शब्द भाग ३
नमस्कार मित्रों । "शब्द" आप इतना पसंद कर रहे हैं उसके लिए आप सभी का आभार । लीजिये पेश है शब्द भाग ३, इसी आशा के साथ कि इसे भी आप भाग १ और २ की तरह अपना अपार स्नेह प्रदान करेंगे ।
शब्द भाग ३
इसीलिए जब भी कुछ बोलो
सोचो समझो शब्दों को तोलो
पहले सोचो अर्थ अनर्थ की
पीछे फिर अपना मुंह खोलो ।।२२।।
शब्द तुम्हारी है परछाई
अच्छे बुरे ये दो है भाई
एक शब्द साजन बन जाता
दूजा बन जाता हरजाई ।।२३।।
शब्द जुड़े और गीत बन गए
जीवन का संगीत बन गए
ढाई अक्षर बोल प्रेम के
कितने मन के मीत बन गए ।।२४।।
शब्दों की माया अलबेली
मानव से करते अठखेली
प्राण कभी तन से ये निकाले
उफ्फ, कहीं पर जान ही ले ली ।२५।।
शब्दों का संसार अनोखा
मानव जीवन का है झरोखा
कहीं शब्द से बिगड़ी बनती
कहीं शब्द दे देते धोखा ।।२६।।
शब्द बड़े ही जादूगर है
खेलने वाले बाजीगर है
कब किस वक्त पे क्या हम बोले
शब्द बनाते हमें चतुर है ।।२७।।
शब्द शांति भी ले आते है
मन में भ्रांति भी ले आते हैं
अगर कोई सेनानी बोले
शब्द क्रांति भी ले आते हैं ।।२८।।
बोस सुभाष के कुछ शब्दों ने
स्वतंत्रता की अलख जगा दी
खून के बदले आजादी की
नेताजी ने शर्त लगा दी ।।२९।।
आजादी के दीवानों पर
उन शब्दों ने असर दिखाया
एक एक से हुए हजारों
जोश नजर हर एक में आया ।।३०।।
हिन्द फ़ौज बन गयी अनूठी
अंग्रेजों की किस्मत फूटी
जयहिंद का घोष सुना तो
फिरंगियों की हिम्मत टूटी ।।३१।।
पंद्रह अगस्त सन सैंतालीस में
भारत ने आज़ादी पाई,
साहस और हौसले के संग
शब्दों ने ताकत दिखलाई ।।३२।।
रघुकुल में भी शब्द जाल ने
एक कथा ऐसी रच डाली
एक दासी के बहकावे ने
कैकई की बुद्धि हर डाली ।।३३।।
राम की लीला थी अति न्यारी
त्रेता युग के थे अवतारी
कौशल्या के लाल लाडले
जिन्हें पूजती दुनिया सारी ।।३४।।
माताओं की आंख के तारे
दशरथ के वे राजदुलारे
भरत लखन और शत्रुघ्न को
लगते थे अग्रज वे प्यारे ।।३५।।
दशरथ ने ये मुनादी कराई
राम बनेंगे अवध के राजा
होने लगा नगर में उत्सव
बाजे ढोल नगाड़ा बाजा ।।३६।।
अवधपुरी के प्रजाजनों में
राम ही राम थे सबके मनों में
लेकिन कुछ शब्दों के कारण
बदल गया था दृश्य क्षणों में ।।३७।।
कुटिल मन्थरा के शब्दों ने
कैकई को मतिभ्रम कर डाला
रानी ने महाराज से मांगा
राम की खातिर देश निकाला ।।३८।।
कुछ शब्दों के जाल ने कैसा
रघुकुल में भी विष फैलाया
अनुनय विनय करे दशरथ पर
एक शब्द भी काम ना आया ।।३९।।
पूरी लीला को समेटकर
शब्द शब्द शब्दों से जोड़कर
तुलसीदास जी ने लिख डाली
रामायण की गाथा सुंदर ।।४०।।
सूंदर सुंदर शब्द सजे जब
तो रचनाएं बन जाती है
एक शब्द जो जुड़े शब्द से
मधुर कथाएं बन जाती है ।।४१।।
आओ हम भी करें प्रतिज्ञा
कटु शब्द ना अब बोलेंगे
मीठी बोली से हर दिल में
मधुर सरस अमृत घोलेंगे ।।४२।।
क्रोधावेश में भी कुछ रुककर
बोलें भी तो सोच समझकर
क्योंकि शब्द बना सकते हैं
स्नेह भरी धरती भी बंजर ।।४३।।
प्रेम की बोली सबसे प्यारी
मीठी मीठी न्यारी न्यारी
आओ हम भी मधुर वाणी से
चलो जीत लें दुनिया सारी ।४४।।
जय हिंद
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जल्दी ही फिर मिलेंगे मित्रों एक नई रचना के साथ । तब तक के लिए नमस्ते ।
*शिव शर्मा की कलम से*
शब्द भाग २
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