नन्ही नन्ही शाखाओं को
अपने आसपास लहराती

देखती है बड़े बड़े जर्जर पेड़
जो सुख चुके हैं अंदर से
हवाओं के तेज झोंके से
जो गिर सकते हैं कभी भी

वो कोंपल
उपहास उड़ाती है
उन बूढ़े पेड़ों का
ये भूलकर
कि उन्ही के साए में
वो पनप रही है
कोंपल से पौधा बन रही है

मगर वो मुरझाये हुए वृक्ष
मुस्कुराते हुए
आनंद उठाते है
कोंपल से पौधा बने
अपने उस नए सदस्य का

निहारते हैं उसकी सुंदरता
खुश होते है
देखकर उसकी चंचलता
तेज धूप में
उसे छाया देते हैं
हवा के तेज थपेड़ों में
अपना साया देते हैं



हर संकट से छुपाते
हर तरह से खयाल रखते है
नई कोंपल को बचाने
हर सुख दुख सहते हैं

वही कोंपल एक दिन
जवान हो जाती है
एक बड़ा पेड़ बन जाती है

अपनी मजबूत शाखाएं
गुरुर से फैलाती है
युवा ताकत के मद में
उन बूढ़े पेड़ों को सताती है

वो चाहती है उन्हें वहां से हटाना
ताकि लहरा सके
अपनी शाखाओं को
आसमान तक

क्योंकि उसे भान नहीं है
दुनिया की बुरी नजरों का
उसे भान नहीं है
पग पग पर फैले खतरों का

बूढ़े वृक्ष उसे बचाते हैं
समझाते हैं
दायरे में रहकर
शालीनता से जीना सिखाते हैं

उसे दिखाते हैं आईना
कि भविष्य में
वो भी एक
बूढा पेड़ बनेगी
तेरे साये में भी
कुछ नई कोंपल उगेगी

तुम्हें संभालना है उन्हें
बड़ा करना है उन्हें
हम आज है
कल रहें ना रहें

मगर तुम रहोगे
क्या सब कुछ
अकेले सहोगे
इसलिए
अपने साये में
नई कोंपलें उगने देना
खिलने देना, महकने देना
फिर देखना
जीवन महक उठेगा
पल पल चमक उठेगा

कुछ कोंपलें
समझ जाती है
अपने बुजुर्गों की बातें

और जीती है
एक शांतिमय मधुर जीवन
अनेकों अन्य
नई कोंपलों के साथ

और वो कोंपल
जो अपनी अकड़ में
यौवन के मद में
नकार देती है नसीहतें
एकाकी रह जाती है
अंत समय पछताती है

हवा के हल्के से झोंके में
जब हिलती है जड़ें
तब ढूंढती है कोई साथी
लेकिन
कोई नहीं होता
क्योंकि
बूढ़े पेड़ सूख कर
बिना सहारे
"टिक" ना पाए
नए उसके उग्र साये में
"रुक" ना पाए ।।

* जल्दी ही मिलते है मित्रों*

बिगड़ी बात बने नहीं



जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से*








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