मुस्कुराहट
नमस्कार मित्रों, एक बार फिर आपके लिए एक छोटी सी ग़ज़ल ले कर आया हुं । मुझे उम्मीद है कि हर बार की तरह इस बार भी आप इस ग़ज़ल को भी पसंद करेंगे और मुझे और लिखने के लिए प्रेरित करेंगे ।
ग़ज़ल का शीर्षक कुछ समझ में नहीं आ रहा था तभी मैनें गौर किया कि इसे पढ़ते पढ़ते मेरे एक मित्र के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई थी, अतः मैनें इसका शीर्षक मुस्कुराहट ही रख दिया ।
मुस्कुराहट
सभी को अपना बना लिया मैनें
बस जरा सा मुस्कुरा दिया मैनें
सुनाकर मुहब्बत के कुछ नगमे
हर दिल में घर बना लिया मैनें,
सूरत पे कभी आने ना दिया
दर्द सीने में छुपा लिया मैनें,
कुछ इस कदर समझौते किये
हर एक इल्जाम उठा लिया मैनें,
कुछ कहता तो वे खफा हो जाते
जुबां पे ताला लगा लिया मैनें,
मिले थे ज़ख्म भी दौर ए जिंदगी में
वो वक्त भी हंसकर बिता दिया मैनें,
महफ़िल में मिली जो नजरें उनसे
चैन दिल का गंवा दिया मैनें,
इल्म जरा भी वो कर ना पाए
उनको उन्हीं से चुरा लिया मैनें,
यारों ने जो पूछा राज मेरी खुशी का
नाम उनका बता दिया मैनें,
कभी तन्हाइयां जो डसने बढ़ी
खुद को खुद में छुपा लिया मैनें,
खामोशियों को सिखाने सबक
एक गीत गुनगुना दिया मैनें ।।
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हमेशा की तरह आपके सुझावों और हौसलाअफजाई का इंतज़ार करूँगा । फिर मिलते हैं जल्दी ही ।
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जय हिंद
*शिव शर्मा की कलम से*
Bhaut khoob likha hai sir ji
ReplyDeleteReally very nice and very beautiful words touch my hearts, thanks for you sir
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