होशियार चंद
ये जुमले आपने अक्सर कई लोगों के मुंह से सुने होंगे, और अगर मैं गलत नहीं हूं तो ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी श्रीमान कि आपने भी कई बार अवश्य ही ये उर्जादायक जुमले इस्तेमाल किये होंगे ।
"चल चल ज्यादा होशियारी मत दिखा।"
"तू ही है क्या ज्यादा होशियार।"
"तेरे जैसे कई होशियार देखे हैं।"
"थोड़ी सी चूक हो गयी तो सारी होशियारी धरी रह जायेगी।" वगैरह वगैरह ।
ये होशियारी बड़ी होशियार होती है । हर किसी के वश में नहीं आती । सिर्फ होशियार लोगों के पास ही होती है, किसी के पास कम तो किसी के पास ज्यादा । वैसे थोड़ी बहुत तो सबके पास होती है । जिनके पास नहीं भी होती वे दिखाने की चेष्टा करते रहते हैं ।
ये ही होशियारी जब तक अपनी हद में रहती है तब तक तो ठीक है, लेकिन हद पार कर जाये तो भैया गड़बड़ शुरू हो जाती है । यानि होशियारी जब डेढ़ होशियारी में तब्दील हो जाए तो कई बार लेने के देने पड़ जाते हैं ।
होशियारी के विभिन्न प्रकार होते हैं जिनमें बड़बोलेपन की होशियारी का प्रकार बहुत से मनुष्यों में पाया जाता है । विचित्रताओं से भरपूर इस गुणवत्ता के अंतर्गत आने वाले कई लोग हमारे आसपास भी होते हैं, जो अपनी इस विशेषता के चलते हंसी का पात्र बनते रहते हैं । लेकिन इससे उनको कोई फर्क नहीं पड़ता और वे निरंतर अपनी मनोरंजन सेवा चालु रखते हैं ।
हमारे एक परिचित पांडेजी, जो काफी लंबी लंबी छोड़ा करते थे, यानि हर बात को बढ़ाचढ़ा कर पेश करते थे, एक दिन नोकरी के लिए साक्षात्कार देने गए ।
औपचारिकतावश साक्षात्कर्ता व्यासजी (संयोग से वे भी हमारे परिचित थे) ने उनसे चाय के लिए पूछ लिया । पांडेजी ने मना किया तो व्यासजी ने पूछा,
"क्यों, आप चाय पिते नहीं हो क्या?"
"नहीं ऐसी बात नहीं है, पीने को तो मैं दिन भर में 25-30 कप चाय पी जाता हुं, मगर अभी मेरी इच्छा नहीं है, आप को पीनी हो तो आप अपने लिए मंगवा लीजिये।" पांडेजी की बात सुनके व्यासजी हक्काबक्का हो गए थे ।
"अगर एक कप चाय 100 मीली लीटर हो तो 25-30 कप अढ़ाई तीन लीटर हो जाते हैं । इतना तो आजकल हम पानी भी नहीं पीते और पांडेजी चाय पी जाया करते हैं" व्यास जी ने बाद में हँसते हुए हमें बताया था ।
कुछ अति होशियार लोग ट्रेन में बिना टिकट यात्रा करने में होशियारी दिखाते हैं और अपनी वीरता की गाथा ऐसे सुनाते हैं जैसे उन्होंने परमवीर चक्र पाने जैसी बहादुरी दिखाई हो । परंतु पकड़े जाने पर महीने भर की टिकट की कीमत जितना एक साथ जुर्माने के रूप में भरते हैं ।सहयात्रियों के बीच शर्मिंदा होना पड़ता है सो अलग ।
मुझे एक डेढ़ होशियारी की कहानी याद आ रही है जो मैनें कहीं पढ़ी थी की एक पैसेंजर ट्रेन में दो तीन लड़के चढ़े । डब्बे में काफी भीड़ थी और सोने के लिए तो दूर, बैठने को भी जगह नहीं थी ।
अब मुम्बई से अहमदाबाद खड़े खड़े यात्रा करना भी संभव नहीं था, और वे थके हुए भी थे । उन्होंने होशियारी दिखाई और सांप सांप चिल्लाना शुरू कर दिया । डर के मारे अन्य यात्री उस डब्बे से उतर कर दूसरे डब्बों में चले गए और वे लड़के मुस्कुराते हुए ऊपर की बर्थ पर जा के सो गए । सवेरे भोर में एक की आँख खुली तो देखा गाड़ी किसी स्टेशन पर खड़ी है । उसने खिड़की से झाँक कर बाहर खड़े किसी व्यक्ति को पूछा, "भाईसाब, ये कौनसा स्टेशन है।"
वो शायद कोई कुली था, उसने कहा "मुम्बई।"
वो लड़का चौंक कर बोला "लेकिन मुम्बई से तो रात को गाड़ी चली थी।"
"गाड़ी तो रात को चली गयी थी साहब, लेकिन इस डब्बे में सांप था इसलिए इसे यहीं काट दिया गया था ।"
कुली का जवाब सुनकर बेचारे होशियार चंद की सारी होशियारी हवा हो गयी ।
इस तरह के अनेकों वाकये अति चतुर लोगों के साथ होते रहते हैं । जो मैं अगली बार आपके साथ जरूर बांटूंगा । आज के लिए इतना काफी है । ज्यादा होशियारी क्या काम की, सही है ना ?
इस लिए हे मित्रों होशियारी जरूर रखना, होशियार भले ही बन जाना लेकिन डेढ़ होशियारी से बचना ।
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जय हिन्द
....शिव शर्मा की कलम से....
Belkul sahe kuch yaisa he hota hai
ReplyDeleteNice o
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