ये कहां आ गए हम
"अरे राजू, मुरली अखबार दे गया क्या?" अंदर वाले कमरे से दादाजी ने आवाज लगाई । सुबह के साढ़े सात बजे थे ।
"हाँ दादाजी । आइये ।" राजू दादाजी का हाथ पकड़ कर उन्हें कमरे से बाहर धुप में ले आया । सब सर्दी की धुप और अखबार का आनंद लेने लगे ।
अख़बार के अलग अलग पेज सब के हाथ में चले गए । मुख्य पृष्ठ दादाजी के पास, बाकि कुछ पेज राजू के हाथ में थे और कुछ उसके पापा के हाथ में । कुछ देर बाद पेज की अदला बदली हो गयी ।
बाद में वो अखबार पुरे मोहल्ले में घूम आता था । 9 बजे वर्माजी के यहां, 10 बजे मास्टरजी के पास, 11 बजे कहीं और तो 12 बजे कहीं और । अख़बार को पूरा सम्मान मिला करता था और उसकी कीमत भी अच्छी तरह वसूल हो जाती थी ।
एक ही अख़बार ना जाने कितने जने पढ़ लेते थे । टेलीविजन पर गिनती के चैनल आते थे । सब मिल बैठ कर देखते थे ।
पिछले कुछ समय में वक्त ने बहुत तेजी के साथ करवटें बदली और अपने साथ साथ और भी बहुत कुछ बदल दिया । जिसमें क्या क्या पीछे छूट गया हम जान ही नहीं पाये ।
अखबार आज भी आते हैं लेकिन उसमें, जिसे जो पढ़ना है, वो सिर्फ वही पढता है । नोकरी ढूंढते लोग आवश्यकता है वाला पृष्ठ, कुछ वर वधु चाहिए वाला, कई लोग राशिफल में रूचि रखते हैं, तो कुछ ये देखते है कि बाजार में कौनसा नया मोबाइल या कोई अन्य प्रोडक्ट आया है ।
क्योंकि ख़बरें तो टी वी या सोशल मीडिया से मिल ही जाती है, और वो भी ताज़ा ताज़ा, जो अखबारों में तो अगले दिन छपेगी ।
हर हाथ में मोबाइल आ गए । टी वी पर तीन सौ चार सौ चैनल । सबकी अलग अलग पसंद । अब एक टी वी से काम नहीं चलता । घर में कोई धारावाहिक पसंद है तो कोई सिनेमा पसंद । किसी को समाचार देखने हैं । तो किसी को खेल चैनल ।
वक्त के साथ साथ हम भी तो बदलते चले जा रहें हैं । रूबरू हो के हालचाल जानना लगभग बंद सा हो गया है । सोशल मीडिया पर "कैसे हो दोस्तों" की एक पोस्ट डाली और हो गई इतिश्री ।
प्रतिस्पर्धा के दौर में टेलीविजन चैनल भी क्या क्या परोस रहे हैं, किसी से छुपा नहीं है । शालीनता नाम की चीज तो संग्रहालय में रखने की वस्तु बनती जा रही है ।
प्रगति ने हमें दिया तो काफी कुछ, लेकिन बदले में जो लिया है वो शायद उस से कहीं ज्यादा, बहुत ज्यादा है ।
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जय हिन्द
...शिव शर्मा की कलम से...
Reality
ReplyDeleteGood analysis
ReplyDeletethank you
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