वतन मुश्किल में है
"है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिये अपना इधर,
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है ।"
पठानकोट में दहशतगर्दों से लोहा लेते उन वीरों ने इस बात को सच कर दिखाया । वतन पर अपनी जान न्योछावर करने वाले माँ भारती के उन सच्चे सपूतों को मैं श्रद्धापूर्वक नमन करता हुं ।
एक बार फिर सीमा पार से कुछ जन्नत की हूरों के लालची लोग आये और भारत माता के सीने को लहूलुहान कर दिया ।
एक कहावत के अनुसार वक्त हर घाव तो भर देता है, मगर जब कोई नया घाव मिलता है तो पुराने घाव भी हरे हो जाते हैं, उनसे उठने वाली टीस बहुत पीड़ा देती है । और घाव भी इतने गहरे कि जिनसे रह रह के असहनीय दर्द की तरंगे उठती रहती है ।
पठानकोट की धरती पर आतंक मचाने वाले उन छह शैतानों को नर्क की राह दिखाने में हमारे सात वीर जवान शहीद हो गए । अपनी जान देकर उन्होंने ना जाने कितनी मासूम जानें बचाई होगी ।
अगर बारीकी से देखा जाए तो ये एक युद्ध जैसी स्तिथि थी । हमलावर पूरी तैयारी के साथ आये थे । एकदम सुनियोजित तरीके से उन्होंने हमले को अंजाम दिया और देश को झकझोर कर रख दिया ।
जिस तरह आतंकियों ने एक एक कदम बढ़ाया, और हमले का लक्ष्य भी ऐसा चुना जो सुरक्षा के लिहाज से काफी सुरक्षित माना जा सकता है, उस से साफ़ जाहिर होता है की उन्हें भी सैनिकों की तरह का प्रशिक्षण दिया गया था । ये प्रशिक्षण उन्हें कहां से मिला होगा ये किसी से छुपा नहीं है ।
तथ्य भी इस बात की तरफ साफ़ संकेत कर रहे हैं की ये आतंकी भी उसी धरती से आये थे जहां से कुछ वर्षो पहले मुम्बई में घुस आये थे । और हो सकता है इनका मंसूबा भी उसी तरह का खूनखराबा करने का रहा हो जो उन्होंने मुम्बई में किया था ।
सवाल ये है की अब आगे क्या ? क्या इस बार भी बात सिर्फ सबूतों के देने लेने, विश्व परिषद में नाराजगी जाहिर करने आदि तक ही सिमित होकर रह जायेगी ? या कोई ठोस कदम उठाया जाएगा ?
जुकाम का भी अगर समय पर ढंग से इलाज ना किया जाए तो एक दिन वो टी बी का रूप ले लेती है, बाद में इलाज महंगा भी पड़ता है और दुखदायक भी ।
एक जख्म भरा नहीं की दूसरा हो जाए तो वो नासूर बन जाता है । सीमा पार से पिछले 60-65 वर्षो से इस तरह के जख्म अनवरत मिलते जा रहे हैं । और हम हैं की चोट पर चोट खाये जा रहे हैं, खाये जा रहे हैं । शायद हमें सहने की आदत पड़ चुकी है वर्ना जुकाम का इलाज तो साधारण सी दो तीन गोलियों से भी संभव है ।
अंत में उपरोक्त "सरफ़रोशी" के रचनाकार महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल जी की ही रचना की दो पंक्तियों के साथ आप सब से विदा चाहूंगा । मगर दोस्तों, इस "क्या" का जवाब सोचना जरूर ।
"शहीदों की चिताओं पर, लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मिटने वालों का, बाकि यही निशां होगा ।"
जय हिन्द
....शिव शर्मा की कलम से....
"है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिये अपना इधर,
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है ।"
पठानकोट में दहशतगर्दों से लोहा लेते उन वीरों ने इस बात को सच कर दिखाया । वतन पर अपनी जान न्योछावर करने वाले माँ भारती के उन सच्चे सपूतों को मैं श्रद्धापूर्वक नमन करता हुं ।
एक बार फिर सीमा पार से कुछ जन्नत की हूरों के लालची लोग आये और भारत माता के सीने को लहूलुहान कर दिया ।
एक कहावत के अनुसार वक्त हर घाव तो भर देता है, मगर जब कोई नया घाव मिलता है तो पुराने घाव भी हरे हो जाते हैं, उनसे उठने वाली टीस बहुत पीड़ा देती है । और घाव भी इतने गहरे कि जिनसे रह रह के असहनीय दर्द की तरंगे उठती रहती है ।
पठानकोट की धरती पर आतंक मचाने वाले उन छह शैतानों को नर्क की राह दिखाने में हमारे सात वीर जवान शहीद हो गए । अपनी जान देकर उन्होंने ना जाने कितनी मासूम जानें बचाई होगी ।
अगर बारीकी से देखा जाए तो ये एक युद्ध जैसी स्तिथि थी । हमलावर पूरी तैयारी के साथ आये थे । एकदम सुनियोजित तरीके से उन्होंने हमले को अंजाम दिया और देश को झकझोर कर रख दिया ।
जिस तरह आतंकियों ने एक एक कदम बढ़ाया, और हमले का लक्ष्य भी ऐसा चुना जो सुरक्षा के लिहाज से काफी सुरक्षित माना जा सकता है, उस से साफ़ जाहिर होता है की उन्हें भी सैनिकों की तरह का प्रशिक्षण दिया गया था । ये प्रशिक्षण उन्हें कहां से मिला होगा ये किसी से छुपा नहीं है ।
तथ्य भी इस बात की तरफ साफ़ संकेत कर रहे हैं की ये आतंकी भी उसी धरती से आये थे जहां से कुछ वर्षो पहले मुम्बई में घुस आये थे । और हो सकता है इनका मंसूबा भी उसी तरह का खूनखराबा करने का रहा हो जो उन्होंने मुम्बई में किया था ।
सवाल ये है की अब आगे क्या ? क्या इस बार भी बात सिर्फ सबूतों के देने लेने, विश्व परिषद में नाराजगी जाहिर करने आदि तक ही सिमित होकर रह जायेगी ? या कोई ठोस कदम उठाया जाएगा ?
जुकाम का भी अगर समय पर ढंग से इलाज ना किया जाए तो एक दिन वो टी बी का रूप ले लेती है, बाद में इलाज महंगा भी पड़ता है और दुखदायक भी ।
एक जख्म भरा नहीं की दूसरा हो जाए तो वो नासूर बन जाता है । सीमा पार से पिछले 60-65 वर्षो से इस तरह के जख्म अनवरत मिलते जा रहे हैं । और हम हैं की चोट पर चोट खाये जा रहे हैं, खाये जा रहे हैं । शायद हमें सहने की आदत पड़ चुकी है वर्ना जुकाम का इलाज तो साधारण सी दो तीन गोलियों से भी संभव है ।
अंत में उपरोक्त "सरफ़रोशी" के रचनाकार महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल जी की ही रचना की दो पंक्तियों के साथ आप सब से विदा चाहूंगा । मगर दोस्तों, इस "क्या" का जवाब सोचना जरूर ।
"शहीदों की चिताओं पर, लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मिटने वालों का, बाकि यही निशां होगा ।"
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जय हिन्द
....शिव शर्मा की कलम से....
Salute. Jai hind
ReplyDeleteJai hind kas hamari bhawna ko sansad me baithe dalal bhi samajhte ?????
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