Saturday 21 December 2019

शब्द भाग ३



शब्द भाग ३


नमस्कार मित्रों । "शब्द" आप इतना पसंद कर रहे हैं उसके लिए आप सभी का आभार । लीजिये पेश है शब्द भाग ३, इसी आशा के साथ कि इसे भी आप भाग १ और २ की तरह अपना अपार स्नेह प्रदान करेंगे ।

शब्द भाग ३

इसीलिए जब भी कुछ बोलो
सोचो समझो शब्दों को तोलो
पहले सोचो अर्थ अनर्थ की
पीछे फिर अपना मुंह खोलो ।।२२।।

शब्द तुम्हारी है परछाई
अच्छे बुरे ये दो है भाई
एक शब्द साजन बन जाता
दूजा बन जाता हरजाई ।।२३।।

शब्द जुड़े और गीत बन गए
जीवन का संगीत बन गए
ढाई अक्षर बोल प्रेम के
कितने मन के मीत बन गए ।।२४।।

शब्दों की माया अलबेली
मानव से करते अठखेली
प्राण कभी तन से ये निकाले
उफ्फ, कहीं पर जान ही ले ली ।२५।।

शब्दों का संसार अनोखा
मानव जीवन का है झरोखा
कहीं शब्द से बिगड़ी बनती
कहीं शब्द दे देते धोखा ।।२६।।

शब्द बड़े ही जादूगर है
खेलने वाले बाजीगर है
कब किस वक्त पे क्या हम बोले
शब्द बनाते हमें चतुर है ।।२७।।

शब्द शांति भी ले आते है
मन में भ्रांति भी ले आते हैं
अगर कोई सेनानी बोले
शब्द क्रांति भी ले आते हैं ।।२८।।

बोस सुभाष के कुछ शब्दों ने
स्वतंत्रता की अलख जगा दी
खून के बदले आजादी की
नेताजी ने शर्त लगा दी ।।२९।।

आजादी के दीवानों पर
उन शब्दों ने असर दिखाया
एक एक से हुए हजारों
जोश नजर हर एक में आया ।।३०।।

हिन्द फ़ौज बन गयी अनूठी
अंग्रेजों की किस्मत फूटी
जयहिंद का घोष सुना तो
फिरंगियों की हिम्मत टूटी ।।३१।।

पंद्रह अगस्त सन सैंतालीस में
भारत ने आज़ादी पाई,
साहस और हौसले के संग
शब्दों ने ताकत दिखलाई ।।३२।।

रघुकुल में भी शब्द जाल ने
एक कथा ऐसी रच डाली
एक दासी के बहकावे ने
कैकई की बुद्धि हर डाली ।।३३।।

राम की लीला थी अति न्यारी
त्रेता युग के थे अवतारी
कौशल्या के लाल लाडले
जिन्हें पूजती दुनिया सारी ।।३४।।

माताओं की आंख के तारे
दशरथ के वे राजदुलारे
भरत लखन और शत्रुघ्न को
लगते थे अग्रज वे प्यारे ।।३५।।

दशरथ ने ये मुनादी कराई
राम बनेंगे अवध के राजा
होने लगा नगर में उत्सव
बाजे ढोल नगाड़ा बाजा ।।३६।।

अवधपुरी के प्रजाजनों में
राम ही राम थे सबके मनों में
लेकिन कुछ शब्दों के कारण
बदल गया था दृश्य क्षणों में ।।३७।।

कुटिल मन्थरा के शब्दों ने
कैकई को मतिभ्रम कर डाला
रानी ने महाराज से मांगा
राम की खातिर देश निकाला ।।३८।।

कुछ शब्दों के जाल ने कैसा
रघुकुल में भी विष फैलाया
अनुनय विनय करे दशरथ पर
एक शब्द भी काम ना आया ।।३९।।

पूरी लीला को समेटकर
शब्द शब्द शब्दों से जोड़कर
तुलसीदास जी ने लिख डाली
रामायण की गाथा सुंदर ।।४०।।

सूंदर सुंदर शब्द सजे जब
तो रचनाएं बन जाती है
एक शब्द जो जुड़े शब्द से
मधुर कथाएं बन जाती है ।।४१।।

आओ हम भी करें प्रतिज्ञा
कटु शब्द ना अब बोलेंगे
मीठी बोली से हर दिल में
मधुर सरस अमृत घोलेंगे ।।४२।।

क्रोधावेश में भी कुछ रुककर
बोलें भी तो सोच समझकर
क्योंकि शब्द बना सकते हैं
स्नेह भरी धरती भी बंजर ।।४३।।

