हम तो चले परदेस
नमस्कार दोस्तों । मैं खुश हुं कि आप मेरे लिखे ब्लॉग्स पढ़ते रहते हैं । आपके मिलने वाले मेसेज मुझमें एक नयी ऊर्जा भर देते हैं, पता नहीं मैं कैसा लिखता हुं, लेकिन जब आप मेरे हर लिखे की सराहना करते हैं मेरा हौसला बढ़ाते हैं तो आपके अपार प्रेम से मेरा ह्रदय अत्यंत प्रफुल्लित हो उठता है । अपना स्नेह ऐसे ही बनाये रखना ।
मैं देखता हुं कि बहुत से मेरे मित्र दुनिया के अलग अलग देशों से मेरे ब्लॉग्स पढ़ते रहते हैं । यहां भी मेरे साथ बहुत से मित्र हैं जो हिंदुस्तान के अलग अलग प्रान्तों से कुछ पाने के लिए अपना वतन छोड़ कर हजारों मील दूर आये हैं ।
अक्सर ऐसे मौके आते हैं जब हम भारतीय एक साथ इकठ्ठा होते हैं । उस वक्त मैंने हर बार उनकी बातों में ये महसूस किया कि भले ही हम अपने मुल्क अपने वतन से दूर हैं मगर दिल में हरदम हिंदुस्तान ही धड़कता रहता है ।
देश की उन्ही यादों को संजोकर उन्हें एक सूत्र में बाँध कर एक ग़ज़ल का रूप देने की कोशिश मैंने की है । ये पता लगाने या बताने की कोशिश की है कि कुछ पाने के लिए हम अपना देश छोड़कर तो आ गए, पर देश के साथ और क्या क्या पीछे छूट गया ।
उम्मीद है हमेशा की तरह इस बार भी आप का भरपूर प्यार और स्नेह मिलेगा ।
****हम तो चले परदेस****
हम अपने गांव की गलियां ओ गुलशन छोड़ आये हैं,
उन्ही गलियों में अपने दिल की धड़कन छोड़ आये हैं,
हमारे यार रिश्तेदार सारे छूट गए पीछे,
पिता का प्यार और माता का दामन छोड़ आये हैं,
सवेरा खिलखिलाता था जहां सूरज की किरणों से,
उसी घर के किसी कोने में बचपन छोड़ आये हैं,
जहां सजती थी महफ़िल रोज खुशियों की उमंगों की,
घर का झिलमिलाता सा वो आँगन छोड़ आये है,
कलियां मुस्कुराती थी, तितलियां गुनगुनाती थी,
फूलों से भरा पूरा वो उपवन छोड़ आये हैं,
लचकती डाल चंपा की रातरानी की खुशबू और,
फूल पर मंडराते भौरों की गुंजन छोड़ आये हैं,
दीवाली ईद क्रिसमस लोहिड़ी नववर्ष का उत्सव,
साथ ही होली की मस्ती का फागुन छोड़ आये हैं,
भटूरे छोले दिल्ली के कचोरी मावा जयपुर की,
गाय का दूध और मथुरा का माखन छोड़ आये हैं,
वो भोलेनाथ की काशी, अयोध्या राम की नगरी,
श्री जगन्नाथ के मंदिर के दर्शन छोड़ आये हैं,
वो बरगद नीम पीपल जो सुहानी छाँव देते थे,
हवाओं में थी महक जिसकी वो चन्दन छोड़ आये हैं,
जरुरत जिंदगी की देश की यादों से भारी है,
मलाई के भरोसे मीठी खुरचन छोड़ आये हैं,
कुछ पा लेने की खातिर देख क्या क्या खो दिया है "शिव"
मुहब्बत से भरा प्यारा वतन हम छोड़ आये हैं ।।
अगर ये शब्द जरा भी आपके दिल को छू लें तो मैं समझूंगा कि मेरा प्रयास व्यर्थ नहीं गया । बताइयेगा जरूर ।
जय हिंद
*** शिव शर्मा की कलम से ***
नमस्कार दोस्तों । मैं खुश हुं कि आप मेरे लिखे ब्लॉग्स पढ़ते रहते हैं । आपके मिलने वाले मेसेज मुझमें एक नयी ऊर्जा भर देते हैं, पता नहीं मैं कैसा लिखता हुं, लेकिन जब आप मेरे हर लिखे की सराहना करते हैं मेरा हौसला बढ़ाते हैं तो आपके अपार प्रेम से मेरा ह्रदय अत्यंत प्रफुल्लित हो उठता है । अपना स्नेह ऐसे ही बनाये रखना ।
मैं देखता हुं कि बहुत से मेरे मित्र दुनिया के अलग अलग देशों से मेरे ब्लॉग्स पढ़ते रहते हैं । यहां भी मेरे साथ बहुत से मित्र हैं जो हिंदुस्तान के अलग अलग प्रान्तों से कुछ पाने के लिए अपना वतन छोड़ कर हजारों मील दूर आये हैं ।
