ना जाने....
ना जाने कब से
याद आ रही हो तुम ,
आँखे बंद है मेरी फिर भी
नज़र आ रही हो तुम,
जाने क्यों लगता है
आज फिर मेरी यादों से
उसने अपने घऱ को सजाया होगा,
मेरी तस्वीर को
दीवार पर लगाया होगा,
ना जाने कब से
याद करता हु मैं तुम्हे इतना,
ना जाने क्यूँ
इन्तज़ार करता हू हर पल इतना,
ना जाने कब से
इतनी मोहब्बत हो गई है तुमसे,
ना जाने क्यूँ
हर पल जुझता रहता हू खुद से,
ना जाने कब से
हर लफ्ज़ मुझे नाम तेरा लगता है,
ना जाने कब से
हर चेहरे में तेरा चेहरा दिखता है,
ना जाने कब से ख्वाब में बस
तेरी परछाई नज़र आती है,
ना जाने कब से भरी महफ़िल भी
तन्हाई नज़र आती है,
ना जाने कब से डूबे है
तेरी यादों के समन्दर में ,
अब तो बस
गहराई ही गहराई नज़र आती है,
ना जाने कैसे भुलाऊँ
मोहब्बत के ख़याल को,
ना जाने कैसे मिटाऊँ
शीशे पर आई हुईं दरार को,
ना जाने कब से
तेरी यादों में रातें काट रहा हूँ ,
ना जाने कब से
तुझे ख्वाबो में तलाश रहा हूँ ,
कभी तो लौट कर आओ,
मुझे बस इतना समझाओ,
कहाँ से सीख़ ली तुमनें
अदा मुझे भुलाने की,
गये कदमों पर लौट कर आ जाओ,
मुझे बस इतना समझाओ,
कहाँ से सीख़ ली तुमनें
अदा मुझे भुलाने की,
...अर्पित जैन द्वारा रचित...
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Mr. Arpit Jain is from Indore, the new writer for hindigeneralblogs. Request all of our viewers to support him.
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Shiv Sharma, Chief Editor
Very good Arpit.
ReplyDeleteVery nice Arpit
ReplyDeleteThank-you so much Madhu Sir & Pradeep Sir
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