पहले तो तुम ऐसे ना थे-Pehle to Tum aise na the
नमस्कार मित्रों, शायद सब जानते हैं कि विवाह के कुछ वर्षों के उपरांत अक्सर पत्नियों को लगने लगता है कि उनके पति कुछ बदल गए हैं, उन्हें नजरअंदाज कर रहे हैं, और इस बारे में वे अक्सर अपने पति से शिकायतें भी करती रहती है ।
पति भी ज्यादातर मामलों में बात को हंसकर टाल देते हैं या इशारों इशारों में इस "बदल जाने" की वजह बताने की कोशिश करते हैं । पत्नियों की इन्ही शिकायतों और पति द्वारा दिए गए खूबसूरत जवाब को एक कविता के जरिये दर्शाने का प्रयास कर रहा हुं । अच्छी लगे तो हौसला बढ़ाना दोस्तों।
पहले तो तुम ऐसे ना थे
बेमतलब ही चिल्लाते हो, पहले तो तुम ऐसे ना थे
बात बात पर झल्लाते हो, पहले तो तुम ऐसे ना थे,
वक्त नहीं है बहुत व्यस्त हुं, ऐसा कुछ कहते ना थे,
बिना मिले मुझसे एक दिन भी, पहले तुम रहते ना थे,
घंटों मेरे साथ बैठकर चाँद निहारा करते थे,
ख्वाबों में भी अक्सर मेरा नाम पुकारा करते थे,
सागर की लहरों में मेरी जुल्फ दिखाई देती थी,
हवा में तुमको पायल की झनकार सुनाई देती थी,
डूब के मेरी आँखों में तुम नगमे गाया करते थे,
देख अदाएं मेरी तुम शायर बन जाया करते थे,
पहले तो तुम ऐसे ना थे
इन कजरारी आँखों में गोते भी लगाया करते थे,
बादल जैसी जुल्फों में उंगलियां फिराया करते थे,
शादी के बाद कई दिन तक, मुझे जानम जानू कहते थे,
दफ्तर में कम और हमेशा घर पर ज्यादा रहते थे,
बंटी बबली के संग थोड़ा, वक्त बिताया करते थे,
अक्सर उनका होम वर्क भी तुम करवाया करते थे,
बीते वक्त में ना जाने क्यूं, प्यार तुम्हारा बदल गया है,
बस उखड़े से रहते हो, व्यवहार तुम्हारा बदल गया है,
शाम को जब घर पर आते हो, परेशान से रहते हो,
पूछती हुं तो "कुछ नहीं" कह कर बात टालते रहते हो,
पहले तो तुम ऐसे ना थे
छोटी छोटी सी बातों पर, ताने मारते रहते हो,
गुस्सा हरदम नाक पे रहता, अक्सर लड़ते रहते हो,
बस बातों में बहलाते हो,
बैठे बैठे खो जाते हो,
बातें कई गुल कर जाते हो,
पहले तो तुम ऐसे ना थे,
सुनकर बातें पत्नी की पतिदेव जरा से मुस्काये,
उठकर कुर्सी से फिर अपनी प्रियतमा के पास आये,
हाथ पकड़ कर हाथ में बोले तुम भी कितनी पगली हो,
मैं अब भी सावन तेरा, तुम इस सावन की बदली हो,
तुम ही परछाई मेरी, तुम ही तो मेरी ताकत हो,
जिसे देख मुझे भी मिल जाती, तुम वो मेरी हिम्मत हो,
पहले तो तुम ऐसे ना थे
जिम्मेदारी के चलते ये संसार जरा सा बदल गया है,
प्यार वही है हां लेकिन व्यवहार जरा सा बदल गया है,
तुमसे नहीं, परिवार की खातिर वक्त से लड़ता रहता हुं,
इस जालिम दुनिया से हरदम जंग सी करता रहता हुं,
सबको हर वो सुख दे पाऊं जो मैंने ना पाये थे,
अपने बच्चे ना खाये, जो धक्के मैंने खाये थे,
इसीलिए बस थोड़ा सा चिंतन में डूबा रहता हुं,
उखड़ा उखड़ा नहीं प्रिये बस, खोया खोया रहता हुं,
वक्त के तूफानों में रुख, थोड़े बरसात के बदल गए हैं,
ना तुम बदली ना मैं बदला, बस हालात बदल गए हैं ।।
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मित्रों, मेरा ये प्रयास कैसा रहा, आपको ये कविता कितनी पसंद आई, अपने कमेंट जरूर दें ।
पहले तो तुम ऐसे ना थे
जय हिन्द
*शिव शर्मा की कलम से***
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धन्यवाद
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Very nice
ReplyDeleteYe to Jeevan KI sachhai hai
ReplyDeleteNice one
ReplyDeleteawesome..
Deleteआप सभी प्रिय मित्रों का ह्रदय से आभार
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteइस कविता को पढ़ कर तो ऐसा लग रहा है कि किसी महान कवी ने इसकी रचना की होगी।
ReplyDeleteAnyway, आप कविता लिखना कभी भी मत भूलियेगा।
Nice
ReplyDeleteTashif Iqbal ji. आपका बहुत बहुत धन्यवाद आपके सूंदर कमेंट के लिए । अपना स्नेह बनाये रखना । महान कवि तो शब्दों के खजाने में से चुन चुन कर मोतियों की माला बना देते हैं भाई । मैंने तो बस जो विचार दिमाग में आये उनको लिख डाला । आपकी ये सराहना मेरे लिए बहुमूल्य है । आपका हृदय से धन्यवाद
ReplyDeleteVery Nice . Awesome
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