आम चुनाव - Election
चुनावों का मौसम अक्सर चलता ही रहता है । कभी देशव्यापी, कभी राज्यव्यापी, या कभी तहसील, ग्राम पंचायत आदि आदि । 1947 से ये प्रक्रिया चलती आ रही है । इन बीते सालों में काफी कुछ बदला है, आज का युग कंप्यूटर, टेक्नोलॉजी का युग है । चुनावों में भी इन सुविधाओं का लाभ लिया जा रहा है । पहले के चुनाव और आज के चुनावों में रात दिन का फर्क आ गया है ।आम चुनाव
लेकिन भाषण, चुनावी वादे आज भी वही है जो वर्षों पहले हुआ करते थे । नेता आज भी पांच साल बाद ही नजर आते हैं और अपने द्वारा किये विकाश की बातें इस तरह पेश करते है जैसे उन्होंने राजस्थान को कश्मीर बना दिया हो ।
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अभी भी चुनावी मौसम चल रहा था । राज्यसभा के चुनाव थे । मैं भी गाँव आया हुआ था । जगह जगह पार्टियों के कार्यालय खुल गए थे । देश भक्ति के गाने गली गली में गूंज रहे थे ।
"नमस्कार भाइयों और बहनों । आज फिर एक बार मैं आपके बीच आया हूँ आपका आशीर्वाद लेने । और मुझे विश्वास है की पिछली बार की तरह इस बार भी मुझे आपका पूर्ण सहयोग मिलेगा और फिर एक बार हमारी पार्टी राज्य में अपनी सरकार बनाएगी ।"
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गांधी चौक में ध्वनि विस्तारक में गूंजती नेताजी की आवाज कानों में शहद घोल रही थी ।कितना मीठा बोल रहे थे इस वक्त । जबकि जीतने के बाद भाइयों और बहनों तो दूर, किसी को मित्र के नाम से भी संबोधित नहीं करते होंगे ।
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बिलकुल वही माहौल था जो कई सालों पहले भी हुआ करता था । वैसे ही झंडे, लगभग उसी तरह के नारे, आसमान में लटकती रंग बिरंगी झालरों के बीच हाथ जोड़े हुए खड़े नेताजी का पोस्टर, मुझे बीती बातें याद आने लगी ।
मुझे जान इन सबकी थोड़ी बहुत समझ आई थी शायद में 15-16 साल का था । उस साल भी कोई चुनावी वक्त था । मोहल्ले में भी कई घरों में पार्टियों के दफ्तर शुरू हो चुके थे । सर्दियों का मौसम था और हमारी स्कूल में छुट्टियां चल रही थी ।
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मैंने अपने बड़े भैया से पूछा, "भैया ये तीन चार दिन से आजकल क्या हो रहा है, भंवर ताऊजी के घर का कमरा मेहमानों से भरा भरा ही रहता है"।
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"चुनाव आ रहे हैं ना बाबू, ये सब उसी की हलचल है । तू नहीं समझेगा, जा बाजार से सब्जी ले आ" भैया ने कहा ।
शाम को मैं और मेरा दोस्त "काळू" सब्जी लाने बाजार गए तो देखा गांधी चौक जगमगा रहा था । जगह जगह हाथ जोड़े कई लोगों के चित्रों वाले पोस्टर लगे थे । कई पार्टियों के कार्यालय खुले हुए थे और उनमें पार्टी कार्यकर्ता व एक दो कार्यालयों में तो खुद चुनावी उम्मीदवार बैठे थे । टेबलों पर लाल, निले, सफ़ेद टेलीफोन रखे थे । जिन पर लगातार किसी न किसी की बात चल रही थी ।
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काळू को आप जानते ही हैं, कुछ दिन पहले जिस से मैंने आपका परिचय करवाया था, उसको अचानक पता नहीं क्या सुझा, मुझसे कहा "चल बाबू, ऊपर पहली मंजिल पर जो कार्यालय है वहां चलें, वो अपने मोहल्ले के भंवर ताऊजी का कार्यालय है।"
भंवर ताऊजी का नाम सुनके मैंने भी कहा "चलो, देखते हैं ये चुनाव के कार्यालय कैसे होते हैं।"
हम ऊपर गए तो देखा एक बड़ा सा गद्दा बिछा था जिस पर सफ़ेद चादर बिछी हुयी थी और भंवर ताऊजी के साथ काफी संख्या में लोग बैठे हुए थे । बाहर छत पर भी कई लोग थे जिनमें बहुत से तो हमारे परिचित थे । और हमें पता था की उनमें से कुछ लोगों की तो भंवर ताऊजी से बनती भी नहीं थी । फिर भी पता नहीं चुनाव में ऐसा क्या जादू था की सब एक साथ थे ।
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हमें देख के हमारी गली में ही रहने वाले मास्टरजी आये और पूछा "अरे, तुम लोग यहाँ कैसे?"
"कुछ नहीं मास्टरजी, बस ऐसे ही, कार्यालय देखने आये थे"
"अच्छा, अब आ ही गए हो तो चलो तुम्हे नाश्ता करवाता हूं"
और मास्टरजी हमें कार्यालय के पास वाले हॉल में ले कर गए जहाँ पहले से कुछ लोग नाश्ता उडा रहे थे । हमने भी एक एक प्लेट पर हाथ साफ़ किया । कचौरियां तो बड़ी स्वादिष्ट थी और अगर इस तरह संयोग से बिना मांगे मिल जाए तो फिर कहना ही क्या । स्वाद दुगुना हो जाता है ।
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ये अलग बात है की उसके बाद हम मौका देखकर दो चार अन्य नाश्ता कराऊ पार्टियों के कार्यालयों में भी गए थे । उस वक्त तो नहीं आया मगर आज हमारी समझ में आ रहा है की चुनावों में खर्चे कहाँ होते हैं।
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अब उन चुनावों में कौन जीता था कौन हारा था ये तो नहीं पता । मगर दोस्तों वो नाश्ते अब भी याद है । क्योँकि आज भी चुनावी मौसम में पार्टी कार्यालयों में नाश्ते चलते ही रहते हैं । जमाना थोडा बदल गया है सो नाश्ता भी थोड़ा बदल गया है । आजकल कई तरह के "पेय पदार्थ" भी उम्मीदवार लोग अपने कुछ चुनिंदा कार्यकर्ताओं को उपलब्ध करवाते हैं।
अब भी एक जगह से कई कई उम्मीदवार खड़े होते हैं उनमें से कोई एक जीतता है और उसके बाद वो जितने वाला सालों तक नजर नहीं आता है । हां हारने वाले जरूर अपनी समाजसेवा की रफ़्तार थोड़ी और बढ़ा देते हैं ताकि अगली बार तख्तापलट कर सके ।
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नेता नजर आये ना आये मैं जरूर कल आपको नजर आऊंगा । कुछ नए अनुभव, कुछ नए विचारों के साथ । तब तक के लिए नमस्कार ।
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नजफगढ़ के नवाब, वीरेन्द्र सहवाग - Virendra Sehwag
जय हिन्द...शिव शर्मा की कलम से...
आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।. Email : onlineprds@gmail.com
धन्यवाद
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