चिट्ठी आई है - Chitthi aayi hai
The letter has come."पोस्टमैन" खुले दरवाजे की कुण्डी को बजाकर डाकिये ने आवाज दी तो 14 वर्षीय राहुल लगभग दौड़ता सा दरवाजे पर आया । ख़ुशी ख़ुशी चिट्ठी ले कर वहीँ से आवाज लगायी "माँ, भैया की चिट्ठी आई है बम्बई से, आप कल ही कह रही थी ना कि भैया का पत्र आये काफी दिन हो गए"।
बेटे की चिट्ठी हाथ में लेकर पहले तो माँ ने उसे सुंघा, शायद बेटे के हाथों की खुशबु को महसूस कर रही थी । एक चमक सी आ गयी थी उसके चेहरे पर । चिट्ठी को यूं अपने कलेजे से लगाया जैसे वो मात्र एक लिफाफा ना होकर उसका बेटा ही हो ।
चिट्ठी आई है
पत्र पढ़ते पढ़ते कभी मुस्कुराती तो कभी आँखों में नमी ले आती । पहली बार बेटा इतनी दूर जो चला गया था । अब तो चिट्ठी का ही एक सहारा था एक दूसरे का हालचाल जानने का । चिट्ठी पढ़ते पढ़ते और लिखते लिखते ऐसा लगता था जैसे एक दूसरे से आमने सामने बैठकर बात कर रहे हैं ।
एक दूसरा दृश्य । राधा छत पे कपड़े सुखा रही थी की निचे से उसके देवर शेखर ने आवाज दी । "भाभी भैया का पत्र आया है कलकत्ता से।" सुनकर राधा कपड़े सुखाना छोड़, एक साथ दो दो सीढ़ियाँ लांघती जल्दी से निचे भागी ।
"अरे अरे धीरे भाभी, गिर मत जाना, भैया का पत्र ही आया है, भैया नहीं।" शेखर ने ठिठोली की और मुस्कुराते हुए चिट्ठी राधा को दे दी । "आज तो खाने में हलवा बनेगा" हँसते हुए उसकी छोटी ननद ने भी चुटकी ली ।
विरह की अग्नि में जलती राधा के लिए वो पत्र उसके प्रियतम के मिलन से कम नहीं था । कब से बाट जोह रही थी इसकी । दस दिन पहले उसने पत्र लिखा था पति को और उसी दिन शेखर उसे डाक के डब्बे में भी डाल आया था । फिर क्यूं नहीं अब तक जवाब आया ।
चिट्ठी आई है
पिछले 3-4 दिन से रोज वो अपने देवर से पूछ रही थी, भैया डाकखाने जाके आये थे क्या? शेखर हंसकर कहता "भाभी थोडा सब्र करो, आपकी चिट्ठी को यहाँ से कलकत्ता पहुँचने में चार पांच दिन, और भैया अगर उसी दिन जवाब लिखकर चिट्ठी पोस्ट कर दे तो, आने में चार पांच दिन, यानी आपको कम से कम दस दिन तो प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।"
छह महीने हो गए पिया को परदेश गए हुये । चिट्ठी आती है तो कुछ दिन और गुजर जाते हैं उसके सहारे । तीन चार दिन तो उसकी महक ही नहीं जाती है । फिर अगली चिट्ठी आने तक वो उसे पचासों बार पढ़ लेती थी । पढ़ते पढ़ते अपने पति का मुस्कुराता चेहरा उसे उस कागज़ में से झांकता जो नजर आता था ।
अस्सी नब्बे के दशक में ऐसे दृश्य आम हुआ करते थे । उस वक्त न तो आज की तरह मोबाइल का जमाना था और ना ही फ़ोन की कोई विशेष सुविधा । दूर दराज अगर फ़ोन पर किसी से बात करनी जरुरी होती थी तो घंटों की प्रतीक्षा करनी पड़ती थी ।
कोई जरुरी सुचना अगर किसी को दूर शहर में शीघ्र पहुंचानी होती थी तो डाकघर से ही तार भेजा जाता था । जो अधिकतम अगले दिन तक सम्बंधित व्यक्ति को मिल जाया करता था । लेकिन वो थोडा खर्चीला था इसलिए साधारणतया चिट्ठी ही एकमात्र सहारा थी समाचारों के आदान प्रदान की ।
चिट्ठी आई है
क्या दिन थे वे भी । मोहल्ले में डाकिया रोज आता था । क्योंकि किसी न किसी के घर चिट्ठी आती ही रहती थी । डाकिये को भी घर घर जाकर चिट्ठी बांटने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी ।
