मौका - Oppottunities, Chance
एक दिन एक मित्र ने एक चुटकुला सुनाया था कि, एक दूकान पर एक आदमी काफी देर से सामान उलट पलट कर देख रहा था, कभी कुछ तो कभी कुछ ।Oppottunities
कुछ समय बाद आखिर दुकानदार ने तंग आकर पूछा "भाईसाहब, आखिर आपको चाहिए क्या?"
उस व्यक्ति ने कहा । "मौका"
खैर, ये तो एक चुटकुला था । लेकिन मौका तो मौका होता है, शब्द भले ही छोटा सा है मगर इसके माने काफी बड़े हैं, जिंदगी में हम भी अक्सर तरह तरह के मौकों की तलाश में रहते हैं । व्यक्तिनुसार मौके की अलग अलग व्याख्याएं, अलग अलग परिभाषाएं हो सकती है ।
मौका
आपने अक्सर कई लोगों के मुंह से सुना होगा " यार मौका नहीं मिला वर्ना मैं क्या से क्या हो जाता...." या "अगर मौका मिलता तो इस काम पर मेरे नाम की मुहर लगी होती...." या फिर "थोड़ा सा मौका मिल जाता तो उसको तो मैं दिखा देता की मैं क्या हूँ।" वगैरह वगैरह ।
एक चालू किस्म का आदमी सदैव किसी को निचा दिखाने का मौका ढूंढता रहता है वहीँ एक समझदार व्यक्ति उस मौके को तलाशता है जो उसे सफलता की ऊंचाइयों पर ले जा सके । समाज में सम्मान दिला सके।
मौका
देखा जाए तो मौके हमें जीवन के हर एक मोड़ पर खड़े मिलते हैं । कुछ व्यक्ति अपनी बुद्धिमता और होशियारी से इन्हें पहचान लेते है और समय के साथ आगे बढ़ जाते है, मगर जो सही समय पर इन्हें नहीं पहचान पाते वो हमेशा की तरह अपनी किस्मत पर सारा दोष मढ़ के तकदीर का रोना रोते रहते हैं ।
Oppottunities
दरअसल हम हर काम का परिणाम शीघ्र अतिशीघ्र पाना चाहते हैं और उस मौके की तलाश में रहते हैं जो हमें तुरंत वारे न्यारे करवा दे । इस वजह से कई लोग राह भी भटक जाते हैं और उपरोक्त चुटकुले की तरह के "मौके" की झाँक में रहते हैं ।
अगर हमें किसी मौके को पूर्णरूप से भुनाना है तो हमें थोड़ा धैर्य, थोड़ा संयम तो रखना ही होगा ।हर काम हमारी इच्छानुसार या जल्दी जल्दी हो जाए, जरुरी नहीं है। इस सन्दर्भ में ये दोहा भी काफी कुछ कहता है-
"धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतू आये फल होय।"
Oppottunities
यानि जो मौका आपको मिला है, उस मौके को कुछ समयोपरांत कोसें नहीं बल्कि इंतज़ार करें उसके परिणाम का । जब ऋतू आएगी तो फल भी लगेंगे। और फिर ये भी तो है की उसे आपने खुद चुना था । कुछ तो खासियत रही होगी उसमें तभी तो आपने उसे हाथ से जाने नहीं दिया था ।
मौका
दोस्तों, जिंदगी पल पल रंग बदलती है, उसी अनुसार हमारी आवश्यकताएं, हमारे उद्देश्य भी बदलते रहते हैं । आपको उन जरूरतों के अनुसार भी जिंदगी मौका देगी, तलाश जरी रखें, लेकिन जब तक वो मौका ना आये अपनी वर्तमान परिस्थितयों के अनुसार हम अपने आपको ढाल लें । ये ही समझदारी है, ये ही जीवन है ।
मुझे एक और दोहा या छंद, कुछ आधा अधूरा सा याद आ रहा है :
"माई मेरे लाल की तोहे का सुनाऊँ गाथा,
जब जब मैं उसे समझन चाहूं मोरा ठनकत जाए माथा
रोज रोज की नई छवि है
रोज रोज नई बातां"
मौका
इसी लाल की तरह हमारी महत्वाकांक्षाएं है जो रोज रोज आवश्यकतानुसार बदलती जाती है उसी अनुसार बदलती चली जाती है हमारे मस्तिष्क में बनी मौके की तलाश की तस्वीर ।
Oppottunities
मौके की तलाश में हर वक्त रहें और जब भी सही मौका मिले उसे पकड़ लें, हाथ से ना जाने दे । लेकिन उस चुटकुले की तरह के मौके का इंतज़ार कभी ना करें । एक सफल, शांत और सम्माननीय जीवन जियें।
इन्ही विचारों के साथ अभी के लिए विदा मित्रों । कल फिर मौका मिला तो मुलाकात जरूर होगी ।
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जय हिन्द ।
...शिव शर्मा की कलम से...
आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।. Email : onlineprds@gmail.com
धन्यवाद
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Nice
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