प्रेम की बोली सबसे प्यारी
मीठी मीठी न्यारी न्यारी
आओ हम भी मधुर वाणी से
चलो जीत लें दुनिया सारी ।४४।।

जय हिंद

"शब्द" के तीनों भाग आपको पसंद आये होंगे । जो मित्र किसी कारणवश भाग 1 या भाग 2 नहीं पढ़ पाए तो इसी पेज पर उनका लिंक दिया हुआ है, लिंक पर क्लिक करके आप उन्हें पढ़ सकते हैं ।

जल्दी ही फिर मिलेंगे मित्रों एक नई रचना के साथ । तब तक के लिए नमस्ते ।

*शिव शर्मा की कलम से*



शब्द भाग २



आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।.  Email : onlineprds@gmail.com

धन्यवाद


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Thursday 21 November 2019

शब्द - भाग २



शब्द भाग २


नमस्कार मित्रों, शब्द का पहला भाग आपने इतना पसंद किया उसके लिए आप सभी का आभार ।

आपकी आतुरता को आदर देते हुए आज ले आया हुँ शब्द का दूसरा भाग । आशा है इसे भी आप भाग १ की तरह ही अपना स्नेहाशीष देंगे, और अपने अन्य मित्रों को भी इसका लिंक, पहले की तरह, अग्रसर (फॉरवर्ड) करेंगे ।

आज के भाग में रानी द्रोपदी द्वारा दुर्योधन को कहे गए शब्दों के कारण हुए महाभारत युद्ध के कुछ दृश्य दिखाने का प्रयास है, अब मैं कहां तक इस प्रयास में सफल हुआ हूं ये तो आपके कमेंट्स द्वारा ही पता चलेगा। तो लीजिये, शब्द भाग २ आपके लिए ।

शब्द भाग २


अर्जुन कर्ण का वध क्यों करता
भीम प्रतिज्ञा किसलिए करता
झूठ युधिष्ठिर भी ना बोलता
भीष्म पितामह कभी ना मरता ।।८।।

अगर जरूरी नहीं बोलना
व्यर्थ क्यों मुख फिर अपना खोलना
चुप से मगर कोई बात जो बिगड़े
घोर पाप तब नहीं बोलना ।।९।।

अगर भीष्म तब चुप ना रहते
गुरु द्रोण कुछ शब्द जो कहते
महाभारत की कथा ना होती जो
द्युत क्रीड़ा चुपचाप ना सहते ।।१०।।

वहां जरूरी था कुछ कहना
बहुत गलत था तब चुप रहना
शब्द अगर उपयोग में लाते
कष्ट का पल ना पड़ता सहना ।।११।।

शकुनि के पांसे थे भारी
धर्मराज ने बाजी हारी
दुर्योधन ने जीत लिए थे
पांचाली संग भाई चारी ।।१२।।

दुर्योधन ने शब्द सुनाए
पांचाली को पकड़ ले आये
दुःशासन ने वस्त्र जो खिंचे
द्रोपदी को अब कौन बचाये ।।१३।।

पांचाली ने मन ही मन में
शब्द मदद को कुछ दोहराये
व्याकुल शब्द सुने गिरधर ने
लाज बचाने दौड़े आये ।।१४।।

परिस्थिति थी चुप रहने की
भीम में शक्ति कब सहने की
कड़ी प्रतिज्ञा कर डाली थी
दुशाशन का लहू पीने की ।।१५।।

कुछ शब्दों ने कर क्या डाला
भ्राताओं को लड़वा डाला
चाचाओं के हाथों एक
भतीजे को भी मरवा डाला ।।१६।।

विध्वंसक एक युद्ध हो गया
शरशय्या पर भीष्म सो गया
अभिमन्यु, गुरु द्रोण, दुशाशन
कर्ण ना जाने कहाँ खो गया ।।१७।।

अगर द्रोपदी चुप रह जाती
शब्दों को बाहर ना लाती
दुर्योधन की ईर्ष्या शायद
युद्ध का रूप नहीं ले पाती ।।१८।।

कुछ शब्दों ने और कुछ चुप ने
काम बिगाड़ा था तब सारा
गुरु शिष्य बन गए थे दुश्मन
भाई ने भाई को मारा ।।१९।।

माना था दुर्योधन दम्भी
कारण नहीं था युद्ध का फिर भी
पांचाली के उन शब्दों ने
आग में डाल दिया थोड़ा घी ।।२०।।

उन लपटों में हस्तिनापुर
जल उठा था फिर धु धु कर
रोज जली थी कई चिताएं
था दृश्य वो बड़ा भयंकर ।।२१।।