वो प्रायः सबको पहचानता था, सो जिस गली के पते की चिट्ठी होती थी उस गली का कोई न कोई रहिवासी अपने अड़ोसी पड़ोसी की चिट्ठी उस से ले आता था और ख़ुशी ख़ुशी, जिसकी चिट्ठी है उसके घर, पहुंचा दिया करता था । बदले में उसे एक कप चाय या, कभी कभी किसी का ड्राफ्ट आता तो, नाश्ता भी मिल जाता ।
मुझे याद है हमारे मोहल्ले के काफी लोग विदेश (ज्यादातर इराक) भी रहते थे । हमें प्रतीक्षा रहती थी इराक से आने वाली चिट्ठियों की । डाकघर में जब डाकिया बाबू चिट्ठियों की छंटाई कर रहे होते थे तो पत्रों के उस ढेर में हमारी निगाहें लाल नीली धारियों के कोनों वाले लिफ़ाफ़े को तलाशती रहती थी । क्योंकि वो लिफाफा हम जब मोहल्ले में चाची, भाभी या ताई को देते तो वे ख़ुशी से हमें एक दो रुपये देती थी । जिसे हम मित्र आपस में मिल बाँट कर खर्च करते थे । वो ख़ुशी ही अनोखी हुआ करती थी ।
बहुत से हिंदी चलचित्रों में एक आध गाना चिट्ठी पर भी हुआ करता था ।
चिट्ठी आई है
"जाते हो परदेश पिया, जाते ही ख़त लिखना......"।
"फूल तुम्हें भेजा है ख़त में, फूल नहीं मेरा दिल है....."।
"कबूतर जा जा जा, पहले प्यार की पहली चिट्ठी....."।
अब तो इंटरनेट का युग आ गया है । पलक झपकते ही सन्देश इधर से उधर हो जाते हैं । इ मेल, चैट इत्यादि कितने साधन हो गए हैं । इधर मोबाइल में नंबर दबाओ, तुरंत उधर घंटी बज उठती है । सिनेमाओं के गाने भी बदल गए हैं, अब तो नायक नायिका से ये ही पूछता है "व्हाट इज मोबाइल नंबर, करूँ क्या डायल नंबर"।
वीडियो कॉल ने तो दूरियां और भी सिमित कर दी है । कहीं भी बैठे बैठे मोबाइल या कंप्यूटर द्वारा दूर बैठे व्यक्ति से भी रूबरू बात कर सकते हैं । 20 -25 वर्ष पहले जो बातें कोरी कल्पना लगा करती थी, विज्ञान और तकनीक ने सच कर दिखाई ।
डाकघरों में तो आजकल रजिस्टर्ड पत्र ही आते हैं, उनमें भी ज्यादातर वो रजिस्ट्रियां होती है जिन्हें भेजने वाले का मकसद अदालत में सबूत के तौर पर इस्तेमाल करना होता है ।
चिट्ठी आई है
भले ही आधुनिक तकनीक ने हमें सैंकड़ो सुविधाएं उपहार में दी है, लेकिन जो आनंद और ख़ुशी चिट्ठी मिलने पर मिला करते थे उसका मुकाबला ई मेल या चैट नहीं कर सकते ।
ई मेल मिलने पर हम थोड़े ही गा सकते हैं "ई मेल आई है आई है ई मेल आई है" ।
आनंद तो इन पंक्तियों को गाने पर ही मिलेगा :
"चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है।"
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जय हिन्द
...शिव शर्मा की कलम से...
आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।. Email : onlineprds@gmail.com
धन्यवाद
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चिट्ठियों वाला अपनापन email और what's app में कहां? याद दिलादी आपने पोस्टमैन चाचा की
ReplyDeleteKy a baat h bhaisaab.... mujhe aaj malum chala ye apke blog h.. bahut hi sundar...
ReplyDeleteधन्यवाद महावीर । रोज पढ़ना ।
ReplyDeleteसही है प्रदीप । आपका धन्यवाद ।
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