प्रेम की डोर
नमस्कार मित्रों । सर्वप्रथम तो मैं आप सबका आभार व्यक्त करता हुं कि आपने "लोगों की तो आदत है" रचना को इतना पसंद किया । आप सभी का हृदय से आभार ।
इस बार मैंने पहली दफा एक प्रयास किया है एक गीत लिखने का । उम्मीद है कि "प्रेम की डोर" गीत भी आपको मेरी अन्य रचनाओं की तरह अवश्य पसंद आएगा ।
प्रेम की डोर
तू मेरी चाँद मैं हुं चकोर
आ उड़ चलें गगन की ओर
थाम कर प्रेम की कोमल डोर
आ उड़ चलें गगन की ओर
मस्त पवन के झोंके होंगे
होगी ठंडी फुहार
हाथ में लेके हाथ उड़ेंगे
सात समंदर पार
मिलेगी काली घटा घनघोर
आ उड़ चलें गगन की ओर
संग संग उड़ेंगे पंछी उनसे
हम मुलाकात करेंगे
कुछ कोयल से कुछ मैना से
मीठी मीठी बात करेंगे
मिट्ठू मियां बड़ा चितचोर
आ उड़ चलें गगन की ओर
बैठ बादलों की गोदी में
चांद निहारेंगे हम
आसमान में बिखर गए जो
सितारे संवारेंगे हम
रंग भर देंगे चारों ओर
आ उड़ चलें गगन की ओर
उड़ते उड़ते साजन फिर हम
चाँद तलक जाएंगे
थोड़ी उसकी चुरा चांदनी
वापस भाग आएंगे
चलेगा उसका ना कोई जोर
आ उड़ चलें गगन की ओर
मैं तेरी चांद तुम हो चकोर
आ उड़ चलें गगन की ओर
प्रेम की डोर नहीं कमजोर
आ उड़ चलें गगन की ओर ।।
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शीघ्र ही फिर मुलाकात होगी दोस्तों ।
बारात का आनंद
जय हिंद
* शिव शर्मा की कलम से*
आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।. Email : onlineprds@gmail.com
धन्यवाद
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