इसीलिए जब भी कुछ बोलो
सोचो समझो शब्दों को तोलो
पहले सोचो अर्थ अनर्थ की
पीछे फिर अपना मुंह खोलो ।।२२।।

शब्द भाग 1



** क्रमशः ***

अगले भाग में जल्दी ही आपके लिए ले के आऊंगा की ये छोटा सा शब्द "शब्द" और क्या क्या कर सकता है, क्या क्या अर्थ अनर्थ कर सकता है । तब तक के लिए विदा मित्रों ।

जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से*










आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।.  Email : onlineprds@gmail.com

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Wednesday 13 November 2019

शब्द


शब्द


नमस्कार मित्रों । आशा है आप सब सकुशल और प्रसन्नचित्त होंगे ।

इस बार थोड़ा हटकर एक कविता लिखने का प्रयास कर रहा हुं, इस आशा के साथ कि ये अवश्य ही आपको पसंद आएगी और आप भी उसे आगे से आगे बढ़ाते (फॉरवर्ड करते) जाएंगे ताकि आपके अन्य मित्र भी इसे पढ़ सकें ।

एक छोटा सा शब्द है "शब्द", लेकिन हम कब, कहां और कैसे इन शब्दों का उपयोग करते है, वही शब्द हमारे व्यक्तित्व की परछाई बन जाते हैं ।

प्रेमवश जहां हम अच्छे और सुंदर शब्दों का प्रयोग करते हैं वहीं विपरीत परिस्थितियों में, क्रोधावेश में, हम ऐसे शब्दों का चयन कर बैठते हैं जो अर्थ का अनर्थ कर के जीवन में जहर घोल देते है ।

उदाहरणार्थ जैसे महाभारत काल में द्रोपदी इंद्रप्रस्थ में अगर दुर्योधन को वे "अंधे का पुत्र अंधा" जैसे व्यंग्यात्मक शब्द ना बोलती तो शायद महाभारत ना हुई होती । बहुत से हजारों वीर योद्धा असमय काल के गाल में ना समाते ।

ऐसे ही त्रेता युग में (भगवान राम के समय) रावण यदि अपने भाई विभीषण को कटु शब्द ना बोलता तथा विभीषण के शब्दों पर गौर करके माता सीता को ससम्मान श्री राम को सौंप देता तो आज शायद हर वर्ष रावण के पुतले ना जलते ।

मेरे कहने का अर्थ इतना सा है कि ये "शब्द" भले ही एक छोटा सा शब्द हो मगर ये अपने अंदर बहुत कुछ छुपाये हुए है । किस समय हम किन शब्दों का उपयोग करें ये हमारी सोच और बुद्धि पर निर्भर करता है । ये शब्द ही है जो लोगों के दिलों में आदर भी पैदा कर सकते हैं और दूरियां भी ।

अतः आप जब भी कुछ बोलें, सदैव सोच समझकर और तोल मोल कर बोलें, ताकि आप लोगों के दिलों में जगह बना सकें और उन के हृदय में आपके लिए सदैव सम्मान और आदर बना रहे ।

इस बार मैनें इसी "शब्द" को अपनी कविता का शीर्षक चुना है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप इस कविता को भरपूर आशीर्वाद देंगे ।

तो लीजिये, अब ये कविता "शब्द" आपकी अदालत में पेश कर रहा हूँ । अपने विचारों से अवगत जरूर कराएं । अग्रिम धन्यवाद के साथ पेश है "शब्द" ।

शब्द  भाग १

शब्द बोलते, शब्द तोलते
शब्द दिलों का राज खोलते
शब्द ही परिभाषा बन जाते
शब्द कभी आशा बन जाते ।।१।।

शब्द नरम है शब्द गरम है
शब्द भी रखते लाज शर्म है
सोच समझ कर शब्द बोलना
शब्द है पूजा शब्द धर्म है ।।२।।

शब्द वही जो मन को भाये
मधुर शब्द सबको हर्षाये
कड़वा शब्द जहर है ऐसा
असर करे, रिश्ते मर जाये ।।३।।

शब्द ही मन का मैल मिटाते
शब्दों से चेहरे खिल जाते
शब्द बने कटु शब्द अगर तो
घर घर में झगड़े करवाते ।।४।।

शब्द कई घायल कर देते
शब्द हमें पागल कर देते
शब्द अगर हो अमृत जैसे
दुनिया को अपना कर लेते ।।५।।

हस्तिनापुर था शक्तिशाली
अभिमन्यु बालक बलशाली
युद्ध महाभारत ने कर डाली
वीरों से धरती ये खाली ।।६।।

