परदेसी बाबू
नमस्कार दोस्तों । आज आपके लिए एक कविता लेकर आया हूँ जो कविता कम और मेरे निजी अनुभव ज्यादा है ।
अभी करीब दो महीने की छुट्टी पर मैं घर आया था जो कि चुटकियों में बीत गए थे । लगा ही नहीं कि मैं दो महीनों से देश में था । वापस आते वक्त लगा कि काश...... कुछ दिन और यहां रहता...... तो शायद काफी सारी इच्छायें और पूरी कर लेता ।
ऐसा नहीं है कि ये कोई पहली बार था, हर बार जब भी वापस आने का समय होता है तो सदैव ऐसे ही लगता है कि काश...... कुछ दिन और....।
और मैं जानता हूं कि ये अनुभव सिर्फ मेरा ही नहीं है, ये हर उस व्यक्ति के मन के भाव है जो अपने गांव, अपने देश और अपनों से दूर रहता है ।
मेरी और उन सभी परदेसी बाबुओं की भावनाओं को समेटकर इस छोटी सी कविता की माला में पिरोने का एक प्रयास किया है । आशा करता हूं कि आप इसे जरूर पसंद करेंगे ।
परदेसी बाबू
मुट्ठी से फिसलती रेत की तरह रीत जाते हैं,
दिन कितनी जल्दी बीत जाते है,
दो महीने जैसे कुछ ही पलों में बह गए,
कितने सारे काम, आधे अधूरे से रह गए,
लगता है जैसे कल ही तो घर आया था,
अभी तो सारे दोस्तों से मिल भी ना पाया था,
अभी तो घर पर चैन से बैठा भी ना था,
अभी तो नजर भर ठीक से बच्चों को देखा भी ना था,
अभी तो वाकिफ भी ना हुआ था, गांव की हवाओं से,
अभी तो खेला भी ना था, पेड़ों से, लताओं से,
मन भर के माँ के हाथों की बनी रोटी भी ना खाई थी,
अभी बहनों से राखी भी कहाँ बंधवाई थी,
पापा और भैया से, कितना कुछ कहना छूट गया था,
वापसी की टिकट देख, अंदर तक कुछ टूट गया था,
नन्ही परी घर आई थी, उसे दुलार भी ना पाया था,
उसके साथ खेलने का आनंद कहाँ उठाया था,
पत्नी के दिल की बातें तो दिल ही में रह गयी थी,
विदा होते वक्त ये बात, उसकी भरी आंखें कह गयी थी,
दिल था कि मान ही नहीं रहा था,
"वापस जल्दी आना पापा", बच्चों ने कहा था,
शायद सब चाहते थे, कि मैं यहीं पर रहूं,
कुछ उनकी सुनूं, कुछ अपनी कहुं,
पर क्या करें, हर एक की मजबूरी है
जीवन की जरूरतें पूरा करना भी जरूरी है,
परदेश नहीं जाऊंगा, तो सपने अधूरे रह जाएंगे
हंसी खुशी के ये कुछ पल भी, कमियों में बह जाएंगे,
छोटी छोटी चीजों के लिए तरसना ना पड़े,
टूटते सपने देख आंखों को बरसना ना पड़े,
तभी तो अपनों को छोड़ के परदेसी होना पड़ता है
कहते हैं, कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है,
गलत है ये कहावत, क्योंकि घुट घुट रोना पड़ता है,
कुछ पाने के लिए कुछ नहीं, "बहुत कुछ" खोना पड़ता है ।।
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अभी विदा चाहूंगा दोस्तों, जल्दी ही फिर मिलने के लिए । आपके कमेंट्स का इंतज़ार करूंगा ।
जय हिंद
*शिव शर्मा की कलम से*
धन्यवाद