Wednesday 20 July 2022

दर्द

 
दर्द


नमस्कार दोस्तों, नन्ही परी कविता को आपने इतना पसंद किया उसके लिए आप सभी का हृदय से आभार।


आज आपके लिए एक गज़ल ले कर आया हूं "दर्द" । जैसा की शीर्षक से आपको आभाष हो गया होगा कि जिंदगी के दर्दों पर ही लिखी गई होगी ।


मुझे एक किस्सा याद आ रहा है कि एक बार इंसानों ने भगवान से शिकायत की कि आपने हमें गमों भरी जिंदगी दी है, कोई कहता कि मेरी जिंदगी में दर्द ज्यादा है और दूसरा कहता कि मेरी जिंदगी में जो दर्द है उनके आगे तुम्हारे गम कुछ भी नहीं है ।


तो भगवान ने कहा कि देखो तुम्हारी किस्मत पहले से लिख दी गई है, मैं अब उसमें कुछ बदलाव तो नहीं कर सकता पर हां अगर आप लोग चाहो तो अपने अपने गमों को आपस में बदल सकते हो । उसके लिए आप सब अपने अपने गम और दर्दों की एक पोटली बनाकर यहां रख दो एवं फिर जिसको जो पोटली चाहिए वो उसे उठा ले ।


सबने ऐसा ही किया, लेकिन आश्चर्य कि सबने अपनी अपनी पोटली ही वापस उठा ली थी, क्योंकि दुखी सब थे पर उनको उन पोटलियों में अपने गम ही सबसे कम लगे थे ।


इस कहानी का सार यही है कि संसार में हर कोई अपने सीने में अनेकों दर्दों को छुपाकर जी रहा है ।


परंतु कभी कभी इंसान ज्यादा घुटता है तो वो किसी को अपने जख्म दिखाना चाहता है, मगर उसे महसूस होता है कि ये तो खुद भी दर्द के साए में है ।


अंत में एक ही शख्स बचता है और वो है हमारा जीवनसाथी, जिसके साथ हम अपने सुख दुख बांट लेते है ।


इन्हीं कुछ पोटलियों को समेटकर ये ग़ज़ल "दर्द" लिखने का प्रयास किया है ।


आशा है अन्य रचनाओं की तरह आपको मेरी ये रचना भी पसंद आएगी । अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं।




दर्द

अपने अपने दर्द है सब के, अपना दर्द बताऊं कैसे,

शायद कोई समझे ना समझे, मन की पीर सुनाऊं कैसे,


मां के साथ जिया ना बचपन, पापा भी तो नहीं रहे अब,

स्वर्ग के नंबर भी तो नहीं है, आखिर फोन लगाऊं कैसे,


भाई बहनों पर भी तो है अपनी अपनी जिम्मेदारी,

जब उनकी सरगम मैं खुद हूं, दर्द का नगमा गाऊं कैसे,


यार दोस्त भी बहुत व्यस्त है जीवन की इस भाग दौड़ में,

जो खुद ही जख्मी है उनको अपने जख्म दिखाऊं कैसे,


बच्चे सारे बड़े हो गए अपनी ही दुनिया में मगन है,

लेकिन मैं तनहा तनहा हूं, उनको ये बतलाऊं कैसे,


जीवनसाथी तुम ही हो जो, मन की बात समझ जाते हो,

सबसे छुपा लेता हूं लेकिन तुमसे दर्द छुपाऊं कैसे,


समझ नहीं आता मुझको कुछ, अब तुम ही समझा दो "शिव"

अपने हर जख्मों को खोल के, दिल अपना दिखलाऊं कैसे ।


अपना दर्द बताऊं कैसे, मन की पीर सुनाऊं कैसे,

दर्द का नगमा गाऊं कैसे, अपने जख्म दिखाऊं कैसे ।।


****


नन्ही परी


जल्दी ही फिर मिलते हैं एक नई रचना के साथ ।


जय हिन्द


*शिव शर्मा की कलम से*


आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।.  Email : onlineprds@gmail.com

धन्यवाद




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11 comments:

  1. बेहतरीन रचना.....

    ऐसा लगता जैसे मेरे लिए ही लिखी गई है.....

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  2. तनख्वा वाले पैसे खत्म हो जाते है 20 को
    सब के ख्वाब पूरा करने ,और वैसे लाउ कैसे

    बहुत सुंदर भाईसाब

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  3. अदभुत, सार ग्रहित, बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  4. इसमें मेरा नाम क्यों नहीं आता?
    पवन Matolia

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    1. Comment as: में सेलेक्ट कीजिए

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है

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  6. बहुत सुन्दर रचना बधाई हो

    रमेश कुमार खण्डेलवाल

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  7. उत्साहवर्धन के लिए आप सभी का हृदय से धन्यवाद

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  8. Heart touching 👍👏

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