फिर बच्चा बन जाऊं
बचपन में शैतानियां, मस्ती, जिद्द शायद हम सबने लगभग एक जैसी ही की होगी । कोई गड़बड़ करने पर पापा डांटते थे और हम भाग कर माँ के आंचल में छुप जाते । भैया से प्रार्थना सी करते की कुछ दूर साईकिल पर घुमा देवे । नानी के घर खूब मस्तियां किया करते थे ।
बचपन की इन शरारतों को जब एक साथ समेटकर देखा तो पाया कि ये तो एक कविता बन गई ।
यदि ये कविता कहीं भी आपके ह्रदय को छु जाए तो मैं समझूंगा की मेरा प्रयास सार्थक हुआ है ।
फिर बच्चा बन जाऊं
--------------------------
माँ से लाड़ कराऊं
और डांट पापा से खाऊं
बारिश के पानी में फिर
कागज़ की नाव चलाऊं
बुशर्ट और हाफ पेन्ट पहन कर
स्कूल पढ़ने जाऊं
कभी कभी ये दिल करता है
फिर बच्चा बन जाऊं
बैठ गोद में दादाजी की
किस्से सुनूं दादी से
तितलियां पकडूं फूल चुनुं
नजदीकी वादी से
शनिवार को दीदी के संग
नानी के घर जाऊं
कभी कभी ये दिल करता है
फिर बच्चा बन जाऊं
नानी से जिद करूं कहानी
सुनने को परीयों वाली
राजा रानी गुड्डो गुड़ियों
शेर और चिड़ियों वाली
और पंख लगा सपनों में ही
परीयों के देश हो आऊं
कभी कभी ये दिल करता है
फिर बच्चा बन जाऊं
बारिश की रिमझिम में भीगूं
बेर बेरी से तोडूं
पकड़ गली में कुत्ते को
फिर उसकी पुंछ मरोडूं
कड़ी धुप में छत पर जा
सूरज से आँख मिलाऊं
कभी कभी ये दिल करता है
फिर बच्चा बन जाऊं
नीलगगन के तारे गिनुं
पूनम का चाँद निहारूं
छीन के कंघी दीदी से
खुद अपने बाल संवारुं
भैया की साइकिल पे बैठ कर
मेला देखन जाऊं
कभी कभी ये दिल करता है
फिर बच्चा बन जाऊं
पप्पू, चिंटू, पिंकी, बाबू
मोनू के संग खेलूं
कोई खिलौना उनको देदूं
और कुछ उनसे लेलूं
लगा बांसुरी होठों पर
मैं बालकृष्ण बन जाऊं
कभी कभी ये दिल करता है
फिर बच्चा बन जाऊं ।
*******
इस कविता के बारे में आपके विचारों, सुझावों का स्वागत के साथ इन्तजार करूँगा ।
जय हिन्द
***शिव शर्मा की कलम से***
बचपन में शैतानियां, मस्ती, जिद्द शायद हम सबने लगभग एक जैसी ही की होगी । कोई गड़बड़ करने पर पापा डांटते थे और हम भाग कर माँ के आंचल में छुप जाते । भैया से प्रार्थना सी करते की कुछ दूर साईकिल पर घुमा देवे । नानी के घर खूब मस्तियां किया करते थे ।
बचपन की इन शरारतों को जब एक साथ समेटकर देखा तो पाया कि ये तो एक कविता बन गई ।
यदि ये कविता कहीं भी आपके ह्रदय को छु जाए तो मैं समझूंगा की मेरा प्रयास सार्थक हुआ है ।
फिर बच्चा बन जाऊं
--------------------------
माँ से लाड़ कराऊं
और डांट पापा से खाऊं
बारिश के पानी में फिर
कागज़ की नाव चलाऊं
बुशर्ट और हाफ पेन्ट पहन कर
स्कूल पढ़ने जाऊं
कभी कभी ये दिल करता है
फिर बच्चा बन जाऊं
बैठ गोद में दादाजी की
किस्से सुनूं दादी से
तितलियां पकडूं फूल चुनुं
नजदीकी वादी से
शनिवार को दीदी के संग
नानी के घर जाऊं
कभी कभी ये दिल करता है
फिर बच्चा बन जाऊं
नानी से जिद करूं कहानी
सुनने को परीयों वाली
राजा रानी गुड्डो गुड़ियों
शेर और चिड़ियों वाली
और पंख लगा सपनों में ही
परीयों के देश हो आऊं
कभी कभी ये दिल करता है
फिर बच्चा बन जाऊं
बारिश की रिमझिम में भीगूं
बेर बेरी से तोडूं
पकड़ गली में कुत्ते को
फिर उसकी पुंछ मरोडूं
कड़ी धुप में छत पर जा
सूरज से आँख मिलाऊं
कभी कभी ये दिल करता है
फिर बच्चा बन जाऊं
नीलगगन के तारे गिनुं
पूनम का चाँद निहारूं
छीन के कंघी दीदी से
खुद अपने बाल संवारुं
भैया की साइकिल पे बैठ कर
मेला देखन जाऊं
कभी कभी ये दिल करता है
फिर बच्चा बन जाऊं
पप्पू, चिंटू, पिंकी, बाबू
मोनू के संग खेलूं
कोई खिलौना उनको देदूं
और कुछ उनसे लेलूं
लगा बांसुरी होठों पर
मैं बालकृष्ण बन जाऊं
कभी कभी ये दिल करता है
फिर बच्चा बन जाऊं ।
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इस कविता के बारे में आपके विचारों, सुझावों का स्वागत के साथ इन्तजार करूँगा ।
जय हिन्द
Click here to read "बचपन - Childhood" a beautiful blog by Sri Shiv Sharma
Click here to read "Na Jaane - ना जाने" written by Sri Arpit Jain
***शिव शर्मा की कलम से***
Badhiya
ReplyDeleteBahut badhiya
ReplyDeleteJabardast
ReplyDeleteBahut hi sundar
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