अक्सर ऐसे मौके आते हैं जब हम भारतीय एक साथ इकठ्ठा होते हैं । उस वक्त मैंने हर बार उनकी बातों में ये महसूस किया कि भले ही हम अपने मुल्क अपने वतन से दूर हैं मगर दिल में हरदम हिंदुस्तान ही धड़कता रहता है ।
देश की उन्ही यादों को संजोकर उन्हें एक सूत्र में बाँध कर एक ग़ज़ल का रूप देने की कोशिश मैंने की है । ये पता लगाने या बताने की कोशिश की है कि कुछ पाने के लिए हम अपना देश छोड़कर तो आ गए, पर देश के साथ और क्या क्या पीछे छूट गया ।
उम्मीद है हमेशा की तरह इस बार भी आप का भरपूर प्यार और स्नेह मिलेगा ।
****हम तो चले परदेस****
हम अपने गांव की गलियां ओ गुलशन छोड़ आये हैं,
उन्ही गलियों में अपने दिल की धड़कन छोड़ आये हैं,
हमारे यार रिश्तेदार सारे छूट गए पीछे,
पिता का प्यार और माता का दामन छोड़ आये हैं,
सवेरा खिलखिलाता था जहां सूरज की किरणों से,
उसी घर के किसी कोने में बचपन छोड़ आये हैं,
जहां सजती थी महफ़िल रोज खुशियों की उमंगों की,
घर का झिलमिलाता सा वो आँगन छोड़ आये है,
कलियां मुस्कुराती थी, तितलियां गुनगुनाती थी,
फूलों से भरा पूरा वो उपवन छोड़ आये हैं,
लचकती डाल चंपा की रातरानी की खुशबू और,
फूल पर मंडराते भौरों की गुंजन छोड़ आये हैं,
दीवाली ईद क्रिसमस लोहिड़ी नववर्ष का उत्सव,
साथ ही होली की मस्ती का फागुन छोड़ आये हैं,
भटूरे छोले दिल्ली के कचोरी मावा जयपुर की,
गाय का दूध और मथुरा का माखन छोड़ आये हैं,
वो भोलेनाथ की काशी, अयोध्या राम की नगरी,
श्री जगन्नाथ के मंदिर के दर्शन छोड़ आये हैं,
वो बरगद नीम पीपल जो सुहानी छाँव देते थे,
हवाओं में थी महक जिसकी वो चन्दन छोड़ आये हैं,
जरुरत जिंदगी की देश की यादों से भारी है,
मलाई के भरोसे मीठी खुरचन छोड़ आये हैं,
कुछ पा लेने की खातिर देख क्या क्या खो दिया है "शिव"
मुहब्बत से भरा प्यारा वतन हम छोड़ आये हैं ।।
अगर ये शब्द जरा भी आपके दिल को छू लें तो मैं समझूंगा कि मेरा प्रयास व्यर्थ नहीं गया । बताइयेगा जरूर ।
Click here to read "शायराना अंदाज" by Sri Shiv Sharma
जय हिंद
*** शिव शर्मा की कलम से ***
Wow
ReplyDeleteWah!
ReplyDeleteKya baat hai
ReplyDeleteSahi baat hai sharma Ji Sab kuch chod ke aa Gaye Nigeria
ReplyDeleteWah sharma ji kya khub yad dilaya gavn ka
ReplyDeleteआप सभी का ह्रदय से आभार ।
ReplyDeleteNice sharma ji
ReplyDeleteTruly truly correct, Keep it up sir
ReplyDeletethank you for your lovely comments
ReplyDeleteJabardast
ReplyDeleteAk bar pankaj udas ne sab pardesiyo ko rulaya tha chithi aayi hai ga kar
ReplyDeleteAaj aap ne rula diya gaon yaad dila kar
👍👍👍👍👍
This comment has been removed by the author.
DeleteJabardast dil ko chu gaya
ReplyDeleteOnce again thanx for reminding the bite hue din, aur galiyon mein gujra huwa kal, thanx
ReplyDeleteKya baat hai
ReplyDeleteGet immotional sharma ji , hurt touching blog..
ReplyDeleteReally heart touching
ReplyDeletegreat awesome..
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