आम आदमी
भीड़ भाड़ में अक्सर भैया
धक्के खाता आम आदमी
कुछ "आमों" को वोट से अपने
"ख़ास" बनाता आम आदमी
"ख़ास" आदमी ताकत पा कर
जब ऊँचा उठ जाता है
उतनी ऊंचाई से फिर उनको
"आम" कहां दिख पाता है
अपना काम कराने उनके
नाज उठाता आम आदमी
कुछ "आमों" को वोट से अपने
"ख़ास" बनाता आम आदमी
दस से छह की करे चाकरी
बॉस के ताने सुनता है
शाम को घर में बैठा वो
मुंगेरी सपने बुनता है
सपनों में जीता और
सपनों में मर जाता आम आदमी
कुछ "आमों" को वोट से अपने
"ख़ास" बनाता आम आदमी
बचपन बीता मुफलिसी में
यौवन में गम पीता है
सिमित कमाई खर्चे ढेरों
घुट घुट जीवन जीता है
फूटी कोड़ी नहीं बचत
पर बजट बनाता आम आदमी
कुछ "आमों" को वोट से अपने
"ख़ास" बनाता आम आदमी
महंगाई बैरन बन बैठी
सुरसा के मुंह सी बढ़ती है
दोनों हाथों से गरीब की
गर्दन ऐसी पकड़ती है
पूरा जीवन कभी शांति से
जी ना पाता आम आदमी
कुछ "आमों" को वोट से अपने
"ख़ास" बनाता आम आदमी
पांच वर्ष पश्चात नेताजी
हाथ जोड़ कर आते हैं
अपनी मीठी बातों से
कुछ ख्वाब हसीन दिखाते हैं
चिकनी चुपड़ी बातों में
फिर से फंस जाता आम आदमी
कुछ "आमों" को वोट से अपने
"ख़ास" बनाता आम आदमी
सरकारें नित नई बदलती
फर्क नज़र ना आता है
ख़ास आदमी हाथी जैसा
ताकतवर बन जाता है
अपने नेता के स्वागत को
दरियां बिछाता आम आदमी
भीड़ भाड़ में अक्सर भैया
धक्के खाता आम आदमी
कुछ "आमों" को वोट से अपने
"ख़ास" बनाता आम आदमी
जय हिन्द
***शिव शर्मा की कलम से***
Note : We do not own the Images and Video published in this blog, it belongs to its rightful owners. If objection arises, the same will be removed.
भीड़ भाड़ में अक्सर भैया
धक्के खाता आम आदमी
कुछ "आमों" को वोट से अपने
"ख़ास" बनाता आम आदमी
"ख़ास" आदमी ताकत पा कर
जब ऊँचा उठ जाता है
उतनी ऊंचाई से फिर उनको
"आम" कहां दिख पाता है
अपना काम कराने उनके
नाज उठाता आम आदमी
कुछ "आमों" को वोट से अपने
"ख़ास" बनाता आम आदमी
दस से छह की करे चाकरी
बॉस के ताने सुनता है
शाम को घर में बैठा वो
मुंगेरी सपने बुनता है
सपनों में जीता और
सपनों में मर जाता आम आदमी
कुछ "आमों" को वोट से अपने
"ख़ास" बनाता आम आदमी
बचपन बीता मुफलिसी में
यौवन में गम पीता है
सिमित कमाई खर्चे ढेरों
घुट घुट जीवन जीता है
फूटी कोड़ी नहीं बचत
पर बजट बनाता आम आदमी
कुछ "आमों" को वोट से अपने
"ख़ास" बनाता आम आदमी
महंगाई बैरन बन बैठी
सुरसा के मुंह सी बढ़ती है
दोनों हाथों से गरीब की
गर्दन ऐसी पकड़ती है
पूरा जीवन कभी शांति से
जी ना पाता आम आदमी
कुछ "आमों" को वोट से अपने
"ख़ास" बनाता आम आदमी
पांच वर्ष पश्चात नेताजी
हाथ जोड़ कर आते हैं
अपनी मीठी बातों से
कुछ ख्वाब हसीन दिखाते हैं
चिकनी चुपड़ी बातों में
फिर से फंस जाता आम आदमी
कुछ "आमों" को वोट से अपने
"ख़ास" बनाता आम आदमी
सरकारें नित नई बदलती
फर्क नज़र ना आता है
ख़ास आदमी हाथी जैसा
ताकतवर बन जाता है
अपने नेता के स्वागत को
दरियां बिछाता आम आदमी
भीड़ भाड़ में अक्सर भैया
धक्के खाता आम आदमी
कुछ "आमों" को वोट से अपने
"ख़ास" बनाता आम आदमी
Click here to read "सर्दी आई सर्दी आई" Written by Sri Shiv Sharma
जय हिन्द
***शिव शर्मा की कलम से***
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सच्ची बात कही
ReplyDeleteTrue sir ji good keep it up
ReplyDeleteआम आदमी को इससे बेहतर तरीके से नही समझा सकते।
ReplyDeleteबहुत खूब
Bhaut khoob sir ji
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