हौले हौले
नमस्कार मित्रों । कैसे हैं आप सब ? आशा करता हुं कि आप सब स्वस्थ और सुरक्षित हैं । मुश्किलों के इस दौर में अपना और सबका ध्यान रखें ।
आज आपके लिए एक ग़ज़ल ले के आया हुं "हौले हौले", यानि धीरे धीरे, जिसकी प्रेरणा भी अकस्मात ही मिल गई । हम तीन चार जने यूं ही कुछ चर्चा कर रहे थे और बातों बातों में किसी ने कहा कि आखिर इस महामारी का अंत कब होगा ? तो दूसरे ने कहा सब कुछ सही हो जाएगा हौले हौले । और वाकई हौले हौले सब सही हो भी जाता है तो मैंने भी हौले से ये शब्द चुना और हौले हौले लिख डाली ये ग़ज़ल "हौले हौले" । आशा करता हूँ कि पूर्व की भांति इस बार भी आप इस ग़ज़ल को भी खूब पसंद करेंगे ।
हौले हौले
जब से कोई, बदल गया हौले हौले,
दिल सीने से, निकल गया हौले हौले
आया तो था कोई, बहलाने इस दिल को,
फिर बड़े करीब से, निकल गया हौले हौले
दर्द तो होना ही था, मायूसियाँ भी बढ़ी,
मैं फिर भी, संभल गया हौले हौले
वक्त की ठोकरों ने सख्त बना दिया जिसे,
पत्थर वो भी, पिघल गया हौले हौले
बड़े जोश में निकला था अकड़कर,
सूरज शाम को, ढल गया हौले हौले
चिढ़ाता रहा अंधेरा कुछ देर तो मगर,
जादू चांद का, चल गया हौले हौले
दिल तो बच्चा है, अब "शिव" भी क्या करे
फिर किसी को देख, मचल गया हौले हौले ।।
****
शब्द भाग ३
बहुत जल्द फिर आपसे मिलता हुं, तब तक के लिए नमस्कार । अपना ध्यान रखें, घर पर रहें, सुरक्षित रहें ।
जय हिंद
*शिव शर्मा की कलम से*
आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।. Email : onlineprds@gmail.com
धन्यवाद
Super
ReplyDelete
ReplyDeleteSo wonderful Sir