पांचाली कुछ शब्द ना कहती
महाभारत की बात ना चलती
शकुनि के पांसे ना होते
लाक्षागृह की घटना ना घटती ।।७।।

अर्जुन कर्ण का वध क्यों करता
भीम प्रतिज्ञा किसलिए करता
झूठ युधिष्ठिर भी ना बोलता
भीष्म पितामह कभी ना मरता ।।८।।


खजाना



** क्रमशः ***

मित्रों क्षमा चाहूंगा, ये कविता जरा लम्बी होगी अतः इसे हम कुछ पार्ट में आपके सम्मुख पेश करेंगे । आपसे वादा है कि "शब्द भाग 2" बहुत शीघ्र ही आपके सामने होगा । मुझे पूरा विश्वास है कि थोड़ा सा वक्त तो आप देंगे ही ।

कुछ समय बाद फिर मिलते हैं, तब तक के लिए विदा दोस्तों ।

जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से*










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धन्यवाद

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Tuesday 1 October 2019

खजाना


खजाना



नमस्कार दोस्तों । इस बार बहुत लंबे अर्से के बाद आपके रूबरू हो रहा हुं, लेकिन अब आप से थोड़े थोड़े अंतराल पर मुलाकात होती रहेगी ।

इस बार एक ग़ज़ल "खजाना" लेकर आया हुं और उम्मीद करता हुं कि आप इसे पसंद करेंगे ।

खजाना

जिंदगी में दर्द के पल भूल जाना चाहिए,
आदमी को बे वजह भी मुस्कुराना चाहिए,

क्या हुआ गर ख़ाब कुछ तेरे अधूरे रह गए,
जो हुए पूरे उन्ही में दिल लगाना चाहिए,

दूर है मंजिल तेरी और जिस्म में ताकत नहीं,
ऐसे बचकाने बहाने ना बनाना चाहिए,

कर लगन होकर मगन पहचान अपने लक्ष्य को,
और तान सीना ठान कदमों को बढ़ाना चाहिए,

दूसरों की कामयाबी पर जलन क्योंकर करें,
खुद को कुछ कर जाने के काबिल बनाना चाहिए,

मैं ही मैं हुं, सब मेरा है, मुझसे आगे कौन है,
इस तरह की सोच को तीली लगाना चाहिए,

राह हो मुश्किल मगर आसान करनी हो अगर,
मां बाप के चरणों में ये मस्तक झुकाना चाहिए,

रास्ते कांटों भरे और दूर मंजिल इसलिए,
साथ में उनकी दुआओं का खजाना चाहिए,

गर कोई मजबूर है, है जुल्म से दबा हुआ,
फायदा मजबूरियों का नहीं उठाना चाहिए,

जो कर सके कुछ तू अगर, तो कर मदद मजबूर की,
दे सहारा उनकी भी हिम्मत बढ़ाना चाहिए,

देखता है रब तुझे हर पल छुपी नजरों से शिव,
दाग से दामन सदा अपना बचाना चाहिए ।।

** ** ** ** ** **


मजदूर



जल्दी ही फिर मिलते है दोस्तों ।

जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से*







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Wednesday 30 January 2019

मजदूर



मजदूर


रविवार का दिन था और ठिठुराती हुई सुबह के उस वक्त लगभग आठ बज रहे थे । ठंड इतनी कि अगर खुला बदन हो तो रगों का खून जमा दे ।

इतने में बाहर से आवाज आती है....... दूध....... शायद बिरजू दूध लेकर आ गया, सर्दियों में आठ बजे तक आता है मगर गर्मी के मौसम में साढ़े छह का समय है इसका । बबलू की मम्मी रसोई में से बर्तन लेकर दूध लेती है ।

कई लोग तो अभी भी रजाइयों में दुबके पड़े हैं । जो उठ गए, वे आग के पास हाथ सेक कर इस सर्दी में नहाने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं । वाकई इस सर्दी में नहाना भी बहादुरी का ही काम है ।

तभी टपाक से घर के दरवाजे के ऊपर से उड़ता हुआ अखबार आकर गिरता है । जिसे उठाकर बबलू दादाजी को उनके कमरे में दे आता है । अब दादाजी रजाई में दुबके दुबके पूरा अखबार पढ़ डालेंगे ।

बाहर से साइकिल की घंटी की आवाज आती है, ये ब्रेड बिस्किट बेचने वाला मुन्ना है जो गली गली साइकिल पर घूम कर अपनी रोजी रोटी कमाता है ।

तभी एक और आवाज कानों में पड़ती है......
"सब्जी ले लो सब्जी ई ई ई.... ताजा सब्जी......"
माली काका आ गए ताजा सब्जियां ले के । आवाज और खुद दोनों कांप रहे है पर रोज इस समय वे हमारी गली में पहुंच ही जाते हैं ।




माली काका से सब्जियां खरीदने का काम पापा करते हैं, दोनों हमउम्र जो हैं, काम के साथ थोड़ा हंसी ठट्ठा भी कर लेते हैं ।

कोहरा थोड़ा सा छंट गया है, धूप की किरणें सर्दी की इस धुंध से जद्दोजहद कर रही है धरती तक आने के लिए । यूं लगता है जैसे इस ठंड ने सूर्यकिरणों को भी जमा दिया है ।

"अरे बहु, चाय तो पिला दो, बड़ी ठंड है आज तो" पापा ने रोज वाली बात आज फिर दोहरा दी । कहते हैं सर्दी में ये अदरक वाली चाय पीने का आनंद ही अलग है ।

"आपका काम हुआ नहीं क्या अभी तक, ज्यादा है तो मदद करूं ?" चाय के कप लिए पत्नी कमरे में आई, और हंसते हुए बोली ।

"नहीं हो गया, तुम तो बस गर्मा गरम चाय पिला दो" मैनें भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया और हम दोनों ने रोज की तरह साथ बैठ कर चाय पी ।

पिछले एक घंटे में मैनें दुकान का एक हफ्ते का हिसाब मिला लिया और खाता बही वापस यथास्थान रखी । आज रविवार था तो दुकान देरी से ही खोलनी थी ।

चाय पीकर मैं रजाई की गरमाहट का मोह छोड़कर बाहर आया । गली में इक्का दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे । समय लगभग पौने नो हो गया था । धूप अभी भी निकलने को छटपटा रही थी, कोहरा उसकी राह में रोड़े डाल रहा था ।

गली के नुक्कड़ वाली सामने की ढलान से गोपाल आता दिखाई दिया । गोपाल बाजार में माल ढुलाई का काम करके अपना परिवार चलाता है ।

"भाईजी नमस्ते" वो पास आकर बोला ।



"नमस्ते भाई गोपाल, क्या बात है, इतनी सुबह सुबह कहां चल दिये इस सर्दी में । आज तो बाजार भी देर से और आधा ही खुलेगा ।" मैंने एक साथ उससे दो तीन सवाल कर डाले ।

"भाईजी, वो बंसल साब की गोदाम के बहुत से माल को उनकी दूसरी गोदाम में स्थानांतरित करना है इसलिए उन्होंने कल ही कह दिया था सुबह नो सवा नो बजे तक आने को ।" गोपाल ने बताया ।

"अच्छा, पर ये काम तो दोपहर में भी हो सकता था, इतनी सर्दी में तुमको दौड़ा दिया बंसल जी ने, वो भी रविवार को । थोड़ा अपना भी ध्यान रखो भाई ।"

"जी वो उनका कोई नया माल पहुंचने वाला है आज 12 बजे तक, इसलिए उन्होंने कल ही बोल दिया था, और मजदूरी भी ज्यादा देंगे ।"

रही बात सर्दी और रविवार की, तो एक मजदूर के लिए क्या सर्दी और क्या रविवार भाईजी । परिवार चलाने के लिए इन सबको नजरंदाज करना पड़ता है एक मजदूर को । अच्छा भाईजी, अब चलता हूं, देर हो रही है । नमस्ते ।"

एक ही सांस में गोपाल इतनी सारी बात कर गया, और मुझे सोचने पर मजबूर कर गया कि सच ही तो है, एक मजदूर के लिए मौसम या वार कोई मायने नहीं रखता । चाहे वो बिरजू हो, अखबार वाला राजू हो, मुन्ना हो या माली काका । अपनी सीमित कमाई में वे एक भी दिन कैसे व्यर्थ गवां सकते है । आखिर पेट का सवाल है ।

"ए माई...... कोई ठंडी बासी रोटी दे ए........... भूख लगी है" दो 12 तेरह साल के गरीब भिक्षुक भाई बहन पड़ोस वाले घर के दरवाजे पर उम्मीद से आवाज लगा रहे थे ।

** ** ** ** **

जल्दी ही फिर मिलते हैं दोस्तों । ये कहानी आपको कैसी लगी, जरूर बताना । और हां, सर्दी वाकई काफी है । अदरक वाली चाय पर विशेष ध्यान रखना ।


पहले तो तुम ऐसे ना थे


जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से*











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